Started making Moringa powder and tablets during lockdown | लॉकडाउन में मुनगा पाउडर-टेबलेट बनाना किया शुरू: कुपोषण मिटना दूर हुआ तो अब नागपुर, भोपाल और उज्जैन से डिमांड – Sagar News

2020 में कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में जब आवागमन बंद हुआ और रोजगार के लाले पड़े तब केसली के दंपती ने स्वरोजगार की तलाश की। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और अखबारों से रोजाना सूचना लेने पर उनकी यह खोज कुपोषण दूर करने वाले मुनगा से जुड़ा स्वरोजगार स्थापना
.
उन्होंने पढ़ा कि मुनगा के सेवन से कुपोषण मिटता है। इसके बाद उन्होंने मुनगा पाउडर और टेबलेट बनाने की विधि सीखी। इन्हें बनाना शुरू किया। पहले साल सिर्फ 5 हजार रुपए की बिक्री हुई, परंतु चार साल बाद यही टर्नओवर 5 लाख रुपए सालाना पर पहुंच गया।
उनके इस मुनगा पाउडर और टेबलेट की डिमांड लगातार बढ़ रही है। स्थिति यह है कि इसकी आपूर्ति के लिए अब वे प्रोसेसिंग यूनिट को बढ़ाने जा रहे हैं। पाउडर तो वे केसली और सिदगुवां में बना ही रहे हैं, अब टेबलेट बनाने के लिए मशीनें केसली में लगाने जा रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सप्लाई की जा सके। पाउडर और टेबलेट की जांच क्वालिटी कंट्रोल लैब भोपाल से कराई जाती है, जिससे इसकी गुणवत्ता प्रमाणित होती है।
पैसों की जरूरत पड़ी तो महिलाओं का समूह बनाया
ऊषा रजक और उनके पति सुंदर रजक ने जब मुनगा से पाउडर और टेबलेट बनाना शुरू किया तो पैसों की जरूरत पड़ी। ऊषा बताती हैं कि मुझे जानकारी लगी कि समूहों को पैसे मिलते हैं। इसके बाद महिलाओं को जोड़कर समूह बनाया और जो राशि मिली, उससे ग्रेडिंग और ग्राइंडिंग करने वाली मशीनें लीं। चार-पांच महिलाओं ने साथ मिलकर काम शुरू किया तो दूसरे साल ही टर्नओवर बढ़कर 50 हजार तक जा पहुंचा, जो अब 5 लाख है।
कच्चे माल की कमी से 22 टन का ऑर्डर लौटाना पड़ा
सुंदर बताते हैं कि इस काम में बहुत स्कोप है। यदि लोग मुनगा लगा लें तो हम 10 रुपए किलो में हरी पत्तियां और 30 से 40 रुपए किलो तक में मुनगा की फली खरीद लेते हैं। हमें एक नामी कंपनी से 22 टन पाउडर का ऑर्डर मिला था लेकिन हमारे पास इतना रॉ मटेरियल ही नहीं था, इतने संसाधन भी नहीं थे, इसलिए ऑर्डर कैंसिल कर दिया था। आजीविका मिशन के सहयोग से दो प्रोसेसिंग यूनिट लगा चुके हैं। लोन के लिए आवेदन किया है।
Source link