[ad_1]
पटना. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. चिराग पासवान का 2025 के बिहार चुनाव में उतरने का फैसला सियासी हलचल मचा दी है. चिराग का विधानसभा चुनाव लड़ना वो भी सामान्य सीट से, एक बड़ा दांव माना जा रहा है. इस फैसले से चिराग एक तरफ सभी वर्गों के नेता के रूप में अपने आपको स्थापित कर सकते हैं और दूसरा अपने चाचा पशुपति पारस की बची-खुची जमीन से बेदखल कर देंगे. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर चिराग बिहार के किस सीट से चुनाव लड़ेंगे? क्या चिराग अपने गृह जिला खगड़िया से चुनाव लड़ेंगे या फिर अपने पिता की कर्मभूमि हाजीपुर के किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे? या फिर चिराग जमुई संसदीय सीट से किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे? या फिर उनके निशाने पर चाचा पशुपति कुमार पारस की सियासी जमीन को कमजोर करना होगा?
चिराग पासवान के पिता और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान पहली बार खगड़िया के अलौली सीट से ही चुनाव लड़े थे. बीते कई सालों से इस सीट से चाचा पशुपति पारस लगातार जीतते आ रहे हैं. चिराग के सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसले से साबित होता है कि वह अलौली सुरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन पशुपति पारस के सियासी जमीन को खत्म करने के लिए अगर वह खगड़िया के किसी सामान्य सीट जैसे परवत्ता से चुनाव लड़ें तो हैरानी नहीं होगी. क्योंकि, इस सीट से चुनाव लड़ने के बाद चिराग खगड़िया, मुंगेर, बेगूसराय और जमुई की सीटों पर अपना दबदबा बरकरार रख पाएंगे. खगड़िया और जमुई दोनों लोकसभा सीट अभी चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) के कब्जे में है. वहीं, बेगूसराय के चेरिया बरियारपुर और मटिहानी विधानसभा सीट पर एलजेपी पहले जीत दर्ज कर चुकी है.
खगड़िया, हाजीपुर या फिर जमुई…
अगर चिराग पासवान हाजीपुर के किसी सामान्य सीट से लड़ते हैं तो वह यहां भी चाचा पशुपति पारस के बची-खुची जमीन को खत्म कर देंगे. 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग ने हाजीपुर से जीत हासिल की, जो उनके पिता रामविलास पासवान की परंपरागत सीट थी. अब विधानसभा चुनाव में उनकी नजर एक बार फिर से हाजीपुर या खगड़िया जिले की किसी सामन्य सीट पर हो सकती है, जो रामविलास और पशुपति पारस की सियासी विरासत से गहरे जुड़ी है.
पारस की जमीन पर चिराग की नजर?
खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट पासवान परिवार की सियासी जड़ों से जुड़ी है. 1969 में रामविलास पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यहां से पहली बार जीत हासिल की थी. बाद में 1974 में उन्होंने अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को इस सीट से खड़ा किया, जो सात बार विधायक रहे. अलौली पासवान समुदाय के लिए एक सुरक्षित सीट मानी जाती है और चिराग की नजर अब इस सीट पर है. सूत्रों के मुताबिक, चिराग अपनी पार्टी के किसी करीबी रिश्तेदार को अलौली से उतार सकते हैं, जबकि पशुपति पारस अपने बेटे यशराज पासवान को मैदान में लाना चाहते हैं.
हाजीपुर और जमुई क्या है विरासत की जंग?
हाजीपुर रामविलास पासवान की सियासी कर्मभूमि रही है, जहां से उन्होंने आठ बार लोकसभा चुनाव जीता. 2019 में रामविलास ने यह सीट पशुपति पारस को सौंपी, जो तब से सांसद रह. लेकिन 2024 में चिराग ने हाजीपुर पर दावा ठोककर चाचा को किनारे कर दिया. अब विधानसभा चुनाव में हाजीपुर की किसी सीट पर चिराग का दावा उनकी सियासी ताकत को और मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
चाचा-भतीजे की सियासी तनातनी
जमुई, जहां से चिराग 2014 और 2019 में सांसद चुने गए, भी उनके लिए अहम है. उन्होंने कहा, ‘जमुई की जनता मुझे बहुत प्यार देती है. मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता.’ लेकिन जमुई विधानसभा सीट पर उनकी पार्टी के किसी अन्य नेता को उतारने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि चिराग का फोकस अलौली पर लगता है.
चिराग और पशुपति पारस के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है. 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी दो धड़ों में बंट गई. पशुपति ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बनाई, जबकि चिराग ने लोजपा (रामविलास) को आगे बढ़ाया. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने चिराग को तरजीह दी, जिसके बाद पशुपति ने एनडीए छोड़ दिया. अब अलौली सीट पर दोनों की नजर है और यह जंग पारिवारिक संपत्ति विवाद से भी जुड़ गई है. खगड़िया के शहरबन्नी में रामविलास के पैतृक घर को लेकर राजकुमारी देवी ने पशुपति और उनके भाई की पत्नी पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है.
[ad_2]
Source link

