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वर्तमान युग में सब कुछ आसानी से मिल सकता है किन्तु सच्चा मित्र मिलना मुश्किल है। दोस्ती में गरीबी-अमीरी का भेद नहीं होना चाहिए बल्कि मन के निर्मल एवं सच्चे भाव का बंधन होना जरूरी है तभी मित्रता सार्थक होगी। हमारी मित्रता श्रीकृष्ण-सुदामा जैसी निश्छल
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भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधीच ने मंगलवार को यह बात कही। वे उषानगर स्थित उषाराजे परिसर में श्रीनागर चित्तौड़ा महाजन वैश्य समाज द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-सुदामा मैत्री प्रसंग का भावपूर्ण चित्रण कर रहे थे। कृष्ण-सुदामा मैत्री का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। कथा के दौरान अनेक भक्तों की आंखें छलछला उठी। समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी रमेश मेहता, जगदीश पाराशर,दामोदर महाजन, गुलाबचंद मेहता, सचिन हेतावल, संजय गुप्ता, दिलीप हेतावल, चंद्रकांत मेहता, राधेश्याम गुप्ता एवं ईशान गुप्ता ने व्यासपीठ का पूजन किया। विद्वान वक्ता की अगवानी श्रीमती किरण महेन्द्र गुप्ता, रमेशचंद्र महाजन , ब्रजमोहन गुप्ता, गिरीश गुप्ता, अंकित हेतावल, पवन अकोतिया, नरेन्द्र अकोतिया, दिनेश गुप्ता ने की।

मंगलवार को महिलाओं ने ड्रेस कोड का पालन करते हुए लाल चुनरी तथा पुरुषों ने श्वेत परिधान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। संगीतमय कथा का समापन बुधवार को यज्ञ, हवन के साथ दोपहर 12 बजे पूर्णाहुति के साथ होगा।भागवताचार्य पं. दाधिच ने कहा कि भगवान के जीवन में भी अनेक संकट और दुख आए लेकिन वे कभी रोए नहीं। उन्होंने परिस्थितियों का मुकाबला धैर्य और संयम से किया। कंस वध के बाद उन्होंने खुद सिंहासन पर बैठने के बजाय उग्रसेन को राजपाट सौंप दिया। हम लोग तो छोटी-मोटी संपत्तियों के लिए भी लड़ते रहते हैं। भगवान तो हमारे हृदय में विराजित रहते हैं, उन्हें कहीं बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हमारा ध्यान जगत से हटकर जगदीश के साथ जुड़ जाएगा, उस दिन जगदीश भी हमारे साथ रास खेलने चले आएंगे।\

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