Home मध्यप्रदेश Dattopant Thengadi Research Institute building will be constructed in Bhopal | भोपाल...

Dattopant Thengadi Research Institute building will be constructed in Bhopal | भोपाल में बनेगा दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान का भवन: सीएम ने सुरेश सोनी के साथ किया भूमिपूजन, बोले-हिन्दुत्व से बढ़कर विश्व बंधुत्वता – Bhopal News

40
0

[ad_1]

भोपाल के लिंक रोड़ नंबर 3 स्थित पत्रकार कॉलोनी के सामने सोमवार को दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के भवन निर्माण का भूमिपूजन हुआ। सीएम डॉ मोहन यादव ने आरएसएस के पूर्व सर कार्यवाह सुरेश सोनी, उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार, पर्यटन मंत्री धर्मेंद्र लोधी

.

सीएम बोले- हिन्दुत्व, दुनिया को जोड़ने वाली धारा सीएम डॉ मोहन यादव ने कहा-

QuoteImage

जैसे दीपक स्वयं जलकर सबको प्रकाश देता है ऐसे ही हमारी प्रचारक परंपरा है। दत्तोपंत ठेंगड़ी के चिंतन करने का और काम करने का अलग तरीका था। पहले मुझे भी बड़ा कन्फ्यूजन था। लेकिन, मैंने उनका एक लेख पढ़ा तो आनंद आया। हमने जब अपनी इस धारा को पकड़ा तो हम हिन्दुत्व की बात करते हैं। तो हिन्दुत्व को राष्ट्रीयता तक ले जाते हैं। कि हिन्दू ही हमारी राष्ट्रीयता है। लेकिन उन्होंने कहा ये राष्ट्रीयता से आगे बढ़कर विश्व बंधुत्वता है। ये जो हमारा हिंदू दर्शन है ये केवल हम अपने तक रखेंगे तो छोटा हो जाएगा। ये चराचर जगत में मनुष्य समाज से लेकर संस्कृति की तरफ जोड़ने वाली धारा हिन्दुत्व की धारा है। विश्व के परिदृश्य में सारी दुनिया में आशा का केन्द्र हमारा देश है।

QuoteImage

डॉ मोहन यादव, सीएम

डॉ मोहन यादव, सीएम

अकेले इंसान नहीं पशु पक्षी भी अपना घर चाहते हैं कार्यक्रम में संघ के पूर्व सर कार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा- सृष्टि में सबको अपने एक घर की इच्छा होती है। वो केवल मनुष्य को होती है ऐसा नहीं हैं। पक्षी अपना घोसला चाहता है सांप बिल चाहता है तो सिंह अपने लिए गुफा चाहता है। मनुष्य जीवन में आदमी किराए से भी अपना काम चला लेता है लेकिन ये इच्छा होती है कि अपना एक घर हो जाए। जैसे व्यक्ति की इच्छा होती है वैसे ही संस्थाओं की भी इच्छा होती है। अब तक यह संस्थान मजदूर संघ के कार्यालय में चल रहा था। अब इसका अपना भवन होगा।

जो गलत है उसे ठीक करना है भविष्य की दिशा जो हम चाहते हैं। समस्याएं दो कारण से ज्यादा बड़ी हो जाती हैं। एक तो जब विस्मरण हो जाता है तो हम अपने को भूल जाते हैं या गलत पढ़ लिया तो भी गड़बड़ होती है। तो भारत के अकादमिक जगत में ये दो समस्याएं हैं। एक विस्मरण की समस्या है कि इसमें अपना क्या है? और जितने खुद को ज्ञान समझते हैं। वो गड़बड़ हैं कि गलत ज्ञान है। विस्मरण से स्मरण में लाना एक काम है दूसरा काम है कि अगर कुछ गलत ज्ञान है तो उसे ठीक करना।

सुरेश सोनी, आरएसएस के पूर्व सर कार्यवाह

सुरेश सोनी, आरएसएस के पूर्व सर कार्यवाह

बुद्धिजीवियों का ग्रेविटेशनल सेंटर भारत केन्द्रित होना जरुरी सुरेश सोनी ने कहा- जिन डीएस कोठारी के नाम से शिक्षा आयोग बना था वो कहा करते थे। कि भारत के बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है कि उनका ग्रेविटेशनल सेंटर भारत से बाहर है। वे कहते थे शिक्षा रिसर्च इससे करना क्या है। तो डीएस कोठारी कहते थे कि बस यही करना है जो ग्रेविटेशनल सेंटर भारत के बाहर चला गया है उसे भारत केन्द्रित करना है। इसलिए ये सारे रिसर्च सेंटर, शिक्षा का ये उद्देश्य है कि शिक्षा संस्कृति शोध के माध्यम से हम अपने को समझे। जो गलत समझाए उसे ठीक करने के लिए जो करना है उसे समझें। और इस धारा को लेकर सब लोग चलेंगे तो ज्यादा देर नहीं लगेगी। 10-15 सालों के अंदर भारतीयता के अधिष्ठान पर जो हम भारत के निर्माण की बात सोच रहे हैं। उसमें सक्षम हो सकते हैं।

दुनिया में नदियों, पहाड़ों के वकील पैदा हो गए सुरेश सोनी ने कहा- जनजातीय क्षेत्र को एकेडमिक में पिछड़ा हुआ कहा जाता है लेकिन संस्कृति, परंपराओं की दृष्टि से वो बहुत आगे हैं। आजकल एन्वायरनमेंट का विषय चल रहा है तो सारी दुनिया में आदमी परेशान हो रहा है तो धीरे-धीरे पृथ्वी पहाड़ समुद्र सब एंटिटी है उनमें भी कुछ हैं ऐसी चर्चा चल पड़ी है। उनके भी कुछ हक हैं। व्यवसायिक दृष्टि से देखते हैं तो वहां पहाड़ों नदियों के भी वकील पैदा हो गए हैं। पैसा दो और वो नदी का केस लडेंगे।

भूमि भी रजस्वला होती है सुरेश सोनी ने कहा- हमारे यहां तो सहज मानते हैं इसलिए आज भी जनजातीय क्षेत्र में भूमि को माता मानते हैं। भूमि माता है तो जैसे माता रजस्वला होती है उसी तरह से भूमि भी रजस्वला होती है। और वो जो पीरियड रहता है तो कहते हैं इस टाइम पर हल नहीं चलाना। उसको पाप समझते हैं। कोई कन्या की भ्रूण हत्या कर दे तो वो महापापी है।कोई उसके घर में बेटी नहीं देगा। हमको हरियाणा और पंजाब में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के विज्ञापन प्रचार न जाने क्या क्या स्कीम करनी पड़ती है। सेंस के नाते उनकी हमारी समझ कितनी है। परंपराएं केवल एकेडमिक ढंग से नहीं जनजातीय अध्ययन करना है।

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here