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सांची के विश्वप्रसिद्ध चैतगिरी बिहार मंदिर में सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर चैती गिरी बिहार मंदिर में बुद्ध वंदना के साथ पूजा अर्चना की गई। श्रद्धालुओं ने मंदिर में पहुंचकर भगवान बुद्ध के दर्शन किए। इस वर्ष श्रीलंका महाबोधि सोसाइटी का परंपरागत
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मंदिर में 2568वीं बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर विशेष आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने ध्यान और प्रार्थना की। उन्होंने बुद्ध वंदना के साथ शांति, करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। सारिपुत्र और महामोग्गलान भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्यों में प्रमुख शिष्य थे जिसमें सारिपुत्र धम्म के विशेषज्ञ माने जाते थे। उन्होंने ही अभिधम्म की परंपरा शुरू की थी। जबकि महामोग्गलान तपस्वी और तात्विक ज्ञाता थे। बौद्ध दर्शन के जानकार लोग बताते है कि मोग्गलान बाद में चलकर महामोग्गलान कहलाए क्योंकि वे धर्म उपदेश देने में सर्वश्रेष्ठ थे।

2568वीं बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर विशेष आयोजन किया गया।
बताते हैं कि भगवान बुद्ध ने अपने पीछे धर्म का उपदेश देने के लिए मोग्गलान को ही रखा था। बौद्ध साहित्य के अनुसार मोग्गलान देवलोक व ब्रह्मलोक में आते-जाते थे। उनकी प्रशंसा का उल्लेख त्रिपिटक में मिलता है। वहीं सारिपुत्र को भगवान बुद्ध ने धम्म सेनापति की पदवी से विभूषित किया था। 84 साल की आयु में सारिपुत्र और महामोग्गलान तथागत बुद्ध से पहले परिनिवृत हुए थे। सम्राट अशोक के शासनकाल से ही दोनों की देह धातु को संनिधानित कर सांची में स्तूप और विहार बनाए गए।
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