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रोहतास की इस महिला ने संषर्घ से लिखी आत्मनिर्भरता की नई कहानी, पारंपरिक शिल्प को भी दिला रही नई पहचान 

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Agency:News18 Bihar

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Rohtas Women Success Story: भारत में परंपराओं और रीति-रिवाज के आधार पर कई धंधे चलते हैं. दौरा का उपयोग पर्व से लेकर विवाह तक में होता है. राेहतास की महिला संगीता देवी ने इसे कमाई का जरिया बना लिया. इस कार्य में…और पढ़ें

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हाइलाइट्स

  • संगीता देवी ने दौरा बनाने से आत्मनिर्भरता हासिल की.
  • 60 से अधिक महिलाओं को रोजगार से जोड़ा.
  • पारंपरिक शिल्प को नई पहचान दिलाई.

रोहतास. भारत में परंपराएं सिर्फ रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये हजारों लोगों की रोज़ी-रोटी का ज़रिया भी बनती आ रही है.  ऐसी ही एक परंपरा दौरा बनाने की कला है और यह गांव में पीढ़ियों से चली आ रही है. शादी-ब्याह से लेकर छठ पूजा जैसे त्योहारों तक, दौरा हर शुभ अवसर पर इस्तेमाल होता है. मुंज और काशी घास से तैयार होने वाला हाथ से बुना इस पात्र का ना केवल अपना एक सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि इसका गांवों की अर्थव्यवस्था का भी अहम हिस्सा है.

बिहार के रोहतास जिले के गोरारी गांव की संगीता देवी ने इस पारंपरिक हुनर को अपनी ताकत बना लिया है. कभी महज 500-1000 रूपए की छोटी पूंजी से उन्होंने दौरा बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन आज यह उनके परिवार की आर्थिक मजबूती की सबसे बड़ी वजह बन चुका है. सिर्फ अपने लिए ही नहीं, उन्होंने प्रखंड की दूसरी महिलाओं के लिए भी रोज़गार का एक नया रास्ता खोल दिया है.

संघर्ष कर आत्मनिर्भर बनी संगीता

संगीता देवी बताती हैं कि उन्होंने 2020 में जीविका समूह के माध्यम से कुछ पैसे उधार लेकर यह व्यवसाय शुरू किया. शुरुआत में उनके लिए यह आसान नहीं था, लेकिन लगन और मेहनत और अपनी कौशल को निखारा और बाजार की मांग को समझा. धीरे-धीरे उनके द्वारा बनाए गए दौरे की मांग शादी-ब्याह और छठ पर्व के दौरान काफी बढ़ने लगी. खास बात यह है कि वे ग्राहकों की विशेष जरूरतों के अनुसार भी दौरे तैयार करती हैं, जिससे उनकी आमदनी में लगातार वृद्धि हो रही है.

 60 से अधिक महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

संगीता देवी का यह सफर सिर्फ उनकी व्यक्तिगत सफलता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से अब काराकाट प्रखंड की लगभग 60 महिलाएं इस रोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. ये महिलाएं मिलकर दौरा बनाने का काम कर रही हैं और अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं. इस पहल से ना केवल महिलाओं को रोजगार मिला है, बल्कि पारंपरिक शिल्प को भी नई पहचान मिली है.

लोकल मार्केट में मिल जाती है सामाग्री

संगीता देवी ने आगे बताया कि एक दौरा बनाने के लिए मुंज, काशी, प्लास्टिक और धागे की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है. वहीं साइज के अनुसार एक दौरा 200 से 1000 रुपए तक बेच लेती है. आज वे इस कला में पूरी तरह निपुण हो चुकी हैं और अपने परिवार की आजीविका को सुचारु रूप से चला रही हैं. संगीता देवी की यह कहानी दर्शाती है कि बड़ा बदलाव हमेशा एक छोटे कदम से ही शुरू होता है. यदि मेहनत, लगन और सही दिशा में प्रयास किया जाए, तो कोई भी अपने जीवन को बदल सकता है. आज संगीता देवी ना केवल अपने परिवार के लिए एक मजबूत सहारा बनी हैं, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं.

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पारंपरिक धंधे को अपनाकर महिला बनी आत्मनिर्भर, कमाई भी हो रही है तगड़ी

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