मध्यप्रदेश

Burden of freebies scheme on MP government | एमपी के स्टूडेंट्स को साइकिल-स्कूटी क्यों नहीं मिल रही: फ्रीबीज पर सरकार का 22 हजार करोड़ खर्च, कमाई का 10% ब्याज में जा रहा

मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार शिक्षक दिवस के मौके पर 5 सितंबर को धार जिले के जीराबाद गांव के सरकारी स्कूल पहुंचे थे। कार्यक्रम के बाद जब वे जाने लगे तो इसी स्कूल की पूर्व छात्रा तानिया मालवीय ने उनकी गाड़ी रोक ली।

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छात्रा ने कहा कि 12वीं क्लास में अच्छे अंक लाने पर भी उसे सरकार की स्कूटी योजना का लाभ नहीं मिला है। सिंघार ने छात्रा से हुई इस बातचीत का वीडियो खुद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया और दूसरे दिन अपने खर्च पर छात्रा को स्कूटी दिलाई।

तानिया को तो स्कूटी मिल गई मगर उसके जैसे प्रदेश के 25 हजार से ज्यादा टॉपर्स हैं, जिन्हें सरकार से स्कूटी मिलने का इंतजार है। उनका ये इंतजार तभी खत्म हो सकता है, जब वित्त विभाग इस योजना को मंजूरी देगा। दरअसल, राज्य सरकार ने 33 विभागों की 73 से ज्यादा योजनाओं पर रोक लगा दी है। इस संबंध में 23 अगस्त को सर्कुलर जारी किया गया है।

वित्त विभाग के एक अफसर का कहना है कि बजट के बाद इस तरह के आदेश जारी किए जाते हैं, ताकि सरकार प्रायोरिटी और मौजूदा संसाधन के मुताबिक पैसे का इस्तेमाल कर सके। पिछले वित्तीय वर्ष में ऐसी 150 योजनाएं थीं, जिनके लिए वित्त विभाग की मंजूरी लेना जरूरी था।

वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि इस वित्तीय सख्ती की वजह सरकार की फ्रीबीज स्कीम्स हैं, जिन पर सालाना 22 हजार करोड़ का खर्च हो रहा है। सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही है, उस अनुपात में रेवेन्यू नहीं बढ़ा है।

इस रिपोर्ट में पढ़िए, आखिर जनता से जुड़ी योजनाओं पर वित्तीय पाबंदी क्यों लगाना पड़ी, इन पर सरकार का कितना पैसा खर्च हो रहा है…

4 प्रमुख योजनाएं, जिन पर सरकार ने वित्तीय पाबंदी लगाई है…

1. स्कूटी स्कीम: स्टूडेंट-8 हजार, अनुमानित खर्च-80 करोड़

सरकार 12वीं में स्कूल टॉप करने वाले एक-एक छात्र और छात्रा को स्कूटी देती है। पिछले साल सरकार ने 7,790 छात्रों को स्कूटी दी थी। योजना के मुताबिक, छात्रों पर निर्भर करता है कि वो पेट्रोल से चलने वाली स्कूटी सिलेक्ट करते हैं या फिर बैटरी से चलने वाली ई-स्कूटी।

पिछले साल 4,806 छात्रों ने पेट्रोल से चलने वाली और 2,984 छात्रों ने ई-स्कूटी का चयन किया था। सरकार ने पेट्रोल स्कूटी के लिए 90 हजार रु.और ई-स्कूटी के लिए 1 लाख 20 हजार रुपए प्रति स्टूडेंट राशि स्वीकृत की थी। इस तरह से कुल 7,790 छात्रों को 79 करोड़ रुपए राशि दी गई थी।

इस योजना को लेकर डॉ. मोहन सरकार के सामने संकट यह है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव से पहले कहा था- टॉप थ्री रैंकर्स यानी स्कूल में पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले तीन लड़के और तीन लड़कियों को स्कूटी मिलेगी।

एमपी बोर्ड के रिजल्ट के मुताबिक, ऐसे करीब 25,368 टॉपर्स हैं जो इस क्राइटेरिया में शामिल होते हैं। अब एक स्कूटी की औसत कीमत 1 लाख रु. तय की जाए तो 25 हजार छात्रों को स्कूटी देने के लिए 250 करोड़ रुपए का बजट चाहिए। शिवराज के दोनों वादे पर मोहन यादव सरकार को अमल करना पड़ा तो उसे 983 करोड़ रुपए खर्च करना पड़ेंगे।

2. लैपटॉप स्कीम: स्टूडेंट-90 हजार, अनुमानित खर्च-225 करोड़ रुपए

प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 12वीं में 75 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थियों को लैपटॉप की राशि दी जाती है। पिछले साल एमपी बोर्ड की बारहवीं क्लास में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले 78,641 विद्यार्थियों को लैपटॉप खरीदने के लिए राशि दी गई थी।

इस बार 12वीं परीक्षा में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 90 हजार के आसपास है। यह संख्या पिछले साल की तुलना में लगभग 12 हजार ज्यादा है। इस बार विद्यार्थियों के लैपटॉप के लिए करीब 225 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। अगर 70% वाले विद्यार्थियों को भी शामिल किया जाएगा तो यह संख्या बढ़ जाएगी।

3. लाड़ली बहना आवास योजना: हितग्राही-4.75 लाख, अनुमानित खर्च-5700 करोड़

आवासहीन एवं आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने लाड़ली बहना आवास योजना को एक साल पहले मंजूरी दी थी। इसके लिए 17 सितंबर से लेकर 5 अक्टूबर 2023 तक महिलाओं के आवेदन मांगे गए थे।

एमपी सरकार ने 4 लाख 75 हजार की पहली लाभार्थी सूची भी जारी कर दी है। इन महिलाओं को पक्का मकान बनाने के लिए 1 लाख 20 हजार रुपए की वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी। पहली किस्त के रूप में 25 हजार रुपए दिए जाने का प्रस्ताव है। इस हिसाब से कुल 300 करोड़ रुपए महिलाओं के बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाएंगे। इस पूरी योजना के लिए सरकार को 5700 करोड़ रुपए की जरूरत है।

स्कूल खुले 2 महीने हो गए, लेकिन विद्यार्थियों को नहीं मिली साइकिल

2 माह से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी साइकिल न मिल पाने के कारण हजारों की संख्या में छात्रों को पैदल स्कूल जाना पड़ रहा है। स्कूल से घर की दूरी अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में छात्राएं स्कूल से तौबा कर चुकी हैं। प्रदेश में ऐसे पात्र विद्यार्थियों की संख्या 1.59 लाख है।

राज्य सरकार ने 2015 में स्कूल से लगभग दो किलोमीटर दूर रहने वाले विद्यार्थियों की सुविधा के लिए निशुल्क साइकिल वितरण योजना शुरू की थी। इस योजना में कक्षा 6वीं और 9वीं में दाखिला पाए विद्यार्थियों को शामिल किया था।

योजना का मकसद था कि संसाधन न होने से छात्र बीच में पढ़ाई न छोड़ें। पिछले साल भी पूरा शिक्षण सत्र समाप्त होने के बाद गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को साइकिल बांटी गई थीं।

एमपी सरकार ले चुकी है 18 हजार करोड़ का कर्ज

मध्यप्रदेश की जनता पर 31 मार्च 2024 को खत्म हुए वित्त वर्ष में 3 लाख 75 हजार 578 करोड़ रुपए का कर्ज है। एक अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 तक बीजेपी सरकार ने एक साल में 44 हजार करोड़ रुपए कर्ज लिया था। इसके पहले 31 मार्च 2023 को सरकार पर कर्ज की राशि 3 लाख 31 हजार करोड़ रुपए से अधिक थी।

डॉ. मोहन यादव सरकार के गठन के बाद अब तक 18 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है। सरकार ने 23 जनवरी को 2500 करोड़ का कर्ज लिया था। इसके बाद सरकार ने 7 फरवरी को 3 हजार करोड़ का कर्ज लिया। सरकार 22 मार्च और 7 अगस्त को 5-5 हजार और 27 अगस्त को 2500 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है।

4 पॉइंट में समझिए, सरकार की ऐसी स्थिति क्यों है…

1. सरकार का बजट से ज्यादा कर्ज

वित्तीय जानकार राजेश जैन कहते हैं कि बजट से ज्यादा कर्ज होना खराब स्थिति नहीं होती है, लेकिन यह निर्भर करता है कि कर्ज से मिली राशि का उपयोग किन मदों में करना है? यदि डेवलेपमेंट, इन्फ्रॉस्ट्रक्चर या फिर पब्लिक से जुड़ी योजनाओं के लिए बजट से ज्यादा कर्ज लिया जाता है तो कोई दिक्कत नहीं है। हालांकि, बजट में कर्ज रीपेमेंट करने के लिए राशि (ब्याज व किस्त ) का प्रावधान करना पड़ेगा।

2. घोषणाएं पूरी करने के लिए कर्ज लेना

पिछले कुछ सालों से सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ डिजिटलाइजेशन सिस्टम की वजह से रेवेन्यू भी बढ़ा है, मगर योजनाएं इतनी हैं कि उन्हें जमीन पर उतारने के लिए कर्ज लेना पड़ा है। अब हालत ये है कि ये सरकार पिछली सरकार से दोगुना कर्ज लेने की योजना बना रही है।

3. फ्रीबीज स्कीम्स से सरकार की वित्तीय स्थिति पर विपरीत असर

राजेश जैन के मुताबिक, निश्चित तौर पर रेवेन्यू नेचर की घोषणाएं होती हैं तो रीक्रिंग इफेक्ट आता है और सरकार का खर्च हर महीने बढ़ता जाता है। सामान्य तौर पर केंद्र हो या फिर राज्य सरकार, सत्ता में आने के बाद शुरू के तीन साल बजट के माध्यम से पब्लिक पर बोझ डालती है।

चौथे साल स्थिति को सामान्य करती है। पांचवें साल पब्लिक की मांगों को पूरा करती है। पिछली सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना जैसी योजनाएं लागू कीं। इसका चुनिंदा वर्ग को छोड़कर बाकी लोगों को सीधे फायदा नहीं है और न ही देश या राज्य को कोई बेनिफिट है।

4. रेवेन्यू बढ़ाने की कोशिश नहीं

सरकार को योजनाओं के क्रियान्वयन में लीकेज को बंद करने की जरूरत है। जिन मदों में रेवेन्यू पूरा नहीं आ पा रहा है, वहां ध्यान दिया जाना चाहिए। वो फिर चाहे आबकारी हो, माइनिंग हो या फिर लीज नवीनीकरण। सरकार ने इस साल बजट में कोई नया टैक्स लगाया नहीं है इसलिए ये लीकेज बंद करना और जरूरी हो जाता है। सरकार रेवेन्यू नहीं बढ़ाएगी तो स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसी होगी।

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बंगलों की मरम्मत के लिए भुगतान पर रोक नहीं: सड़क, स्कूल और साइकिल के लिए लेना होगी अनुमति

मंत्रियों के बंगलों में की जाने वाली साज-सज्जा पर होने वाले खर्च के भुगतान पर लगाई गई रोक वित्त विभाग ने हटा दी है। इसके साथ ही आम आदमी से सीधे जुड़ाव रखने वाली हवाई पटि्टयों के निर्माण और इसके लिए किए जाने वाले भू अर्जन, देवारण्य योजना समेत 52 योजनाओं के क्रियान्वयन में होने वाले खर्च को परमिशन से मुक्त कर दिया गया है। पूरी खबर पढ़ें


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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