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Definitely try the taste of Barbati Bada… | बरबटी के बड़े की मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र तक डिमांड: सब्जियों के साथ कढ़ी का मेल बढ़ाता है स्वाद; दो बार फ्राय होता है

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मुलताई-छिंदवाड़ा हाईवे पर बसा है दुनावा गांव, जहां मिलता है बरबटी की दाल का बड़ा। वो भी सब्जी वाला। जब गरमा-गरम कुरकुरे बड़े कढ़ी के साथ प्लेट में आपके सामने रखे जाते हैं तो मुंह में पानी आ जाता है।

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दुनावा के रहने वाले कलीराम पवार ने करीब 34 साल पहले बरबटी के बड़े बनाने की शुरुआत की। यह अनोखा स्वाद कुछ ही समय में लोगों को भा गया। देखते ही देखते छोटी सी टपरी ने दुकान का रूप ले लिया। यह अब विजय स्वीट्स के नाम से जिलेभर में फेमस है।

यहां के बड़े के चर्चे भोपाल, जबलपुर, छिंदवाड़ा से लेकर महाराष्ट्र तक हैं। हाईवे से गुजरने वाले ज्यादातर लोग इस बड़े को चखने के लिए यहां जरूर रुकते हैं।

विजय स्वीट्स के संचालक कलीराम पवार कहते हैं, ‘बड़े और जगह भी आपको मिल जाएंगे, लेकिन यहां का स्वाद अलग ही लगेगा। हम बरबटी की दाल से बड़े बनाते हैं, वह भी सब्जी-भाजी मिलाकर।’

बारिश के मौसम में दैनिक भास्कर एमपी का जायका सीरीज में इस बार आपको टेस्ट करवा रहा है बैतूल जिले के मुलताई में मिलने वाला बरबटी बड़ा…

बड़े का स्वाद बढ़ाने के लिए इसे दो बार तला जाता है।

बड़े का स्वाद बढ़ाने के लिए इसे दो बार तला जाता है।

हरी मिर्च, लहसुन, अदरक का पेस्ट बढ़ा देता है स्वाद

विजय स्वीट्स के बड़े के स्वाद को सब्जियां दोगुना कर देती हैं। बड़े में कभी पत्ता गोभी तो कभी फूल गोभी, कभी पालक तो कभी मेथी के साथ प्याज का मिश्रण होता है। उस पर हरी मिर्च, लहसुन, अदरक का पेस्ट डाला जाता है।

सबसे पहले दाल को भिगोने के बाद पीसा जाता है। दाल को बारीक कितना करना है, इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है। ज्यादा बारीक पेस्ट हुआ तो बड़े कुरकुरे नहीं बनेंगे।

कलीराम कहते हैं कि शॉप में सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक बड़े मिलते हैं। जब दुकान की शुरुआत की थी, तब रोजाना 50 से 100 बड़े बिकते थे। अब प्रतिदिन 2000 से ज्यादा बड़े बिक जाते हैं।

बड़े के साथ-साथ यहां के समोसों की भी डिमांड है। दिनभर में 1000 से ज्यादा समोसों की खपत है। बड़े के साथ समोसे को भी गरमा-गरम छाछ के साथ ही सर्व किया जाता है।

बरबटी की दाल के बड़े में पालक, मेथी समेत दूसरी सब्जियां मिलाई जाती हैं।

बरबटी की दाल के बड़े में पालक, मेथी समेत दूसरी सब्जियां मिलाई जाती हैं।

50 किलो दाल, 20 किलो प्याज, 5 किलो हरी मिर्च से बनता है मसाला

कलीराम कहते हैं- बड़े बनाने के लिए रोजाना 50 किलो बरबटी, 20 किलो प्याज, 5 किलो हरी मिर्च, 20 किलो पत्तागोभी, 10 किलो फूल गोभी, 5 किलो पालक या मेथी की खपत है। बड़ों को तलने के लिए हर दिन 30 लीटर तेल भी खर्च होता है। कीमत 30 रुपए प्रति प्लेट है। इसमें 2 बड़े और अनलिमिटेड कढ़ी परोसी जाती है।

खुद भी खाते हैं, पैक करवाकर घर भी ले जाते हैं

छिंदवाड़ा के कमलेश, लीलाधर और रोहित पवार ने बताया कि जब भी वे यहां से गुजरते हैं, बड़े खाने जरूर आते हैं। पैक करवाकर घर भी ले जाते हैं l उन्होंने कहा कि कढ़ी के साथ जो बड़ा मिलता है, उसका स्वाद बहुत अलग है। घरवालों को पता चल जाए कि हम मुलताई जा रहे हैं तो बड़े लाने की फरमाइश जरूर होती है।

कच्चा न रहे, इसलिए दो बार तलते हैं

कलीराम ने बताया कि बड़ा कच्चा नहीं रहे, इसलिए दो बार तला जाता है। पहले दाल के मिक्सर का गोला बनाकर इसे तेल में डाला जाता है। कुछ देर बाद ही इस तेल से बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद इसे दोनों हथेलियों के बीच रखकर चपटा करते हैं। इसके बाद दोबारा गर्म तेल में तलने के लिए डाल देते हैं।

सुनहरा रंग आने तक इसे फ्राय किया जाता है। ऐसा करने से बड़ा कच्चा नहीं रहता। वहीं, स्वाद भी बढ़ जाता है। दो बार तलने के बाद बड़े में तेल बहुत कम रह जाता है।

कढ़ी के लिए घर में बनाते हैं छाछ

कढ़ी बनाने के लिए घर में बना हुआ छाछ ही इस्तेमाल किया जाता है। बड़े के साथ यहां मिठाई भी बेची जाती है। ऐसे में दूध बड़ी मात्रा में लिया जाता है। दूध को जमाकर छाछ बनाया जाता है। इससे ही कढ़ी बनाई जाती है। कढ़ी में मीठी नीम के पत्ते सहित जीरा, राई, अदरक, लहसुन का छौंक लगाया जाता है।

कढ़ी के लिए घर में बनाई छाछ का ही इस्तेमाल किया जाता है।

कढ़ी के लिए घर में बनाई छाछ का ही इस्तेमाल किया जाता है।

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