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This picture is not of rain but of two days ago | बारिश की नहीं दो दिन पहले की है ये तस्वीर: मरीज को टांगकर ले गए अस्पताल, बड़वानी के आदिवासी गांवों के ऐसे हाल – Barwani News

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ये तस्वीर 29 अप्रैल 2025 की है। बड़वानी जिले के अधिकांश आदिवासी गांवों में मरीजों को इस तरह लटकाकर अस्पताल लाया जाता है।

बारिश में चारपाई पर गर्भवती या मरीज को अस्पताल ले जाने के इस तरह के फोटो आपने जरूर देखे होंगे। तब इसकी वजह भी समझ आती है। लेकिन, भीषण गर्मी में अगर ऐसा नजारा देखने मिले तो इसे क्या कहा जाए।

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खबर में आगे बढ़ने से पहले ये थोड़ा रुककर ये फोटो देख लीजिए…

29 अप्रैल मंगलवार को भरी दोपहरी में बीमार किशोर को लोग टांगकर मैन रोड तक लेकर जा रहे हैं। साथ में चल रही महिला उसकी मां है। रास्ते में बेटे को पानी पिलाती रहीं।

29 अप्रैल मंगलवार को भरी दोपहरी में बीमार किशोर को लोग टांगकर मैन रोड तक लेकर जा रहे हैं। साथ में चल रही महिला उसकी मां है। रास्ते में बेटे को पानी पिलाती रहीं।

ऊपर जो आपने तस्वीर देखी ये यूपी या बिहार की नहीं, बल्कि हमारे मध्य प्रदेश के ही बड़वानी जिले के पाटी ब्लॉक के चेरवी के थाना फलियां गांव की है। वो भी सिर्फ दो दिन पुरानी यानी बीते मंगलवार की। जब एक किशोर की तबीयत बिगड़ी तो गांव के लोग उसे कंबल लिटाकर बल्ली पर टांग कर अस्पताल ले गए।

गांव के गणेश नरगावे कहते हैं…

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मंगलवार को गांव में 16 वर्षीय तबियत खराब हो गई। उसे झोली में डाल कर मेन रोड तक लाए। यहां से इसे उपचार के लिए पाटी अस्पताल भेजा।

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पूरे क्षेत्र के आदिवासियों को मालूम भर चल जाए की किसी बीमार को अस्पताल लेकर जाना है। वे लोग मदद के लिए किसी भी समय पहुंच जाते हैं।

पूरे क्षेत्र के आदिवासियों को मालूम भर चल जाए की किसी बीमार को अस्पताल लेकर जाना है। वे लोग मदद के लिए किसी भी समय पहुंच जाते हैं।

सरकारी मदद का इंतजार नहीं करते

मैन रोड से चार किलोमीटर दूर एक ऊंचे टीले पर बसा थाना फलियां गांव। 60-70 कच्चे मकान बने हैं। आबादी भी महज साढ़े तीन सो के आसपास ही है। मौसम चाहे कोई भी हो, अगर यहां कोई बीमार पड़ जाए या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो पूरा गांव मदद के लिए पहुंच जाता है।

आदिवासी सरकारी मदद का इंतजार नहीं करते। वे जानते है कि सरकारी मदद का इंतजार यानी समय की बर्बादी। सब जानते हैं कि मदद कहीं से मिलने वाली नहीं है। बीमार हो या गर्भवती उसे या तो टांगकर या खटिया पर चार किलोमीटर तक मैन रोड तक लेकर जाना है। कई मौके तो ऐसे भी आए की गर्भवती ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया।

सड़क न होने का असर सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। नल-जल योजना अभी यहां नहीं पहुंची है। महिलाएं और बच्चे कई किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाते हैं।

आदिवासी परिवार सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पाते। राशन की दुकानें चार से पांच किलोमीटर दूर हैं। अगर सिर्फ चार किलोमीटर की सड़क बन जाती है तो धागबरा फलियां और महाराष्ट्र के कई गांवों के लोगों को आने जाने में सुविधा मिलेगी

आवागमन की सुविधा न होने के कारण महिलाएं इस तरह से भारी सामान लेकर चलती हैं।

आवागमन की सुविधा न होने के कारण महिलाएं इस तरह से भारी सामान लेकर चलती हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य पर संकट सड़क न होने के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी इन गांवों से दूर हैं। बच्चे स्कूल जाने के लिए घंटों पैदल चलते हैं और कई बार बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।

कई साल से ग्रामीण कर रहे मांग इस क्षेत्र के लोग पिछले कई सालों से सड़क की मांग कर रहे हैं। वे नेता और अफसरों के दरवाजे खटखटा चुके हैं लेकिन उनकी मांगें अनसुनी रह जाती हैं। बड़वानी जिले से कई बड़े नेता और मंत्री रह चुके हैं लेकिन उनके कार्यकाल में भी इन गांवों तक विकास नहीं पहुंच सका।

ये हैं यहां के जन प्रतिनिधि

  • खरगोन- बड़वानी लोकसभा भाजपा सांसद गजेंद्रसिंह पटेल है। दूसरी बार सांसद बने हैं।
  • यहां से राज्यसभा सांसद भाजपा के डॉक्टर सुमेर सिंह सोलंकी हैं।
  • अभी कांग्रेस विधायक राजन मंडलोई हैं।

एसडीएम भूपेंद्र रावत का कहना है….

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धरती आभा योजना अंतर्गत कुछ गांवों को चिह्नित किया गया है। जहां 100 से ज्यादा की आबादी है उन गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए सड़क बनाई जाएंगी।

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