Home मध्यप्रदेश Former Chief Justice Suresh Kait said: Collegium system is dishonest | पूर्व...

Former Chief Justice Suresh Kait said: Collegium system is dishonest | पूर्व चीफ जस्टिस सुरेश कैत बोले-कॉलेजियम सिस्टम बेईमान: MP में 90% पिछड़ा, दलित आदिवासी….फिर भी एससी-एसटी से कोई हाईकोर्ट जज नहीं बना – Bhopal News

33
0

[ad_1]

एमपी हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत का सम्मान करते डोमा परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष एआर सिंह।

एमपी के पूर्व मुख्य न्यायधीश सुरेश कुमार कैत ने कॉलेजियम सिस्टम पर हमला बोला। रिटायर्ड चीफ जस्टिस कैत ने ये सवाल उठाया कि मप्र का हाईकोर्ट 1956 का है। मप्र सरकार के डाटा के अनुसार प्रदेश में एसटी-एससी और बैकवर्ड क्लास 90 प्रतिशत से ऊपर हैं। लेकिन, मध

.

भोपाल के समन्वय भवन में दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज एवं आदिवासी संगठनों (DOMA) के परिसंघ का सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मप्र हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत, परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद उदित राज, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष एआर सिंह मौजूद थे।

कैत बोले- जो भाषण लिखते थे वो बाहर कम बोलते थे सम्मेलन में मप्र हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि जिस बाइब्रेशन से यह मंच चल रहा है उतना बायब्रेशन मेरे भाषण में दिखाई नहीं देगा क्योंकि हम जो भाषण लिखते थे वो जजमेंट में लिखते थे, बाहर बोलते कम थे।

पूर्व चीफ जस्टिस सुरेश कैत ने कहा- मैं स्टूडेंट लीडर रहा। एडवोकेट के समय भी मैने कुल 6 चुनाव लड़े। जिनमें से तीन जीते और जो तीन चुनाव हारे मैं उनमें हारा नहीं, बल्कि हर हार में भी मेरी जीत थी। कैत ने कहा: मैं दिल्ली हाईकोर्ट का जज एससी, एसटी, बीसी….. मैं ओबीसी की बात नहीं कर रहा, इन वर्गों से मैं पहला हाईकोर्ट का जज रहा। और आज तक एससी, एसटी का कोई दूसरा एडवोकेट से जज नहीं बना। ये सोचने की बात है।

हम ये नहीं कहते कि हमारी तरक्की नहीं हुई। आप को यहां बैठे देखकर पता लगता है कि आप अच्छे कपड़े पहने ठीक से बैठे हैं लेकिन ये कुछ नहीं हैं। क्योंकि ये देश किसी एक जाति का नहीं बल्कि सभी जातियों और सभी धर्मों का है। उसमें भागीदारी जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी मिलनी चाहिए।

जिस विभाग में रिजर्वेशन नहीं, वहां रिप्रजेंटेशन भी नहीं पूर्व सीजे कैत ने कहा-मैं अपनी बात नहीं कर रहा ध्यान रखना कि मेरे लिए भी ये हुआ है। और मेरे लिए जो कुछ हुआ है उसको मैं ज्यादा कम्पलेन नहीं करता क्योंकि, बोलने वाला और समाज के लिए करने वाले को कोई पसंद नहीं करता। खासकर जिनके हाथ में सिस्टम है। आपके हाथ में सिस्टम नहीं हैं। आप चाहे जितनी चर्चा करो हमारे कि बहुत अच्छा किया ये किया वो किया। लेकिन जिनको डिसाइड करना है उनके लिए जितने चर्चें बनते हैं उतना उल्टा काम होता है। लेकिन, उसकी हमने परवाह नहीं की। जो मैंने किया मैं प्राउड फील करता हूं।

मप्र हाईकोर्ट में SC-ST का आज तक जज नहीं बना कैत ने कहा- मप्र में जो राज्य सरकार का डाटा है उसके मुताबिक इंडिया में एससी-एसटी, बैकवर्ड क्लास सबसे ज्यादा हैं। 90% से ऊपर हैं सरकार का डाटा 93% है हम 90% ही बता रहे हैं। हाईकोर्ट में कोई भी आज तक एससी, एसटी का एक भी जज न सर्विस से और न ही एडवोकेट से जज बना।

आपका मप्र हाईकोर्ट 1956 का हाईकोर्ट है। क्यों? एडवोकेट नहीं थे? कैंडिडेट नहीं थे लेकिन, ये बेईमानी है कॉलेजियम सिस्टम की बेईमानी है। कॉलेजियम में कोई खराबी नहीं, मैं बताता हूं कि बेइमानी क्या है क्योंकि, सिस्टम कोई परफेक्ट तभी हो सकता है जब आप उसमें एक लाइन बनाएंगे कि इतने प्रतिशत इनका भी रिप्रिजेंटेशन होगा। नहीं तो नहीं आएंगे।

ज्यूडिशियरी पर सब चुप हैं कैत ने कहा- अगर पूरे देश के हाईकोर्ट की मैं बात बताऊं तो एससी, एसटी और बैकवर्ड क्लास तीनों को मिलाकर आज की डेट में हाईकोर्ट के 15 से 16% जज हैं। तो 80-85% के सिर्फ 15-16% जज? ये तब तक चलेगा जब तक आप आवाज नहीं उठाएंगे।

ज्यूडिशियरी के लिए सब चुप हैं जितने भी कर्मचारी हैं सब उलझे हैं किसी के प्रमोशन रुके हैं, किसी की एसीआर खराब कर दी, किसी का गलत ट्रांसफर कर दिया गया। लेकिन, ज्यूडिशियरी की बहुत महत्ता है आप उसको समझ नहीं रहे हैं। आप ज्यूडिशियरी के लिए आवाज उठाओ कि ज्यूडिशयरी में हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में रिप्रेंटेशन रहे।

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here