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चीन और मिस्र का पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास: अमेरिका के लिए नई चुनौती.

चीन ने अब मीडिल ईस्ट में बड़ी धमक दिखाई है. चीनी एयरफोर्स ने अमेरिका के पुराने दोस्त रहे मिस्र के साथ मिलकर सैन्य अभ्यास किया है. दोनों देशों की सेनाओं का यह पहला सैन्य अभ्यास है, जिसमें बेहद हाईटेक फायटर जेट, रडार विमान और आसमान में ही ईंधन भरने वाले विमान शामिल रहे. यह अभ्यास चीन की बढ़ती वैश्विक सैन्य मौजूदगी और खासकर मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका में अपनी ताकत दिखाने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.

यह संयुक्त सैन्य अभ्यास ऐसे समय हुआ है, जब अमेरिका और मिस्र के रिश्तों में खटास आई है. इसका कारण डोनाल्ड ट्रंप का वह प्रस्ताव है, जिसमें गाजा पट्टी से फिलिस्तीनियों को मिस्र भेजने की बात कही गई थी. काहिरा ने इसका कड़ा विरोध किया है. चीन इस मौके का फायदा उठाकर मिस्र से अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है.

मध्य पूर्व अब चीन और अमेरिका के बीच एक नया रणनीतिक मोर्चा बनता जा रहा है. पहले से ही दोनों देश ताइवान, दक्षिण चीन सागर और अन्य क्षेत्रों में आमने-सामने हैं. ऐसे में इस अभ्यास को वैश्विक कूटनीति के नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है.

कौन-कौन से जहाज शामिल हुए?
चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) एयरफोर्स ने इस अभ्यास में J-10C और J-10S लड़ाकू विमान, YU-20 हवाई टैंकर और KJ-500 रडार विमान तैनात किए. वहीं मिस्र की ओर से रूसी-निर्मित MiG-29 लड़ाकू विमानों को उतारा गया.

KJ-500, जो एक एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AEW&C) विमान है, ने पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया. बेल्जियम आधारित डिफेंस मैगजीन आर्मी रेक्गगनिशन ने यह जानकारी दी.

इस हफ्ते ओपन-सोर्स फ्लाइट डेटा के मुताबिक, कई चीनी सैन्य विमान मिस्र पहुंचे, जिनमें पांच Y-20 ट्रांसपोर्ट प्लेन और एक KJ-500 रडार विमान शामिल थेय ये विमान संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते मिस्र पहुंचे.

यह दूसरा मौका है जब चीनी सेना पिछले एक साल में मिस्र गई है. पिछले साल गर्मियों में चीन ने अपनी एरोबेटिक टीम के सात J-10 फाइटर जेट्स और एक Y-20 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को मिस्र के एयर शो में भेजा था.

हथियार बाज़ार के लिए भी है रास्ता?
विशेषज्ञों का मानना है कि मिस्र, चीन के हथियारों के लिए एक संभावित बड़ा बाज़ार बन सकता है. वहीं अमेरिका भी इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है, खासकर ईरान के साथ बढ़ते तनावों के बीच.

हालांकि मिस्र को अमेरिका से 2024 में 1.3 अरब डॉलर की सैन्य सहायता मिली है, लेकिन चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी और दोस्ती से वाशिंगटन में चिंता बढ़ रही है. अमेरिकी अधिकारियों को आशंका है कि चीन की तेजी से बढ़ती सैन्य ताकत जल्द ही अमेरिकी क्षमताओं की बराबरी कर सकती है, हालांकि कई क्षेत्रों में अभी भी चीनी तकनीक अमेरिका से पीछे मानी जाती है.

यह अभ्यास सिर्फ सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि रणनीतिक समीकरणों में बदलाव का संकेत है. चीन अब मध्य पूर्व में न सिर्फ व्यापार के माध्यम से, बल्कि सैन्य ताकत के जरिये भी अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है. अमेरिका के लिए यह एक नई चुनौती बनती जा रही है.


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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