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True love is for God… | सच्चा प्रेम तो ईश्वर से होता है…: शंकराचार्य मठ इंदौर में डॉ. गिरीशानंदजी महाराज बोले- प्रेम में त्याग की सुगंध होती है, स्वार्थ की दुर्गंध नहीं – Indore News

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प्रेम की परिभाषा देना बहुत मुश्किल है। प्रेम पवित्र होता है। प्रेम में सुगंध होती है। प्रेम त्याग से होता है, तपस्या से होता है, इसमें बलिदान होता है। इन दिनों वेलेंटाइन डे के नाम पर प्रेम को जिस फूहड़ तरीके से दर्शाया जाता है, बताया जाता है, उसमें प्

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शनिवार को यह बात कही।

सच्चे प्रेम में इजहार करने की जरूरत नहीं

महाराजश्री ने कहा- प्रेम हुआ था मीरा को, प्रेम हुआ था तुलसीदास को, प्रेम हुआ था शबरी को, प्रेम हुआ था केवट को, प्रेम हुआ था दशरथ को, प्रेम हुआ था हनुमानजी को… जिसमें न तो कोई स्वार्थ था न किसी प्रकार की कोई चाहत। व्यक्ति जिससे प्रेम करता है, उसे इजहार करने की जरूरत नहीं पड़ती। वह स्वत: ही दिखाई देने लगता है। राधा ने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था। इसलिए वे मंदिर में पूजी गईं, उनके प्रेम में सुगंध थी। वे प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। शूर्पणखा का प्रेम रामजी से नहीं बल्कि रामजी के शरीर से था। प्रेम में विवाह की बात नहीं होती, इसलिए शूर्पणखा वासना की प्रतिमूर्ति थी। परिणास्वरूप उसके नाक-कान कटे, क्योंकि उसके प्रेम में दुर्गंध थी।

त्याग का दूसरा नाम है प्रेम

डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा प्रेम होता है संतों को, जो अपनी खुशियों की बलि चढ़ाकर जगत के कल्याण के लिए परमात्मा को समर्पित हो जाते हैं। व्यक्ति जिससे प्रेम करता है, उसके लिए त्याग करता है, उसे आगे बढ़ाता है। उसकी खुशियों के लिए हरसंभव प्रयास करता है, पर बदले में कुछ नहीं चाहता। जहां प्रेम होता है वहां चाहत नहीं होती, त्याग और समर्पण होता है। सच्चा प्रेम करने वाला दूसरों की खुशियों को अपनी खुशी समझता है और बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की तरह सबके हित की बात करता है। केवल स्वार्थ के लिए किया गया प्रेम, प्रेम नहीं होता, वरन स्वार्थ होता है। जहां प्रेम होता है वहीं स्वार्थ नहीं होता।

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