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आज जिस तरह सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन है, वैसे ही भविष्य में हाइड्रोजन वाहन भी बन सकेंगे। न्यूक्लियर रिएक्टर से निकल रही हीट एनर्जी से बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन बनाने के प्रोजेक्ट पर परमाणु उर्जा विभाग काम कर रहा है। वर्तमान में थर्मो केमिकल प्
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आरआर कैट में वर्कशॉप में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) के वैज्ञानिक पीपी केलकर ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, मीथेन को तोड़कर भी हाइड्रोजन बनती है। पर इस प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड निकलता है, जो ग्लोबल वार्मिंग करता है। पानी को तोड़कर जो हाइड्रोजन बनती है, वह ग्रीन हाइड्रोजन कहलाती है।
यही प्रक्रिया किसी न्यूक्लियर रिएक्टर से निकली ऊर्जा की मदद से की जाए, तो इसे पिंक हाइड्रोजन कहते हैं। इस हाइड्रोजन को हर उस जगह इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां कोयला या तेल का उपयोग होता है। मालूम हो, वर्कशॉप परमाणु ऊर्जा विभाग और नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स द्वारा आयोजित की गई है। इस दौरान एनयूजे के प्रेसीडेंट अशोक मलिक और आरआर कैट निदेशक उन्मेष मालशे भी मौजूद रहे।
भारत है कई बड़े प्रोजेक्ट्स का हिस्सा
एटॉमिक एनर्जी कमीशन के सचिव सुनील गंजू ने दुनिया के बड़े साइंस प्रोजेक्ट्स में भारत की भागीदारी के बारे में बताया। इसमें बिग बैंग थ्योरी के लिए बना जिनेवा का लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, एंटी प्रोटोन और आयन रिसर्च के लिए बना जर्मनी का फेयर, ग्रेविटेशनल वेव्स का पता लगाने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में बन रही लाइगो आदि प्रोजेक्ट शामिल हैं।
इनमें से आरआर कैट के नेतृत्व में हिंगोली के पास लाइगो लैब का निर्माण काम भी चल रहा है। गंजू ने कहा, अब समय आ गया है कि भारत भी अपना खुद का एक ऐसा मेगा साइंस प्रोजेक्ट शुरू करे, जिसके लिए दूसरे देशों के वैज्ञानिक यहां आकर हमारे प्रोजेक्ट में सहयोग करें।
अभी टेस्टिंग स्तर पर काम
केलकर ने बताया कि अभी हाइड्रोजन का उत्पादन सिर्फ टेस्टिंग के स्तर पर किया जा रहा है। वहीं पिंक हाइड्रोजन के इस्तेमाल के लिए देश में निजी और सरकारी कंपनियों से भी चर्चा चल रही है।
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