संघर्ष की मिसाल बनीं दिव्यांग महिला, लेकिन कैमरे पर छलके आंसू, आखिर क्यों रो पड़ीं रेणु कुमारी?

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रेणु कुमारी, जहानाबाद की दिव्यांग महिला, जीविका से जुड़कर श्रृंगार की दुकान चला रही हैं. जिला प्रशासन से मिली मोटराइज्ड ट्रायसाइकिल ने उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ाई है. लेकिन इसके बावजूद वो आज खून के आंसू रो रही है. …और पढ़ें
दिव्यांग रेणु कुमारी की तस्वीर
हाइलाइट्स
- रेणु कुमारी दिव्यांग होते हुए भी श्रृंगार की दुकान चला रही हैं.
- जिला प्रशासन से मिली मोटराइज्ड ट्रायसाइकिल से रेणु को सहूलियत मिली.
- रेणु को जीविका से 10 हजार की आर्थिक मदद मिली, जिससे दुकान शुरू की.
शशांक शेखर/जहानाबाद. “मेरे दिल में यह है कि खुद की मेहनत से कमाएं और खाएं, किसी का सहारा न बनें तो अच्छा महसूस होता,” यह कहना है 50 साल की रेणु कुमारी का. जहानाबाद की एक छोटी सी बस्ती में रहने वाली दिव्यांग रेणु कुमारी दोनों पैरों से लाचार हैं, लेकिन कुछ कर गुजरने का हौसला रखती हैं. इसी जज्बे के चलते वह जीविका से जुड़ी हुई हैं और समूह से मदद लेकर एक छोटी सी श्रृंगार की दुकान चला रही हैं.
अक्सर वह पैदल भी कहीं आने-जाने के लिए मजबूर थीं, लेकिन कुछ दिन पहले ही जिला प्रशासन से उन्हें मोटराइज्ड ट्रायसाइकिल मिली है. इससे उन्हें न सिर्फ सहूलियत मिली है, बल्कि आत्मनिर्भरता का अहसास भी हो रहा है, जिससे वह अच्छा महसूस कर रही हैं.
माता पिता ने भी छोड़ दिया साथ
Local 18 की टीम से बात करते हुए रेणु कुमारी की आंखों में आंसू छलक पड़े. उन्होंने कहा, “काश हमें भी कुछ सुविधाएं मिल जातीं, तो हम किसी पर बोझ नहीं बनते.” अपने हौसले के दम पर वह दिव्यांग होते हुए भी श्रृंगार की दुकान चला रही हैं और खुद के साथ परिवार का पेट पाल रही हैं. उन्होंने बताया कि माता-पिता के गुजर जाने के बाद, अनमैरिड होने के कारण वे पूरी तरह से अकेली हो गईं. दोनों पैर से लाचार होने के बावजूद वह किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहतीं, लेकिन मजबूरी उन्हें दूसरों का सहारा लेने पर मजबूर कर देती है.
10 हजार से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
रेणु कुमारी बताती हैं कि उनका कोई भाई भी नहीं है, जिससे उन्हें सहारा मिल सके. हालांकि, वह जीविका से जुड़ी हुई हैं और इसी के माध्यम से उन्हें कुछ सहायता मिली है. उन्होंने बताया कि जब 10 दीदियों ने उन्हें गरीब दीदी के रूप में समूह से जोड़ा, तो उन्हें थोड़ी आर्थिक मदद भी मिली. इसी मदद के जरिए उन्होंने अपने लिए एक श्रृंगार की दुकान शुरू की. जीविका से उन्हें 10 हजार रुपए की राशि मिली थी, जिससे वह अपना गुजारा कर रही हैं.
ऐसे हुआ था इनका जीविका से ताल्लुकात
रेणु कुमारी बताती हैं कि उन्हें नहीं पता था कि जीविका जैसा कोई संगठन भी है. कुछ महिलाओं ने उन्हें इसकी जानकारी दी और कहा कि गरीब दीदी के चयन के लिए उन्हें चलना होगा, क्योंकि वे इस योजना के लिए उपयुक्त हैं. गांव से थोड़ा दूर जाना था, इसलिए उनकी माता जी वहां गईं और उनका चयन गरीब दीदी के रूप में हो गया. इसके बाद उन्हें जो राशि मिली, उसका सदुपयोग करते हुए उन्होंने एक छोटी श्रृंगार की दुकान शुरू की. हालांकि, दुकान की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और हालात दिनों-दिन खराब होते जा रहे हैं.
बीमारी से टूट गई कमर
रेणु कुमारी बताती हैं कि पहले स्थिति सामान्य थी, जिससे हर महीने 15 से 20 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती थी, लेकिन बीमारी ने उनकी पूरी पूंजी खत्म कर दी. अब हालत इतने खराब हो गए है कि उनके पास दुकान के लिए नया सामान लाने तक के पैसे नहीं हैं. उनका संघर्ष जारी है, लेकिन उन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म या किसी तरह की सहायता मिलने की जरूरत है, जिससे उनका व्यवसाय फिर से चल सके. साथ ही, वे यह भी बताती हैं कि उनका गांव, बाजितपुर, बहुत छोटा है. यहां से मुख्य सड़क तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है. अगर वहां पक्की सड़क बन जाए, तो आवागमन में आसानी होगी और गाड़ियां भी आ-जा सकेंगी.
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