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The smallest river of Chambal caused havoc | चंबल की सबसे छोटी नदी ने मचाई तबाही: लोगों के घर ध्वस्त, अनाज बचा न पहनने के कपड़े, पानी भी बदबूदार हुआ – Bhind News

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चंबल संभाग की सबसे छोटी नदी सोन भद्रिका मृगा नदी ने 34 साल बाद तबाही मचाई है। यह नदी ने एक बार फिर लहार अनुविभाग के टोला रावतपुरा गांव में 50 फीट से अधिक जलस्तर हो गया। बाढ़ के पानी के कारण गांव के करीब 100 से अधिक मकान को नुकसान हुआ है।

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भिंड जिला मुख्यालय से करीब 75 किलोमीटर दूर स्थित टोला रावतपुरा गांव में सोन भद्रिका मृगा नदी ने सन् 1990 की यादों को ताजा कर दिया। इस गांव में 12 सितंबर की रात से बाढ़ का पानी आया। 13 और 14 सितंबर को बाढ़ का पानी ग्रामीणों के घरों में हिलोरें मारता रहा। 14 तारीख की रात को पानी उतर गया। इस गांव का रास्ता 15 सितंबर को खुल गया। पानी उतरते ही लोगों ने राहत की सांस ली।

मकान गिरे, सिर छिपाने का आश्रय नहीं

भिंड के टोला रावतपुरा गांव में बाढ़ का पानी उतर गया। नदी की बाढ़ के निशान घरों में साफ दिख रहे है। सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों का हुआ है जिनके कच्चे मकान है। ऐसे मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गये। लोगों की घर गृहस्थी का सामान पूरी तरह नष्ट हो गया। बाढ़ का पानी आता देख लोग जरूरत का सामान समेट ले गये। ये लोगों ऊंचाई वाले स्थान पर जा पहुंचे जब नदी उतरी तो ऐसे लोगों के कच्चे मकान ध्वस्त हो गये। ऐसे मकान में बैठने के लिए जगह बची। न सिर छिपाने का आसरा।

आंगनबाड़ी व स्कूल में भरा कीचड़

टोला रावतपुरा गांव में बाढ़ का पानी स्कूल व आंगनबाड़ी में घुस गया। बाढ़ के कारण स्कूल में रखा छात्रों के पढ़ाई लिखाई की सामग्री धष्ट हो गई। वही आंगनबाड़ी में भी कीचड़ भर गया। ऐसे में आंगनबाड़ी खुलना बंद हो गई। वही स्कूल भी नही खुल पा रहा है। हालांकि स्कूल अभी भी पानी से घिरा है।

दैनिक भास्कर टीम को देख बंधी आस

जब दैनिक भास्कर की टीम टोला रावतपुरा गांव में पहुंची तो यहां के लोगों को शासन प्रशासन से मदद की कुछ आसबंधी है कारण यह है कि अब तक इस गांव में बाढ़ पीड़ितों के बीच कोई नहीं पहुंचा है लोगों ने अपनी पीड़ा डबडबाई आंखों के साथ सुने और शासन प्रशासन से मदद की उम्मीद की आस लगाए बैठे है।

  • दैनिक भास्कर को अपनी पीड़ा सुनते हुए संतराम रजक का कहना था कि बाढ़ के कारण सब कुछ तबाह हो गया है अब कहां बैठे कहां सोए कोई स्थान मेरे पास बचा नहीं है अब यही सोच सोच कर रह रहा हूं।
  • गांव के ही सतीश गोस्वामी ने पीड़ा बताई है कि यहां बाढ़ के कारण सब कुछ नष्ट हो गया है खाने पीने के लिए सामग्री नहीं बची है उधारी पर पैसा लेकर अब गुजारा कर रहे हैं।
  • गांव की रहने वाली भारती देवी का कहना है कि अब घर में कुछ नहीं बचा है पहनने के लिए कपड़े भी नहीं बचे हैं ऐसी हालत में अब कैसे गुजरा करेंगे यह संकट का समय हम लोगों के सामने खड़ा हो गया है।
  • गांव के रामकुमार रजक का कहना है कि मैं रिश्तेदारी में गया था इधर बाढ़ आ गई थी। गांव के लोगों ने हमारे परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। अब खाने-पीने के लिए कुछ नहीं है। घर मकान भी मेरे पास बचा नहीं है। सब कुछ नष्ट हो गया है। हमारी सुनने के लिए अब तक कोई राजनेता या अफसर हमारे गांव में नहीं आया।
  • गांव के संतोष त्रिपाठी का कहना है कि बाढ़ के कारण कुछ बचा नहीं है। सब नष्ट हो गया। अब जानवरों को भूसा सूखा सूखा कर खिला रहे हैं। सन 1990 में जब बाढ़ थी तब पहली बार डॉक्टर गोविंद सिंह जनता दल से विधायक बने थे। अब 35-साल बाद बीजेपी का विधायक अम्बरीष शर्मा उर्फ गुड्डू बने हैं इस बार भी बाढ़ आई हुई है यह बढ़े ही संयोग की बात है।

जानवरों भी रातभर पानी में खड़े रहे

गांव के रहने वाले स्वामीशरण त्रिपाठी ने दैनिक भास्कर को बताया कि बाढ़ का मंजर ऐसा था कि लोगों की रूह कांप उठी। लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए। गाय-भैंस को खुल्ला कर दिया। रस्सी हटाने पर ये गाय-भैंस बाढ़ के पानी में 24 घंटे खड़े है।

पानी पीने लायक नही बचा

गांव की रहने वाली सोनम का कहना है कि बाढ़ की वजह से गांव के जलस्रोत खराब हो गये। पानी में दुर्गंध आ रही है। पानी खराब आने के कारण गांव में बीमारी फैलने का आसार बन रहे। पानी इतना खराब है एक घूंट भी गले से नीचे नही उतर रहा है।

मोबाइल भी डिस्चार्ज रहे

गांव के आज्ञाराम दीक्षित का कहना है कि बाढ़ के कारण गांव में बिजली सप्लाई 13 से लेकर 15 सितंबर तक बंद रही। लोगों के घरों में पानी न आने के कारण मोबाइल डिस्चार्ज रहे। गांव के लोगों का फोन पर संपर्क कटा रहा।

चार दिन से ऐसे ही बैठे

गांव की लड़ैती बाई का कहना है कि चार दिन हो गये। कोई गांव में नहीं आया। सब कुछ बह गया। हम लोगों ऐसे ही रहने को मजबूर हो है। खाने पीने को कुछ नही बचा।

वही रामप्रकाश दुबे का कहना.है कि बाढ़ के पानी में सब कुछ स्वाहा हो गया। मेरे पास कुछ नही बचा।

इसी तरह की पीड़ा आशाराम राठौर की है। उनका कहना है कि बाढ़ का पानी आते ही जान बचाकर ऊपरी एरिया में निकल गए। अब घर मढ़ैया नष्ट हो गई।

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