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He was immersed in devotion to God… that’s why you cut his neck? | कातिल बोले-भक्ति में डूबे थे, हत्या का होश नहीं रहा: कोर्ट ने कहा-महिलाओं में दया, करुणा नहीं दिखी; 6 आरोपियों को दी फांसी की सजा – Madhya Pradesh News

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मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स के पार्ट 1 में आपने पढ़ा कि 25 अगस्त 2014 की रात मंडला जिले के एक छोटे से गांव तौरदरा से पुलिस को एक फोन कॉल आता है- देवी ने आज एक बलि ली है। थाना निवास की पुलिस मौके पर पहुंचती है तो सन्न रह जाती है। गांव के एक आंगन में अधजली

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शव की पहचान बृजलाल बरकड़े के रूप में होती है। पत्नी बताती है- हमारा 15 साल का बेटा सचिन कमजोर है इसलिए पति के साथ झाड़-फूंक के लिए गांव के मुकेश के घर गई थी। वहां अचानक पार्वती बाई सहित अन्य को देवी आ गई। सभी नाचने लगे। पार्वती बाई ने मेरे पति की गर्दन में त्रिशूल घोंपकर हत्या कर दी। फिर मिट्टी का तेल डालकर शव को जला दिया।

पुलिस सभी 6 आरोपियों- पार्वती बाई, भागवती बाई, सुरतिया बाई, गेंदलाल सिंह गौड़, डुमारी सिंह, मुकेश गौड़ के खिलाफ साजिश, हत्या और सबूत मिटाने की धाराओं में केस दर्ज करती है। गांव में डर का माहौल था। गवाह चुप थे और आरोपी खुले में घूम रहे थे।

आखिर क्यों दी गई निर्दोष की बलि? कैसे पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जुटाए सबूत? आखिर में कोर्ट ने आरोपियों को छोड़ दिया या सजा सुनाई?

पुलिस ने सभी सबूत इकट्‌ठा कर जांच के लिए भेजे थाना प्रभारी वर्षा पटेल ने इस केस को अंधविश्वास नहीं, बल्कि सुनियोजित हत्या मानकर जांच शुरू की। संदेह के दायरे में सबसे पहले आया मुकेश गौड़ का घर, जहां घटना हुई थी।

पुलिस ने एक-एक कर आरोपियों को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ की। निरीक्षक ‌वर्षा पटेल ने 26 अगस्त को आरोपी पार्वती बाई से पूछताछ की। जिसमें उसने बताया कि हत्या में उपयोग किया गया त्रिशूल उसने घर के भीतर रखा है, जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया। हत्या के समय पार्वती बाई द्वारा पहने गए कपड़े भी पुलिस ने जब्त किए। उन पर खून लगा हुआ था।

आरोपी मुकेश ने मिट्‌टी के तेल की काले रंग की केन घर के अंदर से जब्त करवाई। आरोपी गेंद सिंह के पास से पुलिस ने तमूरा बरामद किया। आरोपी सुरतिया बाई ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि उसने डुमारी के हाथ में घटना के समय मौजूद फरसे को आग में लकड़ी के साथ फेंक दिया था। पुलिस ने उसे भी बरामद किया।

पत्नी की गवाही- देवी के नाम पर मेरे पति को जला दिया बृजलाल की पत्नी सुखमत बाई ने कोर्ट में बताया कि वो अपने पति के साथ 15 वर्षीय बेटे सचिन को लेकर तौरदरा गांव में मुकेश के घर गई थी। वहां कीर्तन हो रहा था। बेटा बीमार था इसलिए उसे लेकर वो आंगन में बैठ गई।

शाम करीब 7 बजे आरोपी मुकेश, गेंद सिंह, डुमारी, पार्वती बाई, भागवती बाई, सुरतिया बाई और एक नाबालिग लड़की को भाव आ गए।

वो पति को बचाने के लिए दौड़ी मगर किसी ने उसकी मदद नहीं की।

जादू टोना करने वाला बताकर मारने को कहा होलकर मरावी ने कहा- मुकेश के घर में भजन-कीर्तन हो रहा था। इसी बीच सुरतिया बाई को भाव आ गया और वो बोली कि बृजलाल शोधन (जादू टोना करने वाला) है। इसे मारो। बृजलाल को पकड़कर आरोपियों ने उसके साथ मारपीट की।

होलकर ने कहा कि बृजलाल को छोड़ दो, लेकिन आरोपी कहने लगे कि वो उसे मृत्युदंड देंगे।

कोर्ट में उठे तर्क कैसे खारिज हुए…

1. जब हत्या हो रही थी तो पत्नी और होलकर बीच में क्यों नहीं आए? कोर्ट ने कहा- पत्नी सुखमत बाई पति की गर्दन में पार्वती बाई द्वारा त्रिशूल घोंपने पर मदद के लिए चिल्ला रही थी। उसका भाई होलकर भी गांव वालों से बृजलाल को बचाने के लिए बोल रहा था। मगर बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया।

7-8 व्यक्ति त्रिशूल, फरसा लेकर अगर किसी व्यक्ति को मारने पर आमादा हो, छाती पर कोई तमूरा बजा रहा हो, शरीर के अंगों को काटा जा रहा हो, कोई मिट्‌टी का तेल डालकर आग लगा रहा हो तो ऐसी भयानक और पाशविक स्थिति को देखकर कोई भी सामान्य व्यक्ति बीच बचाव करने का साहस नहीं कर सकेगा।

2. आरोपी ईश्वर भक्ति में डूबे थे, इसलिए होश नहीं था कोर्ट ने कहा- बताया गया है कि आरोपी पार्वती बाई पहले झाड़-फूंक करती थी। यह पता चला कि पार्वती बाई को नरबदिया माता आती हैं। जब उसे नरबदिया माता आती हैं तो उसे होश नहीं रहता है। माता का भाव आने पर पार्वती बाई खेलते-खेलते गिर भी गई थी।

लेकिन ये बात भी साफ हुई कि भाव आने पर आदमी गिर जाता है तब भी उसे समझ रहती है। यानी भाव आने पर भी क्या सही है, क्या गलत…इस बात का पूरा ज्ञान संबंधित व्यक्ति को बना रहता है।

लेकिन ये साफ था कि भाव आने पर सुरतिया बाई ने बृजलाल को शोधन कहते हुए उसे पकड़ने और मारने के लिए कहा था, जिसके बाद ही बृजलाल की हत्या की गई।

इससे साफ होता है कि बृजलाल की हत्या का कारण झाड़-फूंक और उसके पीछे अंधविश्वास को लोगों में प्रमाणित करना है ताकि आरोपी खुद को दैवीय शक्तियों वाला बता सकें। अपने आप को लोगों के बीच इस रूप में स्थापित कर सकें।

महिलाओं में दया और करुणा, लेकिन इनमें नहीं दिखी कोर्ट ने पूछा कि आरोपियों के पास अपने बचाव में कोई और सबूत है? इस पर आरोपी सबूत पेश नहीं कर पाए।

केस में कोर्ट ने माना कि घटना के समय आरोपी सुरतिया बाई को शंका हुई कि बृजलाल किसी तांत्रिक विद्या को जानता है और उसके द्वारा जादू-टोना किया जाता है। इससे उसकी विद्या काम नहीं कर रही है।

पार्वती बाई ने त्रिशूल बृजलाल के गर्दन में घोंप दिया। बृजलाल की दोनों हाथ की हथेलियां, दोनों पैर के पंजे और आधा सिर काट दिया गया। उसे उसी अवस्था में मिट्टी का तेल डालकर जला दिया गया। उसके शव पर कोई भी निशान शेष न रह जाए इसलिए आरोपियों ने बृजलाल के जलते हए शरीर पर लकड़ियां लाकर डाल दीं।

कोर्ट ने कहा- बृजलाल धार्मिक विश्वास को लेकर अपने लड़के के इलाज के लिए आरोपियों के प्रति आस्था दर्शित करते हुए वहां आया था। आरोपियों और बृजलाल के बीच आपसी न्यास और विश्वास की स्थिति थी। बृजलाल या कोई भी व्यक्ति कभी सपने में भी यह कल्पना नहीं कर सकता था कि जिसके प्रति वह आस्था और विश्वास को लेकर अपने संकटों के समाधान का हासिल करने आया है, उसी व्यक्ति के द्वारा उसकी इस तरह निर्दयता से हत्या कर दी जाएगी।

पार्वती बाई, सुरतिया बाई और भागवती बाई महिला हैं। महिला होने के बावजूद अपराध में प्रमुखता से इन्हीं द्वारा भाग लिया गया है, जबकि सामान्य रूप से करुणा और दया किसी भी महिला के अंदर होना अपेक्षित रहता है। आरोपी न तो विकृत चित्त के हैं और न ही मानसिक रोगी हैं। बौद्धिक रूप से परिपक्व मस्तिष्क के हैं। मगर उनके चेहरे पर अपने घृणित काम के लिए कोई भी पश्चाताप दिखाई नहीं पड़ता।

धर्म को बनाया व्यापार का साधन, सभी आरोपियों को फांसी की सजा कोर्ट ने कहा- आधुनिक समाज में धर्म को व्यापार का साधन बना दिया गया है। धर्म के नाम पर खुद को देवी-देवताओं का विशेष कृपा पात्र बताते हैं। भोली-भाली जनता को कष्टों से मुक्ति दिलाने की गारंटी लेते हैं। लोगों की अज्ञानता, उनकी धार्मिक आस्था और विश्वास को अंधविश्वास में परिवर्तित कर उसका अपने पक्ष में शोषण करते हैं।

यदि उसमें कोई व्यक्ति व्यवधान बनने का साहस करता है तो उसकी परिणीति बृजलाल जैसी होती है। आरोपियों के कृत्य की प्रकृति को देखते हुए उन्हें समाज में जीने का अधिकार नहीं है। अगर उनके साथ न्यायिक नम्रता की गई तो इसे न्यायिक पंगुता मानकर ऐसे अपराधी अपराध करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। तब इस समाज को कानून की मदद से चला पाना कठिन होगा, क्योंकि आरोपियों की मानवीय मूल्यों के प्रति न तो कोई श्रद्धा है और न ही उनके प्रति उनका विश्वास है।

सभी आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई जाती है।

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