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ज्ञान, भक्ति और वैराग्य यदि बिना विवेक के प्राप्त किए जाएं तो उनका कोई महत्व नहीं रह जाता। ऐसे सत्संग और मंदिर दर्शन का भी कोई लाभ नहीं, जिनको करने से न तो हम झूठ बोलना बंद करते हैं और न ही आडबंर से दूर रहते हैं। भगवान भी इस तरह की भक्ति से कभी प्रसन
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वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट और रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के शुभारंभ सत्र में शुक्रवार को यह बात कही। कथा का यह दिव्य आयोजन समाजसेवी मन्नालाल गोयल और मातुश्री चमेलीदेवी गोयल की पुण्य स्मृति में किया जा रहा है। कथा शुभारंभ के पूर्व गीता भवन परिसर में भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई।

प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से प्रेमचंद –कनकलता गोयल, विजय-कृष्णा गोयल एवं निधि-आनंद गोयल ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा 29 अगस्त तक प्रतिदिन सांय 4 से 7 बजे तक होगी और इस दौरान विभिन्न उत्सव भी मनाए जाएंगे। कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के लिए समुचित प्रबंध किए गए हैं। पूर्णाहुति 29 अगस्त को यज्ञ, हवन एवं महाप्रसादी के साथ होगी।आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि भगवान की लीलाएं सदैव शाश्वत और सनातन होती है। भागवत ग्रंथ को कल्प वृक्ष भी कहा गया है, जिसकी छत्रछाया में भूले से भी चले जाएं तो हर शुभ संकल्प साकार हो उठते हैं। संसार परमात्मा की ऐसी रचना है, जिसमें कोई विकृति नहीं हो सकती। विकृति संसार में नहीं हमारे सोच और चिंतन में है। हम व्यर्थ ही जगत को प्रपंच मान रहे हैं, जिस दिन हमारा मन वृंदावन बन जाएगा, ये विकृतियां स्वयं भाग जाएंगे, क्योंकि तब वहां साक्षात भगवान सुकृति स्वरूप में आकर बैठ जाएंगे। जीवन को धन्य बनाना है तो अपने मोह को मोहन और वासनाओं को वासुदेव को सौंप दें, संसार से सुंदर कोई और नजर ही नहीं आएगा। भागवत ऐसा धर्म है, जो हमें अपने सत्य स्वरूप से साक्षात्कार कराता है।

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