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छेनी और हथौड़ी का ऐसा कमाल, खींचे चले आते हैं खरीददार, पीढ़ियों से चला आ रहा कारोबार!

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फर्रुखाबाद के रिंकू शर्मा पारंपरिक बर्तन बनाने का काम करते हैं. वे स्टील की चादरों से चलनी, खुरपा आदि बनाते हैं. उनकी मेहनत और हुनर की सराहना होती है.

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लकड़ी और टीन से चलनी बनाते कारीगर.

हाइलाइट्स

  • रिंकू शर्मा पारंपरिक बर्तन बनाने का काम करते हैं.
  • वे स्टील की चादरों से चलनी, खुरपा आदि बनाते हैं.
  • उनकी बनाई वस्तुएं ग्रामीण इलाकों में खूब बिकती हैं.

फर्रुखाबाद: हालात चाहे जैसे भी हों, समय हर किसी को किसी न किसी हुनर में पारंगत कर ही देता है, जिससे जीवन यापन किया जा सके और कमाई भी हो. फर्रुखाबाद का एक मेहनती युवक ने अपने पारंपरिक कार्य को आगे बढ़ाते हुए ऐसा काम किया कि आज हर कोई उनकी सराहना कर रहा है.
बढ़ई समाज से ताल्लुक रखने वाले ये कारीगर स्टील की चादरों को बाजार से लाने के बाद छेनी और हथौड़ी से उन पर निशान बनाते हैं. कई घंटे की मेहनत के बाद वे ऐसे बर्तन तैयार करते हैं, जो घरों में उपयोग किए जाते हैं और जिनकी हर समय मांग बनी रहती है. उनका कहना है कि पहले के समय में इन बर्तनों का अधिक उपयोग होता था, हालांकि अब इसका प्रचलन कुछ कम हो गया है, लेकिन फिर भी वे इन्हें बनाना जारी रखे हुए हैं. आसपास के क्षेत्रों में जब भी कोई मेला लगता है, तो वहां भी वे अपनी वस्तुएं बेचने जाते हैं.

पूर्वजों से मिला हुनर, आज बना प्रेरणा
लोकल18 से बातचीत में रिंकू शर्मा ने बताया कि उनका यह कार्य पीढ़ियों से चला आ रहा है. आज के आधुनिक दौर में जहां लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, ऐसे समय में वे सभी के लिए एक मिसाल बन गए हैं. रिंकू कहते हैं, “यह हमारा पारंपरिक कारोबार है, जिसमें पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम कर रहा हूं.”
रिंकू कमालगंज मुख्य मार्ग के पास अपने परिवार के साथ रहते हैं और वहीं घरेलू सामान तैयार करते हैं.
बर्तन बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले टीन की चादर पर छेनी से छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं. पूरी चादर पर छेद करने के बाद हथौड़े से लगातार चोट करके उसे आकार दिया जाता है. फिर उसमें लकड़ी का हैंडल लगाकर इसे कृषि कार्यों और अनाज छानने में उपयोगी बनाया जाता है.

इन सामानों की है डिमांड
रिंकू चलनी, खुरपा, हंसिया, हथौड़ी, कुल्हाड़ी, फावड़ा, छलना, चमचा जैसे कई सामान तैयार करते हैं. उनकी बनाई वस्तुएं ग्रामीण इलाकों और बाजारों में खूब बिकती हैं. वे प्रतिदिन लगभग 20 से 25 पीस बेच लेती हैं, जिनकी कीमत आमतौर पर 50 रुपये तक होती है.

ऐसे तैयार होते हैं ये सामान
बर्तन बनाने के लिए सबसे पहले टीन की चादर पर छेनी से छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं. पूरी चादर पर छेद करने के बाद उस पर हथौड़े से लगातार चोट कर उसे आकार दिया जाता है. फिर उसमें लकड़ी का हैंडल लगाया जाता है, जिससे इसे कृषि कार्यों और अनाज छानने में उपयोग किया जा सके.
रिंकू शर्मा का यह हुनर सिर्फ उनकी आजीविका का साधन नहीं बल्कि परंपरा और मेहनत का अनूठा उदाहरण भी है.

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छेनी और हथौड़ी का ऐसा कमाल, खींचे चले आते हैं खरीददार, पीढ़ियों से चला आ रहा..


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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