जिस चावल की भूसी को जलाने से प्रदूषण फैल रहा था, उसी से सिर्फ एक साल में कमा लिए 20 लाख रुपए, जानिए कैसे – News18 हिंदी

नई दिल्ली. यह कहानी है बिभू साहू की. लेकिन दूसरी कहानियों से जरा हटकर है. बिभू ओडिसा के उस कालाहांडी से हैं जो एक समय तक भुखमरी की वजह से खबरों में रहता था. उसी कालाहांडी में बिभू शिक्षक थे लेकिन 2007 में उन्होंने धान का व्यवसाय करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी. यहां तक सब कुछ ठीक था लेकिन उनकी कहानी में नया मोड़ तब आया, जब उन्होंने एक इनोवेशन किया और इससे सालाना 20 लाख रुपए की कमाने लगे. चावल की भूसी को “काले सोने” में बदलने वाले बिभू की कहानी “वेबसाइट द बेटर इंडिया ने प्रकाशित की है. हरिप्रिया एग्रो इंडस्ट्रीज के मालिक बिभू की जुबानी जानिए कैसे उन्होंने आग में व्यर्थ में जला देने वाली चावल की भूसी को कमाई का जरिया बना दिया…
“कालाहांडी ओडिशा में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. यहां हर साल करीब 50 लाख क्विंटल धान की खेती होती है. धान के व्यवसाय के बाद मैंने भी वर्ष 2014 में चावल मिल के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया. यहा दर्जनों पैरा ब्लोइंग कंपनियां हैं, जो चावल का ट्रींटमेंट करती हैं. इससे बड़े पैमाने पर भूसी का उत्पादन होता है. केवल मेरी मिल में ही हर दिन करीब 3 टन भूसी का उत्पादन होता है. यहां आमतौर पर, भूसी किसी खुली जगह में फेंक दी जाती थी या फिर जला दी जाती थी. हवा चलने के बाद इससे सांस लेने में और आंखों में काफी दिक्कत होती है. पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता था. इसकी शिकायत मोहल्ले के कई लोगों ने की. लोगों की बढ़ती शिकायत को देख, हमने भूसी को पैक कर, गोदाम में रखना शुरू कर दिया। लेकिन, जल्द ही जगह की कमी हो गई.
कुछ समझ में नहीं आ रहा था. फिर, मैंने थोड़ा रिसर्च किया. मुझे मालूम हुआ कि चावल की भूसी का इस्तेमाल स्टील उद्योग में एक थर्मल इन्सुलेटर के रूप में किया जा सकता है. इसमें 85% सिलिका होती है. इसलिए यह स्टील रिफ्रैक्टर में इस्तेमाल के लिए काफी अच्छा होता है। इस तरह, जब बॉयलर में जली भूसी का इस्तेमाल किया जाता है, तो उच्च तापमान के कारण इससे बहुत अधिक प्रदूषण नहीं होता है.
रिसर्च तो कर ली थी लेकिन असल समस्या इसके क्रियान्वयन की थी. फिर मैंने किसी तरह पैसा जुटाया और मिस्र की एक स्टील कंपनी का भी दौरा किया. एक सैंपल के साथ उस कंपनी को अपना प्रस्ताव दिया. उन्होंने अपनी रुचि दिखाई और पूछा कि क्या यह उन्हें पाउडर के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है. मैंने कहा कि यह कठिन होगा, क्योंकि यह हवा में उड़ सकती है. फिर, काफी विचार विमर्श के बाद यह तय हुआ कि भूसी को एक गोली के रूप में बदल कर निर्यात किया जाएगा.
कंपनी से बात तो मैं कर आया था लेकिन एक नई चुनौती सामने आ गई. मुझे नहीं पता था कि इससे गोली कैसे बनाई जाती है. इसलिए मैंने महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों के विशेषज्ञों को बुलाया. लेकिन, कुछ नतीजा नहीं निकला. पैलेट बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए एक पोल्ट्री फार्म से भी संपर्क किया. लेकिन, यह कोशिश भी व्यर्थ गई.
अगले कुछ महीनों तक मैंने अपने सभी संसाधनों को सिर्फ रिसर्च पर झोंक दिया. मुझे लगा मेरा कान्सेप्ट प्रैक्टिकल नहीं है और मैंने लगभग हार मान ली थी. लेकिन, ठीक उसी समय, मेरे एक स्टाफ ने इसके समाधान के लिए कुछ समय मांगा। इसके बाद, वह अपने गांव गए और चार लोगों के साथ आए. फिर, उनकी मदद से हमने कुछ प्रयोग किए और हम सफल हो गए. शुरूआत में पैलेट को सही आकार में बनाने के लिए कुछ हफ्ते का समय लगा. हमारे पेलेट 1 मिमी से 10 मिमी के आकार में थे. अब इस खेप को खपाने के लिए मैंने फ्रांस, जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और यूनाइटेड किंगडम की कंपनियों को ईमेल लिखे. आखिरकार हमारी पहली खेप, 2019 में सऊदी अरब गई.
कंपनियों को यह उत्पाद काफी रास आया, क्योंकि पेलेट को काफी अच्छे से जलाया गया था. साथ ही, ये काफी सस्ते थे और इनकी गुणवत्ता अच्छी थी. साल 2019 में मैंने 100 टन पेलेट बेचकर 20 लाख रुपए कमाए. इस तरह, हमने भूसी को काले सोने में बदल दिया.
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Tags: New Business Idea, Success Story
FIRST PUBLISHED : January 21, 2021, 14:51 IST
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