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Big Threat: इस जिले में टहलते हुए आ जाते थे बांग्‍लादेशी, बदल रहे थे डेमोग्राफी, अब ढूंढ ढूंढकर क‍िए जा रहे बाहर

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बांग्‍लादेश से सटे ज‍िलों में टहलते हुए अवैध बांग्‍लादेशी आ जाते थे और वहां की डेमोग्राफी बदल रहे थे. अब सरकार ने इन्‍हें पकड़ने के ल‍िए इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन शुरू क‍िया है.

इस जिले में टहलते हुए आ जाते थे बांग्‍लादेशी, बदल रहे थे डेमोग्राफी, अब...

असम के कछार जिले में डेमोग्राफी बदल रहे बांग्‍लादेशी.

हाइलाइट्स

  • असम के कछार ज‍िले में गली-गली मिल रहे अवैध बांग्‍लादेशी.
  • एक महीने में 86 अवैध बांग्‍लादेश‍ियों-रोह‍िंग्‍या को निकाला गया.
  • ह‍िमंत सरकार ने शुरू क‍िया स्‍पेशल इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन.

भारत को खतरा कई ओर से है, लेकिन सोच‍िए अगर खतरा इस तरह का आ जाए क‍ि आपकी डेमोग्राफी बदलने लगे तो चिंता तो होगी ही. जी हां, डेमोग्राफी. यहां जहां जो लोग पहले से रह रहे थे, उसकी जगह दूसरे लोग आकर कब्‍जा करने लगें. असम में कुछ ऐसा ही हो रहा था, जिसे अब खत्‍म क‍िया जा रहा है. भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे असम के कछार ज‍िले में इतने बांग्‍लादेशी और रोह‍िंग्‍या आकर बस गए क‍ि सरकार को विशेष अभ‍ियान चलाना पड़ रहा. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खुद ट्वीट कर बताया कि बीते एक महीने में कछार जिले से 88 अवैध घुसपैठियों को ढूंढकर कर वापस बांग्लादेश भेजा गया है. इनमें 59 बांग्लादेशी और 29 रोहिंग्या शामिल हैं.

सबसे पहले जान‍िए क‍ि कछार अहम क्‍यों है? कछार जिला असम के बराक घाटी क्षेत्र में आता है और त्रिपुरा व मिजोरम की सीमाओं के साथ-साथ बांग्लादेश की सीमा से भी पास है. यह इलाका ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील रहा है, क्योंकि बराक घाटी में बांग्ला भाषी आबादी प्रमुख रूप से निवास करती है. इसी भाषाई और सांस्कृतिक समानता के चलते यह क्षेत्र बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए ‘साफ्ट टारगेट’ बनता गया. वर्षों से बांग्‍लादेशी अवैध रूप से घुसकर यहां आते रहे और अपनी जगह बनाते गए.

कैसे बदलती गई डेमोग्राफी?
1960 के दशक से लेकर अब तक कछार और बराक घाटी की डेमोग्राफी में बड़ा बदलाव देखा गया है. बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठिए स्थानीय जनसंख्या में घुलते-मिलते चले गए. पहले-पहल ये लोग अस्थायी रूप से मजदूरी करने या खेती-बाड़ी के लिए आते थे, लेकिन धीरे-धीरे स्थायी रूप से बसने लगे. कई जगहों पर फर्जी दस्तावेज बनवाकर ये स्थानीय नागरिकों के बराबर अधिकार हासिल करने में भी सफल रहे. बराक घाटी के कई कस्बों और गांवों में आज भी ऐसे समुदाय देखे जा सकते हैं जिनकी जड़ें बांग्लादेश से जुड़ी हैं. इससे न सिर्फ संसाधनों पर दबाव बढ़ा, बल्कि सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी उत्पन्न हुईं. सीमावर्ती गांवों में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होने लगी, जिससे सांप्रदायिक तनाव भी समय-समय पर देखा गया.



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