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लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने सिक्किम में साथी सैनिक की जान बचाई

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SUPREME SACRIFICE : भारतीय सेना दुनिया के सबसे दुर्गम इलाकों में तैनात है. दुश्मन के खतरे ज्यादा तो प्राकृतिक चुनौतियां ज्यादा है. नॉर्थ सिक्किम के इलाके में घने जंगल और पहाड़ों से निकलती खतरनाक छोटी नदियों को …और पढ़ें

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सेना की सिखलाई को बखूबी निभाया

हाइलाइट्स

  • लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने साथी की जान बचाई.
  • तेज धार वाली नदी में छलांग लगाई और साथी को बचाया.
  • शशांक तिवारी की वीरता को सेना और देश ने सलाम किया.

SUPREME SACRIFICE : भारतीय सेना की सिखलाई है कि वह देश, फौज और अपने पलटन के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया नॉर्थ सिक्किम में, जहां सेना के एक लेफ्टिनेंट ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने साथी की जान बचाई. इस वीर अफसर का नाम है लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी. सिक्किम स्काउट में कमीशन इस यंग अफसर ने पानी में डूबते अपने साथी सैनिक की जान बचाने के लिए तेज धार वाले पहाड़ी नदी में छलांग लगा दी.

वीरता की दास्तान
22 मई को 23 साल के लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी सिक्किम में रूट ऑपरेटिंग पेट्रोल को लीड कर रहे थे. यह टीम सिक्किम में अपने महत्वपूर्ण टैक्टिकल ऑपरेटिंग बेस (TOB) की तरफ बढ़ रही थी. यह TOB भविष्य की महत्वपूर्ण पोस्ट के तौर पर तैयार किया जा रहा था. तकरीबन 11 बजे दिन में उनकी पेट्रोल पार्टी में शामिल अग्निवीर स्टीफन सुब्बा एक लॉग ब्रिज को पार करते वक्त अपना संतुलन खो बैठा और पहाड़ी नदी की तेज धारा में बह गया. पार्टी को लीड कर रहे यंग अफसर ने अग्निवीर की जान बचाने के लिए तेज धार वाली खतरनाक पानी में छलांग लगा दी. उनके साथ एक अन्य सैनिक नायक पुकार कटेल ने भी मदद के लिए पानी में छलांग लगा दी. दोनों ने मिलकर पानी में डूबते हुए अग्निवीर की जान बचा ली. लेकिन यंग अफसर पानी की तेज धार में बह गए. तुरंत उन्हें रेस्क्यू करने की कोशिशें तेज की गईं, लेकिन लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी को बचा पाने में कामयाब नहीं हो सके. उनका शव घटना स्थल से 800 मीटर दूर बरामद किया गया.

4 महीने पहले हुए थे कमिशन
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी 14 दिसंबर 2024 में सेना में कमिशन हुए थे. अभी 4 महीने ही पूरे हुए थे. यह उनकी पहली पोस्टिंग थी. अयोध्या के रहने वाले लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी के परिवार में माता-पिता और एक बहन हैं. अपनी जान गंवा कर अपने साथी सैनिक को बचाया. उनके इस प्रयास ने भारतीय सेना के अफसर और सैनिक के बीच बॉंडिंग को एक बार फिर दुनिया के सामने पेश किया. महज 23 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा को निभाया. अपने जीवन से ऊपर अपने साथी के जीवन को रखा और आगे बढ़कर लीड करने के मानकों को बनाए रखा. सेना उनके बलिदान को सलाम करती है.

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