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जीपी सिंघल आयोग की रिपोर्ट को लेकर अधिकारियों और कर्मचारियों की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। बड़े कर्मचारी संगठनों के नेताओं का कहना है कि कर्मचारियों के वेतन, ग्रेड-पे और पदनाम परिवर्तन जैसे मुद्दे पिछले चार दशक से चल रहे हैं। इनके निराकरण के लिए 10 आय
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कर्मचारियों का कहना है कि सरकार आयोग-समितियों की आधू-अधूरी सिफारिशें लागू करेगी, तो आयोग-दर-आयोग बनते रहेंगे और विसंगतियां कभी हल नहीं होंगी। इसलिए सरकार को चाहिए कि सिंघल आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करे, कर्मचारी संगठनों के साथ आयोग की सिफारिशों पर मंथन करे और आपसी सहमति से रिपोर्ट काे लागू करे, ताकि इन्हीं विसंगतियों को लेकर भविष्य में कोई आयोग बनाने की जरूरत न पड़े।
रिपोर्ट से कर्मचारी संतुष्ट नहीं
ज्यादातर कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने अब तक सिंघल आयोग की रिपोर्ट नहीं देखी है और उन्हें यह भी पता नहीं है कि रिपोर्ट में उनके संवर्ग को लेकर सिफारिश की गई हैं या नहीं। वहीं मप्र लघु वेतन कर्मचारी संघ के नेताओं का कहना है कि उनकी ग्रेड-पे की मांग को रिपोर्ट में तरजीह नहीं दी गई है। ऐसा ही दूसरे कर्मचारी संवर्गों को लेकर भी हुआ है।
कर्मचारियों की विसंगतियां
लिपिकों के वेतन की विसंगति 1984 से चल रही है। तृतीय श्रेणी में लिपिकों का वेतन पटवारी, सहायक शिक्षक, ग्राम सेवक, ग्राम सहायक, पशु क्षेत्र चिकित्सा अधिकारी संवर्ग से ज्यादा था। धीरे-धीरे नीचे वाले सभी संवर्गों के वेतन बढ़ते गए और विभाग प्रमुख एवं निचले कार्यालयों में पदस्थ लिपिकों को ग्रेड-पे कम मिलने लगा। वर्तमान में मंत्रालय के लिपिकों को ग्रेड-पे सबसे ज्यादा है।
लिपिक एवं चतुर्थ श्रेणी के ग्रेड-पे में 100 रुपए का अंतर
आज की स्थिति में लिपिक तृतीय श्रेणी के संवर्गों में वेतन में निम्न स्तर पर है। लिपिक और चतुर्थ श्रेणी की ग्रेड-पे में केवल 100 रुपए का अंतर है। राजस्थान में लिपिकों का वेतनमान बढ़ाया जा चुका है। वहीं, सहायक ग्रेड-3 की ग्रेड-पे 1900 रुपए है, जबकि डाटा एंट्री आपरेटर की 2400 रुपए और पटवारी की ग्रेड-पे 2100 रुपए है।
पशु चिकित्सकों के वेतन में भी अंतर
प्रदेश में पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारियों का वेतनमान बढ़ा दिया गया है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग की 11 योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले एएनएम और एमपीडब्ल्यू का वेतनमान नहीं बढ़ाया गया है। जिन संवर्गों में इंस्पेक्टर लगता है, वे उनका वेतनमान अन्य इंस्पेक्टर के समान चाहते हैं।
कर्मचारी नेताओं ने क्या कहा…

आयोग की सिफारिशों की लेकर स्थिति स्प्ष्ट नहीं है। इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। सरकार को आयोग की रिपोर्ट कर्मचारी संगठनों को उपलब्ध करानी चाहिए। उनका अध्ययन कर कर्मचारी जो सुझाव दें, उसके आधार पर निर्णय लेकर सिफारिशें लागू करनी चाहिए। तभी कर्मचारियों के साथ न्याय होगा और उनकी विभिन्न विसंगतियां दूर हो पाएंगी।
सुधीर नायक, अध्यक्ष, मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ

लिपिकों के ग्रेड-पे की विसंगति बड़ा मुद्दा है। इस पर आयोग ने क्या निर्णय लिया यह तो रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर पता चलेगा। इससे पहले भी 10 आयोग और समिति बन चुके हैं, सभी ने सिफारिशें भी की हैं पर कर्मचारियों को वही मिला, जो सरकार ने चाहा। यदि सिंघल आयोग ने सभी कर्मचारियों की विसंगतियों पर सिफारिश की है, तो सरकार ने उसे पूर्ण रूप से लागू करना चाहिए।
एमपी द्विवेदी, अध्यक्ष, मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ

सरकार ने ब्रह्मस्वरूप समिति बनाई, अग्रवाल, शर्मा, पुरोहित, मेहरोत्रा आयोग गठित किए, सभी ने अपनी-अपनी सिफारिशें दीं, पर सरकार ने पूरी तरह से लागू कहां कीं। यदि सरकार पूरी सिफारिशें लागू कर देती तो कोई नया आयोग गठित करने की नौबत ही नहीं आती। यदि सिंघल आयोग ने समग्र रूप से कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान दिया और सिफारिश की है, तो उसे पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए।
जितेंद्र सिंह, अध्यक्ष, मप्र अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा

समितियां बनती हैं, अनुशंसाएं आती हैं पर कर्मचारियों को लाभ कहां मिलता है। लिपिकों की विसंगति दूर करने, पदोन्नति देने, वाहन भत्ता-गृह भाड़ा भत्ता देने सहित अन्य मांगों को लेकर समितियां बनीं पर लाभ नहीं मिला। सिंघल समिति ने जो अनुशंसाएं की हैं, उनका लाभ कर्मचारियों को तत्काल मिलना चाहिए। यही कर्मचारियों के हित में होगा।
उमाशंकर तिवारी, सचिव, मप्र तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ

ग्रेड-पे में सुधार की मांग हमारी भी थी, पर पता चल रहा है कि रिपोर्ट में उसकी अनुशंसा नहीं की गई है। पहले भी कई आयोग और समितियां बनाई गईं, उनकी सिफारिशें भी आईं। उनमें से अधिकांश आयोग या समिति ने कर्मचारियों की हर विसंगति पर अपनी सिफारिश दी, पर पूर्व सरकारों ने उन्हें लागू ही नहीं किया। ऐसे में विसंगतियां समाप्त होने की उम्मीद क्या की जा सकती है।
महेंद्र शर्मा, अध्यक्ष, मप्र लघु वेतन कर्मचारी संघ
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