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KARGIL WAR STORIES: कारगिल की जंग में LOC को पार नहीं करना था. यह साफ आदेश थे. इसका मतलब यह नहीं था कि सेना ने बाकी तैयारी नहीं कर रखी थी. सेना की कई बटालियान को ऑफेंसिव ऑपरेशन के लिए पूरी तरह से तैयार किया गया…और पढ़ें
कारगिल जंग में पाकिस्तान में घुसने की थी पूरी तैयारी
हाइलाइट्स
- कारगिल युद्ध में LOC पार नहीं करने का आदेश था.
- भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसने की तैयारी कर रखी थी.
- ऑफेंसिव फॉर्मेशन को एक फोन कॉल का इंतजार था.
जंग खत्म होने के 4 महीने बाद तक फॉर्मेशन वहीं डटी रही
भारतीय सेना कार्रवाई के हिसाब से दो फॉर्मेशन में बंटी होती है – एक डिफेंसिव फॉर्मेशन और दूसरा ऑफेंसिव फॉर्मेशन. ऑफेंसिव में भी दो अलग-अलग तरह की फॉर्मेशन होती हैं, जिसमें एक दुश्मन से लड़ाई लड़ती है और दूसरी दुश्मन के इलाके में घुसकर कब्जा करती है. उस ऑफेंसिव फॉर्मेशन को लीड कर रहे एक सेना के अफसर ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर पूरी कहानी बताई. बीस साल पहले एक इन्फैंट्री बटालियन को जनरल मोबिलाइजेशन का ऑर्डर मिला. महज 3-4 दिन के अंदर छुट्टी और अलग-अलग कोर्स के लिए गए अफसर और सैनिकों को वापस बुला लिया गया था. 7-8 दिनों के भीतर बटालियन को रवाना कर दिया गया था. सबको पहले से ही बता दिया गया था कि वे किस तरह की लड़ाई के लिए जा रहे हैं और कहां जा रहे हैं. उनकी बटालियन को जम्मू-कश्मीर और पंजाब के अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास तैनात किया गया था. जिस ऑपरेशन की जिम्मेदारी उन्हें दी गई थी, वह बेहद खतरनाक था. इस इन्फैंट्री बटालियन को जिम्मा सौंपा गया था पाकिस्तान में घुसकर उनके इलाकों पर कब्जा करने का. 15 दिन के अंदर बटालियन की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी थी. ट्रेनिंग कड़ी थी और किसी भी तरह की चूक गुंजाइश ही नहीं थी. फिर हो रहा था सरकार की तरफ से फाइनल ऑर्डर का इंतजार. यानी फाइनल असॉल्ट का. यह इंतजार कारगिल की लड़ाई खत्म होने के 4 महीने बाद तक चलता रहा.
एक तरफ कारगिल में पाकिस्तान की सेना को मार भगाया जा रहा था तो दूसरी तरफ पाकिस्तान में घुसकर कब्जा करने की तैयारी हो रही थी, ताकि पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके और कारगिल में पाकिस्तान को कमजोर किया जा सके. भारत-पाकिस्तान की सीमा पर इस तरह कई बटालियनों को तैनात किया गया था. सेना के अधिकारी के अनुसार, उनके बटालियन कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 27 ऑफिसरों ने फॉरवर्ड पोस्ट जाकर पूरी रैकी कर ली थी और पूरी योजना तैयार कर ली गई थी कि कौन-कौन सी बटालियन दुश्मन के इलाकों में कहां से और कब घुसेगी. अधिकारी के मुताबिक मई के आखिरी हफ्ते से उनकी ट्रेनिंग शुरू हो गई थी. ट्रेनिंग के समय हथियार थे लेकिन एम्यूनेशन इश्यू नहीं थे. पूरी ट्रेनिंग के बाद जुलाई के पहले हफ्ते में उन्हें एम्यूनेशन दे दिए गए. यानी की फाइनल स्टेज. जिस जगह से दुश्मन के इलाके में दाखिल होना था वह सपाट समतल इलाका था. ऐसे में दुश्मन के माइन फील्ड को क्लीयर करना, उसके बाद डिच कम बंद (Ditch Cum Bund) यानी DCB को नेस्तनाबूत कर उस पर कब्जा करने की ट्रेनिंग को लगातार दोहराया जा रहा था. अधिकारी के मुताबिक ट्रेनिंग के बाद तीन दिन का असलाह दे दिया गया था, बस वे अपने सीओ की तरफ से कॉल का इंतजार कर रहे थे. उस कॉल में पासवर्ड बताया जाना था और साथ ही मिशन का टाइम, कहां और कैसे करना है, यह जानकारी दी जानी थी. लेकिन कोई कॉल नहीं आई. 850 से भी ज्यादा सैनिकों के साथ अगले आदेश तक वहीं डटे रहे और अपनी ट्रेनिंग को लगातार दोहराते रहे. आखिरकार कॉल तो आया लेकिन वापसी का और 6 महीने के बाद नवंबर में उनकी बटालियन वापस लौट आई जहां से उसे सीमा पर तैनात किया गया था. भारतीय फौज का जोश इतना हाई था कि अगर नवंबर तक भी एक कॉल आ गया होता तो आज पाकिस्तान का नक्शा कुछ और ही होता.
DCB क्या होता है
दुश्मन के इलाके में सरहदों के पास पहले लैंड माइन बिछी होती है और नदी-नालों वाली जगह पर सेना की मूवमेंट को रोकने के लिए नालों में बड़े-बड़े गड्ढे बनाकर गहरा कर दिया जाता है और उस नाले की दूसरे किनारे पर मिट्टी के ढेरों के अंदर पक्के बंकर तैयार किए जाते हैं, जिनमें भारी हथियारों की तैनाती होती है. जब भी कोई सेना के टैंक और इन्फैंट्री कार्रवाई करती है तो टैंकों को नदी-नाले पार न करने देने के लिए ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है ताकि टैंक अगर लैंड माइन फील्ड से बचकर आगे आ भी जाए तो DCB में फंस जाए.
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