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Occupation of forest land, punishment till court rises | वन भूमि हंकाई के आरोपी को कोर्ट ने सुनाई सजा: वनकर्मियों की साक्ष्य को दी मान्यता, ​​कहा- उनके कथनों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता – Guna News

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गुना के फतेहगढ़ इलाके में अवैध रूप से वन भूमि की हंकाई करने के आरोपी को कोर्ट ने सजा सुनाई। आरोपी को वन भूमि की हंकाई करते हुए वनकर्मियों ने पकड़ा था। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि पुलिस कर्मचारी की साक्ष्य को भी सामान्य साक्षी की साक्ष्य की तरह लेना चाहि

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ये है मामला- मामला वर्ष 2018 का है। 16 नवंबर को बीट पूर्वी फतेहगढ़ में पदस्थ वनपाल ओमप्रकाश रघुवंशी, रामप्रसाद लोधी, प्रकाश मेहर व अन्य स्टाफ के साथ जंगल भ्रमण पर गए थे। वहां उन्हें बीट पूर्वी फतेहगढ़ में एक व्यक्ति नीले रंग का ट्रेक्टर जमीन हांकते हुए दिखाई दिया। उसके ड्राइवर से पूछताछ की तो उसने अपना नाम लखन जाटव निवासी झिरी तहसील बमौरी बताया।

बिना कागजात के अवैध हंकाई की टीम ने लखन से वन भूमि से संबंधित दस्तावेज मांगे, लेकिन उसने बताया कि उसके पास कोई कागजात नहीं हैं। लखन ने कहा कि ट्रेक्टर रज्जाक भाई का है और वह मजदूरी से इसे चला रहा है। उसने कहा रज्जाक भाई के कहने पर महाराज की भूमि को समतल करने आया है। टीम ने मौके के जीपीएस निर्देशांक लिए तो पता चला ये जमीन फॉरेस्ट लैंड है। टीम ने ट्रैक्टर को जप्त कर लिया। साथ ही आरोपी के खिलाफ वन अधिनियम की धाराओं के FIR दर्ज की गई।

वकील ने गवाहों की साक्ष्य पर उठाया सवाल मामले की विवेचना के बाद चालान कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि प्रकरण में किसी भी स्वतंत्र अथवा आस-पास के व्यक्ति को साक्षी नहीं बनाया गया है। सभी गवाह वनकर्मी हैं। उनकी साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके अलावा ये तर्क भी किया गया है कि जिस भूमि पर आरोपी के हकाई-जुताई करने का आरोप है, वो भूमि वन भूमि न होकर राजस्व भूमि है। कार्रवाई करने वाले अधिकारी, जांचकर्ता सभी वन कर्मी ही हैं।

कोर्ट ने वनकर्मियों की साक्ष्य को दी मान्यता इस पर कोर्ट ने कहा कि अधिकारी और जांचकर्ता के रूप में कार्यरत वनकर्मी की साक्ष्य पर अविश्वास करने का कोई नियम नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुलिस की साक्ष्य को सामान्य साक्षी की साक्ष्य के रूप में लिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की अभियोजन में रुचि होती है, लेकिन उनके कथनों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसे में, जांच करने वाले अधिकारियों के कथनों का सूक्ष्मता से विश्लेषण आवश्यक होता है। कोर्ट ने आरोपी लाखन जाटव को न्यायालय उठने तक की सजा सुनाई। साथ ही आरोपी पर दो हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।

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