सृजन साधना कविगोष्ठी: कुछ तुम गम्म खाओ कुछ हम गम्म खाएँ

छतरपुर। माँ वीणापाणी की अर्चना एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ चित्रगुप्त मंदिर में सृजन साधना कविगोष्ठी का श्री गणेश हुआ। सर्वप्रथम कवि हरि शंकर जोशी सन्तू ने माँ वागेश्वरी के चरणों में जय वीणापाणी माँ वन्दना प्रस्तुत की तथा चैत्रशुक्ल प्रतिपदा हमारा् नया वर्ष है भाई तत्पश्चात श्री सी कवि सीतारामजी साहू नर्मलने प्रेममयी गजल हृदय में बसा जो बिछुड़ता कहाँ है सुनाकर सबको प्रेम के रंग में सराबोर कर दिया।कवि नीतेन्द्र सिंहजी परमार भारतने प्रभावी स्वर में पुस्तकों की पीड़ा का बखान किया। कवि हरि शंकर राठौरजी ने नया वर्ष प्यारा लगे सभी को पंक्तियाँ मधुर स्वर में सुनाईं। कार्यक्रम के कुशल संचालक प्रमोदजी सारस्वत ने कर्णप्रिय स्वर में तुमको मेरा प्यार पुकारे मीत चले आओ गीत को अभिव्यक्ति दी। कवयित्री ऊषा जल किरण अग्रवालजी ने मनमोहक गीत सबके अपने स्वार्थ मिले,एक वही निस्वार्थ मिला। कवि नरेन्द्रजी अनुरागी ने इस कदर मुझे वो सताता गीत द्वारा अपने अन्त: की वेदना प्रकट की। मृदुस्वर की धनी कवयित्री आरती अक्षरा ने हृदयस्पर्शी गीत बचे जो तीर तरकश में तुम्हारे वो चला लो तुम सुनाया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि राम कृपालजी शुक्ल शीतल ने मनमुग्धकारी रचना, कुछ तुम गम्म खाओ कुछ हम गम्म खाएँ प्रस्तुत की तो दीर्घा ठहाकों से गूँजकर आनन्द दीर्घा में परिवर्तित हो गया। कार्यक्रम के संयोजक कवि अंशुमानजी खरे अवनीन्द्र ने चन्द्र भान जानता कि कौन से पंक्तियों से युक्त सुन्दर काव्यपाठ किया। प्रखर ओजस्वी कवि जीतेन्द्र सिंह यादव जीत की रचना सत्य कितना ही कड़वा हो कहकर रहेंगे हम सराहनीय गीत सुनकर देर तक करतल ध्वनि गूँजती रही। कवि राम बिहारीजी सक्सेना राम की मेरु शिखर हिम छाय रही रचना सभी को पसन्द आई। मुख्य कविगोष्ठी के अध्यक्ष महोदय डा.आर.बी.पटेल अनजान ने एक सुहावनी बुन्देली रचना हम साँची कै रए घर के कामन में पिरे जा रए सुनाई मुख्य अतिथि महोदय श्री शंकर लालजी सोनी का उद्बोधन हुआ। अध्यक्ष महो.ने सभी को शुभकामनाएँ दीं और गोष्ठी सम्पन्न हुई।