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मनुष्य जीवन को सफल करने में व्रत की बड़ी महिमा मानी गई है। रोग ही पाप हैं। ऐसे पाप व्रतों से ही दूर होते हैं। नियमानुसार व्रत-उपवास करने वाले व्यक्तियों का मुख सूर्योदय के कमल की तरह खिला रहता है। मनुष्य के कल्याण के लिए व्रत संसार सागर से तार देने वा
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने प्रवचन में शुक्रवार को यह बात कही।
नियम पालन करते हुए शरीर को तपाना ही तप
महाराजश्री ने बताया ऋषि देवल का कथन है कि व्रत और उपवास के नियम पालन करते हुए शरीर को तपाना ही तप है। व्रत अनेक हैं और अनेक व्रतों के प्रकार भी अनेक हैं। लोक प्रसिद्धि में व्रत और उपवास दो हैं। वास्तव में व्रत और उपवास दोनों एक ही हैं। अंतर यह है कि व्रत में भोजन किया जा सकता है, लेकिन उपवास में निराहार रहना होता है। इनके तीन भेद हैं- शास्त्राघात, परमाघात और कार्यहानि आदि जनित हिंसा के त्याग से कायिक, दूसरा सत्य बोलने और प्राणि मात्र में निर्बैर रहने से वाचिक और तीसरा मन को शांत रखने की दृढ़ता से मानसिक व्रत होता है।
भारत में व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि मनुष्यों के हित के लिए महर्षियों ने अपने तप के द्वारा अनेक साधन बताए हैं, उनमें से एक व्रत भी है। भारत में व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार है। इनमें सभी श्रेणी के नर-नारी सूर्य, सोम, भौम आदि एक भुक्त साध्य व्रत से लेकर एकाधिक कई दिनों तक के अन्न पाना दिवर्जित कष्टसाध्य व्रत और तप को बड़ी श्रद्धा से करते हैं। व्रतों से अनेक अंशों में मनुष्य का और प्रणियों का बहुत उपकार होता है। तत्वदर्शी महर्षियों ने इनमें विज्ञान के अंश जोड़ दिए हैं। गांवों के लोग तक इस बात को जानते हैं कि अरुचि, अजीर्ण, उदरशूल, कब्ज, सिर दर्द और ज्वर जैसे स्वयं उत्पन्न होने वाले साधारण रोगों से लेकर उपदंश, जलोदर, अग्निमांध, छतक्षय और राजयक्ष्मा जैसी असाध्य महाव्याधियां भी व्रत करने से समाप्त हो जाती हैं। इससे व्यक्ति को स्थायी आरोग्यता प्राप्त होती है।
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