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भगवान जब भी अवतार लेते हैं, सज्जनों का कल्याण और दुष्टों का विनाश ही होता है। भारत अवतारों की भूमि है। हमारी संस्कृति में नदी, पर्वत, वृक्ष और जीवों को भी पूजनीय एवं वंदनीय माना गया है। दुनिया के किसी अन्य देश में ऐसे विराट चिंतन का प्रमाण नहीं मिलता
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भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधीच ने शनिवार को उषानगर स्थित उषाराजे परिसर में श्रीनागर चित्तौड़ा महाजन वैश्य समाज द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में यह बात कही। समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि कथा में भगवान राम एवं कृष्ण के जन्मोत्सव धूमधाम से मनाए गए। पुष्प वर्षा के बीच कृष्ण जन्म पर माखन और मिश्री की मटकियां फोड़ी गई। गुब्बारों से कथा स्थल को सजाया गया और भक्तों के बीच टॉफी-बिस्किट के साथ माखन-मिश्री एवं पंजेरी के प्रसाद का वितरण भी किया गया। कृष्ण जन्म होते ही ‘ नंद में आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की ‘… भजन पर समूचा सभागृह नाच उठा।

अन्य शहरों के वरिष्ठजन भी हुए शामिल
कथा शुभारंभ के पूर्व पंच मंडल के संरक्षक प्रहलाद दास मेहता, शंकरलाल गुप्ता, अजय गुप्ता, रमणलाल अकोतिया, अशोक हेतावल, प्रेमप्रकाश गुप्ता, प्रो. हरिशंकर पाराशर आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आरती में सोनकच्छ से समाज के अध्यक्ष ललित गुप्ता, केदारमल अकोतिया, पोलाखाल से रमेश गुप्ता, बरोठा से राजमल गुप्ता, देवास से नवनीत गुप्ता आदि भी शामिल हुए। इस दौरान महिलाओं ने ड्रेस कोड का पालन करते हुए 21 को पीला-पीताम्बर परिधान तथा पुरुषों ने श्वेत परिधान में आकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। संगीतमय कथा 25 सितंबर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से सांय 6 बजे तक हो रही है। कथा प्रसंग के अनुसार 22 सितंबर को बाल लीला, गोवर्धन लीला के उत्सव मनाए जाएंगे।

भगवान का जन्म नहीं, अवतरण होता है
भागवताचार्य पं. दाधिच ने राम कृष्ण जन्म प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान का जन्म नहीं, अवतरण होता है। राम और कृष्ण के बिना हमारी संस्कृति अधूरी है। भारत भूमि की अस्मिता और गौरव के प्रतीक इन अवतारों के कारण ही आज भारतीय धर्म संस्कृति की ध्वजा पूरी दुनिया में फहरा रही है। राम प्रत्येक धर्मनिष्ठ भारतीय के रोम-रोम में रचे-बसे हैं तो कृष्ण भी कण-कण में व्याप्त है। जिस देश में कंकर भी शंकर बन सकता है, उस देश के संस्कारों पर कभी आंच नहीं आ सकती। भगवान तो भाव के भूखे होते हैं, प्रभाव के नहीं।
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