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मध्य प्रदेश लेखक संघ इकाई खरगोन ने शनिवार रात काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। इसमें 26 कवियों ने रचनाएं प्रस्तुत की। मुख्य अतिथि साहित्यकार सुरेश कुशवाहा “तन्मय” ने शब्द की काव्य के माध्यम से व्याख्या कर मुक्तक पढ़े।
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निमाड़ी गणगौर गीत “लदबद अम्बा लदया मोर सी, मन क लग सुहावणा, रावळा म सी बायर निकळी, रणुबाई खेल आंगणा” सुनाया। साथ ही नवीन गीतकार व कवियों को गीत लेखन बताया। अध्यक्षता डॉ.अखिलेश बारचे ने की। विशेष अतिथि डॉ. पुष्पा पटेल व राजनाथ सोहनी रहे।
देररात तक काव्य, गीत व गजल सुनाई अजय मुजाल्दे ने नहीं और कुछ नया होना है.., राकेश गीते रागी ने गीत कैसे गाऊं मनवा कैसे गाऊं, महेंद्रसिंह चौहान ने देती अपने नृत्य से, सबको सुख आनंद, हेमंत बोर्डिया ने शर्मीली रतनारी शाम, मनमोहक मतवारी शाम, ब्रजमोहन चौरे ने कर्मों को छोड़कर जीवन से भाग रहे, कवि वीरेंद्र दसोंधी ने अपनों को छोड़कर गैर गले लगा कर सदा ही कटे हैं, डॉ लवेश राठौर ने गजल “इश्क में अफसाना अपना इस कदर बन जाएगा, मुकेश बारचे ने कारे नाना तून फिल्टर म रोक क्यों लगाई, गीतकार कांताप्रसाद छटिये ने “हम जैसे लोग फिर से ढूंढे नहीं मिलेंगे।
इसी तरह ब्रजेश बड़ोले ने घूम चुका हूं बस्ती बस्ती, देवेंद्र पाठक ने “मेरी लेखनी धारदार नहीं है, आरती डोंगरे ने “चल साथ लेकर आज को, मोहन परमार ने ओंकारेश्वर विहार गीत “इनी धड़s रेवा नs उनी धड़s कावेरी, इचमण नाव चलाड़ो, डॉ अखिलेश बारचे ने प्रैक्टिकल आदमी मरने देता सुनाया। नीरज ठक्कर ने रात की चादर तले खामोशी है छाई, महेश जोशी ने एक तरफ तट की नीरवता, मीना बार्चे ने मक लाई देवो लुगड़ा चार.., अर्चना भटोरे ने रूठता है ऋतुराज, श्री स्वरूप ने ढोर तो आवारा घूमज.. कविता सुनाई। डॉ पुष्पा पटेल, राजाराम गवली, विजय मुजाल्दे, राजनाथ सोहनी ने भी कविताएं पढ़ी। आयोजन देर रात तक चला।


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