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न खेत, न फसल… सिर्फ फूल, गया के किसान ने लीज़ पर खेती कर बनाए लाखों, बच्चों को दिलाई सरकारी नौकरी, जानें तरीका

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Success Story: गेंदा फूल की खेती से गया जिले के फुलेंद्र मालाकार को अच्छा मुनाफा होता है. वे 20 साल से खेती कर रहे हैं और 3 बीघा में खेती से सालाना 5 लाख रुपये कमाते हैं. सरकारी सहयोग नहीं मिलता.

गेंदा फूल की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है. इसमें कम लागत में किसानों को अन्य पारंपरिक फसलों से तीन गुना अधिक मुनाफा होता है. इसके मुनाफे को देखते हुए राज्य भर में बड़े स्तर पर गेंदा फूल की खेती होने लगी है.

बिहार के गया जिले के डोभी प्रखंड के अमारुत गांव में भी बड़े स्तर पर इसकी खेती होती है. इस गांव के रहने वाले किसान फुलेंद्र मालाकार पिछले 20 साल से गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं. खास बात यह है कि सबसे पहले गांव में फूल की खेती इन्होंने ही शुरू की थी.

फुलेंद्र गांव के इकलौते किसान हैं, जो साल भर फूल की खेती करते हैं. लीज पर जमीन लेकर अभी 3 बीघा में इसकी खेती कर रहे हैं. मालाकार होने के कारण फुलेंद्र इसका व्यवसाय भी करते हैं. फूल की खेती और इसके व्यवसाय से जो भी आमदनी होती है, उससे उनके परिवार का भरण-पोषण और पढ़ाई-लिखाई होती है. फूल की खेती कर उन्होंने अपने दो भतीजों को नौकरी दिला दी. उनके भाई का एक बेटा सब इंस्पेक्टर है, तो दूसरा कांस्टेबल है. उनका बेटा अभी इंटर की पढ़ाई कर रहा है.

फूल की खेती से फुलेंद्र को अच्छी आय हो जाती है. अगर फसल अच्छी रहती है तो 3 बीघा से 3 लाख रुपये की कमाई एक सीजन में हो जाती है. दोनों सीजन से 5 लाख रुपये तक की आय होती है. फुलेंद्र 2-3 प्रजाति के गेंदा फूल की खेती करते हैं. जिसमें मोगरा, पीला और लाल गेंदा शामिल हैं. अभी बाजारों में भी इसकी अच्छी कीमत मिल रही है.

शादी-विवाह के सीजन में किसानों को अच्छी आमदनी हो जाती है. अभी बाजार में 500 रुपये प्रति कुड़ी फूलों की बिक्री होती है जबकि अन्य दिनों में 200 रुपये प्रति कुड़ी तक बिक्री होती है. गया जिले में गेंदा फूल की खूब डिमांड है और यहां महाबोधि मंदिर, विष्णु पद मंदिर, मंगला गौरी मंदिर के अलावा अन्य कई मंदिरों में रोजाना 15 क्विंटल से अधिक फूल से मंदिर को सजाया और श्रृंगार किया जाता है.

बता दें कि यहां का फूल गया के अलावा औरंगाबाद तक जाता है. फुलेंद्र ने लोकल 18 को बताया कि वह पिछले 20 साल से इसकी खेती से जुड़े हुए हैं. पहले कोलकाता से फूल मंगाकर घूम-घूम कर बेचते थे. इसके बाद लोगों ने सलाह दी कि इसकी खेती खुद करें. शुरू में कम जमीन पर इसकी खेती शुरू की और अच्छा मुनाफा होने पर अब हर साल तीन बीघा में इसकी खेती करते हैं. लीज पर जमीन लेकर गांव की नदी के किनारे फूल की खेती करते हैं और इसी से परिवार का गुजर-बसर होता है. इससे होने वाली आमदनी से बच्चों की पढ़ाई होती है. फूल की खेती करके दो भतीजे आज बिहार पुलिस में सेवा दे रहे हैं.

फुलेंद्र को इसकी खेती में सरकार का किसी तरह का सहयोग नहीं मिलता है. सब्सिडी के लिए हर साल अप्लाई करते हैं, लेकिन एक बार भी उन्हें सब्सिडी का लाभ नहीं मिला है. उनकी मांग है कि अगर सरकार फूल की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन दे तो और बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जा सकती है.

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