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शहर रह रहे बिहार के मिथिला से आए हजारों मैथिल समाज के घरों में शुक्रवार को चौरचन (चौठचन्द्र) का अति विशिष्ट त्यौहार पूर्ण धार्मिक श्रद्धा एवं मिथिला के रीति-रिवाज़ के साथ मनाया गया। मैथिल समाज की महिलाओं द्वारा दिन भर उपवास रखने के पश्चात सूर्यास्त के
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मैथिल समाज के वरिष्ठ केके झा ने कहा कि शहर के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से तुलसीनगर, स्कीम न 78, संगम नगर, बाणगंगा, खातीपुरा, विजय नगर, सिलिकॉन सिटी, राउ, पीथमपुर एवं महू में रह रहे मैथिल समाज के लोगों के घरों में चौरचन का त्यौहार पूर्ण धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया गया।

प्रसाद सामग्री चंद्रमा को अर्पित कर करते हैं पूजा
दरभंगा निवासी गीता झा 30 सालों से चौरचन का व्रत कर रही हैं. उन्होंने कहा कि आज के दिन घर की बुजुर्ग एवं व्रती महिलाएं घर के आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी प्रसाद सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित करते हुए पूजा करती हैं और प्रसाद, फल को अपने हाथ में लेकर आज के शापित चन्द्रमा का दर्शन करती हैं। इस दौरान अन्य महिलाएं चौरचन पर्व पर आधारित लोक गीत गाती हैं। तुलसी नगर निवासी शारदा झा ने कहा कि मिथिला में चौरचन मनाए जाने के पीछे भी एक खास तरह की मनोवृत्ति छिपी हुई है।

गणेशजी ने दिया था चंद्रमा को शाप
माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को शाप दिया गया था। इस कारण इस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है। परंपरा से यह कहानी प्रचलित है कि भगवान् गणेश को देखकर चांद ने अपनी सुंदरता पर घमंड करते हुए उनका मजाक उड़ाया। इस पर विघ्नहर्ता गणेश ने क्रोधित होकर उन्हें यह शाप दिया कि चांद को देखने से लोगों को समाज से कलंकित होना पड़ेगा। इस शाप से मलिन होकर चांद खुद को छोटा महसूस करने लगा। शाप से मुक्ति पाने के लिए चन्द्रमा ने भाद्र मास की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की। तब जाकर गणेश जी ने कहा, “जो आज की तिथि में चांद के पूजा के साथ मेरी पूजा करेगा, उसको कलंक नहीं लगेगा।” तब से यह प्रथा प्रचलित है। चौरचन पूजा यहां के लोग सदियों से इसी अर्थ में मनाते आ रहे हैं। पूजा में शरीक सभी लोग अपने हाथ में कोई न कोई फल जैसे खीरा व केला रखकर चांद की अराधना एवं दर्शन करते हैं। चौरचन की पूजा के दैरान मिट्टी के विशेष बर्तन, जिसे मैथिली में `अथरा’ कहते हैं, में दही जमाया जाता है। इस दही का स्वाद विशिष्ट एवं अपूर्व होता है।
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