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विश्वगीता प्रतिष्ठानम् द्वारा तीन दिवसीय मालवा प्रांतीय सम्मेलन में शनिवार को प्रातःकाल भारतीय योग संस्थान इंदौर के विश्वगीताप्रतिष्ठानम् के मालव प्रांत के सयोजक श्रीओम नम्र द्वारा बताया गया व प्रमुख श्री शिवकुमार गुप्ता जी ने योग क्रियाएं करवाते हुए
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कार्यक्रम में गीता स्वाध्यायियों का परिचय देते हुए।
कार्यक्रम में शामिल हुए प्रमुखों का कराया परिचय
प्रांतीय सम्मेलन में अध्यक्ष डॉ. जवाहरलाल द्विवेदी गुना, उपाध्यक्ष डॉ. जे. एल. त्रिपाठी, रीवा महामंत्री डॉ. विष्णु नारायण तिवारी ग्वालियर, विष्णुप्रसाद शर्मा शिवपुरी संगठन मंत्री, ओमप्रकाश शर्मा दतिया केंद्रीय परीक्षा प्रमुख, हरिनारायण तिवारी विदिशा, स्वाध्याय प्रमुख सुधीर सक्सेना गुना सहसचिव, रमेश कोठारी शिवपुरी, संयुक्त सचिव, मोहनलाल नागर कोष प्रमुख राजगढ़, संध्या पाण्डेय झांसी उत्तर प्रदेश, महिला प्रमुख, प्रहलाद गुप्ता इंदौर, व्यवस्था प्रमुख, डॉ. उमेश वैद्य सागर, संस्कृति प्रमुख, सर्वदेव तिवारी युवा प्रमुख के अतिरिक्त मालवा प्रांत, महाकौशल प्रांत, मध्य भारत प्रांत, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्णपुर प्रांत, विंध्याचल क्षेत्र, प्रयाग प्रांत के प्रांतीय पदाधिकारियों, जिला पदाधिकारियों, गीता स्वाध्यायियों का भी परिचय कराया गया। इस दौरान कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो तीन पीढ़ियों के साथ आए हैं। परिचय सत्र के पश्चात् तृतीय सत्र में गीता पर आधारित व्याख्यान मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे द्वारा दिया गया। श्री दवे ने गीता स्वाध्यायियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज 600 से ज्यादा चैनल छोड़ कर आप गीता स्वाध्याय कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं और गीता के प्रचार-प्रसार में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रहे हैं, आपके दर्शन कर मैं कृतार्थ हुआ। विश्व भर में जितने भी संगठन हैं सबके लिए गीता से ही प्रेरणा प्राप्त होती है। 16.7.1945 में अमेरिका द्वारा किए गए परमाणु विस्फोट में जो ऊर्जा उत्पन्न हुई थी, उस समय पत्रकारों के पूंछने पर कि एक पंक्ति में बताएं कितनी ऊर्जा उत्पन्न हुई। उन्हें अंग्रेजी का कोई शब्द उपयुक्त नहीं लगा, तब उन्होंने गीता के एक श्लोक के चतुर्थांश से उत्तर दिया- ” सूर्यकोटिसमप्रभ ” उन्होंने कहा कि आज जो विस्फोट किया है, वह पहले महाभारत में हुआ होगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ. अब्दुल कलाम आजाद 350 कमरों के राष्ट्रपति भवन को छोड़कर आए तो वहां से तीन वस्तुएं लाए थे वह तीन वस्तुएं झोला, गीता और वीणा उनके लिए यही प्रेरक व आनंददायक थीं।

प्रांतीय गीता सम्मेलन में संबोधित करते हुए स्वामी।
सम्मेलन में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के डायरेक्टर समुद्र तट पर जोर-जोर से गीता श्लोक गायन कर रहे थे, उनके विद्यार्थी ने कहा- आप यह क्या कर रहे हैं, इससे क्या होगा, उन्होंने शांति पूर्वक उत्तर दिया कि मैं इन्हीं से प्रेरित होकर अनुसंधान करता हूं। बाद में उस विद्यार्थी ने संस्थान में जाकर उनके पद का ज्ञान होने पर क्षमा मांगी और वह गीतानुरागी बन गया। इसी क्रम में चार्वाक, मार्क्सवाद के विचारों का खंडन करते हुए गीता में कर्मयोग, विज्ञान, प्रबंधन आदि से संबंधित प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए नई पीढ़ी के युवाओं को गीता से ऊर्जा प्राप्त कर अपना जीवन आनंदमय बनाने के साथ गीता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करने का आह्वान किया।

चिन्मयानंद मिशन के स्वामी प्रबुद्धानंद महाराज संबोधित करते हुए।
इसी सत्र में चिन्मयानंद मिशन के स्वामी प्रबुद्धानंद महाराज ने हिंदू धर्म के मूल ग्रंथ वेद के अपौरुषेय होने तथा ऋषि मंत्र दृष्टा होने की तरह ही न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को चुनौती देते हुए कहा कि क्या सेव उससे पहले गिरकर पृथ्वी पर नहीं आते थे ? महाराजश्री ने कहा कि यह सिद्धांत पहले से ही था न्यूटन तो उसके दृष्टा थे ठीक उसी तरह जैसे वेद मंत्रों के दृष्टा ऋषिगण थे। गायत्री मंत्र के दृष्टा वशिष्ठ विश्वामित्र जी थे। आज की युवा पीढ़ी भ्रमित है, उसके लिए क्या करें क्या न करें की स्थिति बनी रहती है, उनके लिए मेरा यही संदेश है कि वह शास्त्रों को प्रमाण मानें। ” तस्मात् शास्त्रम् प्रमाणम् ते “।। आजकल साधुओं व संतों का अनुसरण नहीं किया जा सकता है – बिना नाम बताते हुए उन्होंने कहा कि एक कथावाचक कथा कर घर आने पर विवाद होने पर पहले अपनी पत्नी को पीटते हैं फिर उन्हें बचाने आईं अपनी माताजी को भी पीट देते हैं। ऐसे कथावाचकों का अनुसरण नहीं किया जा सकता है। इसलिए शास्त्रों को प्रमाण मानें, उसके अनुसार मार्गदर्शन प्राप्त कर अपना अमूल्य मानव जीवन सफल बनाएं। कर्मयोग पर प्रकाश डालते हुए महाराज श्री ने कहा ” कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। उन्होंने बताया कि बिना फल की इच्छा के कोई पागल ही काम कर सकता है, समझदार तो फल पहले चाहता है। पढ़ रहे हैं तो उत्तीर्ण होंगे, कथा कर रहे हैं तो दक्षिणा अवश्य मिलेगी, ऐसे अन्य उदाहरण भी दिए। फिर आपने समाधान किया कि क्या आपने सोचा था कि हम मनुष्य बनेंगे, हमारे यह माता पिता होंगे, हमें यही पत्नी मिलेंगी, हमारा इस कुल में जन्म होगा। आदि -आदि नहीं। फिर यह कैसे हुआ तो यह आपके पूर्व कृत कर्मों के कारण ही हुआ है। अतः आप सत्कर्म करते हुए अपने जीवन को गीता के कथनानुसार व्यवस्थित, आनंदमय बनाने हेतु प्रयास करें। आपकी आत्मा किसी कर्म को करने के पहले सही दिशा दिखाती है। आप के हृदय में परमपिता परमेश्वर विराजमान हैं, वह उचित समय पर मार्गदर्शन देते हैं, हमें उनके संकेतानुसार सत्कर्म करते रहना चाहिए। सायंकाल आदर्श गीता स्वाध्याय में अवंतिका पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रंगनाथाचार्य महाराज ने पुरुषोत्तम योग पर अपनी व्याख्या में संसार रूपी वृक्ष के वर्णन द्वारा परमात्मा के स्वरूप के दर्शन कराए। रात को डॉ. उमेश वैद्य ने अपने दिव्यांग कलाकारों के साथ मोनिया नृत्य व गीता नृत्य नाटिका का मंचन किया।
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