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Bihar Chunav: मंगनी लाल मंडल वाला दांव क्या NDA को करेगा नुकसान… लालू के इस ‘ब्रह्मास्त्र’ को नीतीश झेल पाएंगे?

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पटना. मंगनी लाल मंडल आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष चुन लिए गए हैं. मंडल के निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित होने पर तेजस्वी यादव ने बधाई दी है. तेजस्वी यादव का सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें वह मंगनी लाल मंडल को मिठाई खिला रहे हैं. तेजस्वी ने इस पोस्ट में लिखा है, ‘बिहार में किसी भी पार्टी द्वारा पहली बार ‘अतिपिछड़ा वर्ग’ से प्रदेश अध्यक्ष बना है.’ ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने अतिपिछड़ा समाज से व्यक्ति को अध्यक्ष बनाकर बिहार चुनाव से पहले ‘ब्रह्मास्त्र’ चल दिया है? क्या नीतीश कुमार और एनडीए आरजेडी के इस दांव को झेल पाएंगे?

बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर आरजेडी ने बड़ा रणनीतिक दांव खेला है. इस फैसले से क्या जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को नुकसान होने की संभावना है? क्या लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने इस नियुक्ति के पीछे बड़ी चाल है? आइए, इस निर्णय के पांच प्रमुख कारणों और इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण करते हैं.

1. अति-पिछड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति

मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से आते हैं, जो बिहार में अति-पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) का हिस्सा है और लगभग 2.14% आबादी का प्रतिनिधित्व करती है. बिहार में ईबीसी वोटर, खासकर धानुक, कुर्मी, और कुशवाहा, नीतीश कुमार और जेडीयू का मजबूत आधार रहे हैं. मंडल की नियुक्ति से आरजेडी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. मंडल का सामाजिक आधार और समाजवादी पृष्ठभूमि उन्हें इस रणनीति का प्रभावी चेहरा बनाती है.

2. मिथिलांचल में खोई जमीन वापस पाने की कवायद

मिथिलांचल क्षेत्र, विशेषकर मधुबनी और झंझारपुर, में आरजेडी की पकड़ कमजोर हुई है. मंगनी लाल मंडल, जो मधुबनी के रहने वाले हैं और झंझारपुर से सांसद रह चुके हैं, इस क्षेत्र में पार्टी की स्थिति मजबूत कर सकते हैं. उनकी नियुक्ति से पचपनिया (55 ईबीसी जातियों) वोटरों को लुभाने की कोशिश हो रही है, जो मिथिलांचल में निर्णायक हो सकते हैं.

3. लालू-तेजस्वी की जोड़ी का सामाजिक समीकरण

लालू यादव का पारंपरिक एम-वाय (मुस्लिम-यादव) समीकरण अब अकेले सत्ता तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं है. मंडल की नियुक्ति से ईबीसी समुदाय को साथ जोड़कर महागठबंधन की ताकत बढ़ाने की कोशिश की गई है. तेजस्वी यादव की युवा छवि और मंडल का अनुभव पुरानी और नई पीढ़ी के बीच संतुलन बनाता है.

4. नीतीश कुमार की रणनीति को चुनौती

मंगनी लाल मंडल पहले जेडीयू में थे और नीतीश कुमार के करीबी माने जाते थे. उनकी वापसी और आरजेडी अध्यक्ष बनना नीतीश के लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक चुनौती है. मंडल का जेडीयू छोड़ना और आरजेडी में अहम जिम्मेदारी मिलना नीतीश के ईबीसी गठजोड़ को कमजोर कर सकता है.

5. आलोक मेहता को भविष्य की बड़ी भूमिका का संकेत

आलोक मेहता, जो कुशवाहा समाज से हैं और अध्यक्ष पद की दौड़ में थे, को इस बार पीछे रखा गया. यह संकेत देता है कि लालू और तेजस्वी उन्हें भविष्य में सरकार में बड़ा चेहरा बनाना चाहते हैं. मंडल की नियुक्ति से कुशवाहा और धानुक दोनों वोट बैंक साधने की रणनीति बनाई गई है.

मंडल की नियुक्ति से जेडीयू और एनडीए को ईबीसी वोटों के बंटवारे का खतरा है, जो उनकी जीत के लिए महत्वपूर्ण है. हालांकि, मंडल की उम्र (76 वर्ष) और पहले आरजेडी छोड़ने का इतिहास पार्टी के भीतर असंतोष पैदा कर सकता है. साथ ही, वैशाली कोऑपरेटिव बैंक घोटाले और मारपीट के पुराने आरोप उनके लिए चुनौती बन सकते हैं. इसके बावजूद लालू यादव का यह दांव बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकता है.

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