[ad_1]
दोपहर के दो बजे हैं। महिलाएं और बच्चों के सिर पर पानी से भरे बर्तन रखे हैं। कच्चे रास्ते पर ये सभी सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही हैं। इनकी कोशिश है कि बर्तन से पानी न छलके, नहीं तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा।
.
ये तस्वीर बुरहानपुर जिले के मेल्टया गांव की है। सरकार और जिला प्रशासन का दावा है कि बुरहानपुर के 253 गांवों के करीब 1 लाख से ज्यादा घरों में नल से पानी मिल रहा है। केंद्र और राज्य सरकार ने बुरहानपुर को हर घर जल का देश का पहला प्रमाणित जिला भी घोषित किया है।
मगर, हकीकत ये है कि कई गांवों में योजना पहुंची ही नहीं है। वहीं, कई गांवों में पाइपलाइन तो बिछा दी गई है, मगर पानी नहीं पहुंच रहा। दैनिक भास्कर ने बुरहानपुर की तीन ग्राम पंचायतों के गांवों में जाकर इस योजना की हकीकत देखी तो पता चला कि ग्रामीण 2 से 3 किमी दूर से पानी लाने के लिए मजबूर है। पढ़िए ये रिपोर्ट…

पहले जानिए क्या है प्रशासन का दावा
सरकारी दस्तावेज के मुताबिक बुरहानपुर में 167 ग्राम पंचायतें हैं। 254 गांव हैं। जल जीवन मिशन की शुरुआत में (15 अगस्त 2019) में बुरहानपुर में कुल 1,01,905 घरों में से केवल 37,241 ग्रामीण परिवारों (36.54 प्रतिशत) के पास ही नल कनेक्शन के पीने का पानी था, जिसके बाद सरकार ने दावा किया था कि इन सभी गांव में 2022 तक हर घर नल से जल पहुंच गया है। इसके अलावा 640 स्कूलों, 549 आंगनवाड़ी केंद्रो में भी इस योजना के तहत पानी पहुंच गया है।

अब जानिए क्या है हकीकत
जल जीवन मिशन योजना की हकीकत जानने भास्कर की टीम जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर असीरगढ़ पहुंची। यहां की तीन ग्राम पंचायतें असीर, धूलकोट और खामला के कई गांवों में जेजेएम योजना के तहत पाइपलाइन तो बिछाई गई है, लेकिन पानी नहीं आता। दूसरी तरफ कई गांव ऐसे हैं जहां इस योजना का फायदा ही नहीं पहुंचा। इन सभी गांवों में ज्यादातर बारेला आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं।

बुरहानपुर के आदिवासी इलाकों में पानी भरने के लिए महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी जाते हैं।
मेटल्या गांव की महिलाएं 4-5 किमी दूर से पानी लाती हैं
मेटल्या गांव में आदिवासियों के 10-15 टोले बने हैं। इनके पास जमीन का पट्टा तो है, मगर गर्मी में गांव में पानी नहीं रहता। जब भास्कर की टीम गांव में पहुंची तो देखा कि घर सूने पड़े हैं। गांव में महिलाएं-बच्चे भी नजर नहीं आ रहे थे।
एक ग्रामीण से पूछा तो उसने बताया कि महिलाएं पानी लेने गई हैं। उसके बताए रास्ते पर जब आगे बढ़े तो महिलाएं बच्चों के साथ पानी लाते हुए नजर आईं। जब इन महिलाओं से बात की तो उन्होंने बताया कि घर से 5 किमी दूर से पानी भरकर लाना पड़ता है।
कली बाई ने बताया कि छोटे बच्चे को साथ लेकर जाना पड़ता है। एक बार जाने से काम नहीं बनता। दिन में करीब 6-7 बार पानी लेने जाते हैं। कली को टोकते हुए नीना बाई बोलीं कि गांव में पानी की इतनी दिक्कत है कि नई बहुएं वापस अपने मायके चली गई हैं।
गांव के राजेश सिसोदिया कहते हैं कि इस समस्या को लेकर सीएम हेल्पलाइन में दो से तीन बार शिकायत की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। गांव के ही रहने वाले राजेश इस बात से नाराज दिखते हैं कि नेता सिर्फ वोट मांगने आते हैं, मगर लोगों की समस्याओं से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता।

पिपराना गांव में झिरिया से पानी लाते हैं ग्रामीण
असीरगढ़ किले के सामने से एक रास्ता जंगलों के बीच से ग्राम पंचायत धूलकोट की तरफ जाता है। धूलकोट ग्राम पंचायत में 2 गांव आते हैं, धूलकोट और पिपराना। इसके अलावा यहां करीब 12 से 13 बस्तियां आदिवासियों की हैं।
धूलकोट से पहले पिपराना गांव पड़ता है। जल जीवन मिशन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार धूलकोट के 1 हजार 178 घरों तक पानी पहुंचा दिया गया है, लेकिन इन आंकड़ों में इस पंचायत में आने वाला पिपराना गांव शामिल ही नहीं है। जबकि, ये गांव मेन रोड से महज 2 किमी दूर है।
भास्कर की टीम इस गांव में पहुंची तो ग्रामीणों ने बताया कि गांव से डेढ़ किमी दूर एक झिरिया है, पानी लेने वहां जाना पड़ता है। गांव में एक हैंडपंप है। ग्रामीणों से पूछा- क्या इसमें पानी नहीं आता, इसका जवाब न देते हुए दो महिलाएं हैंडपंप चलाने लगीं। पंप से इतना भी पानी नहीं निकला जिससे एक बर्तन भर सके।

गर्मी के मौसम में पिपराना गांव का हैंडपंप एक बर्तन भरने के लायक भी पानी नहीं देता।
झिरी का गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण
इस गांव की झीना बाई ने बताया कि झिरी का पानी इतना गंदा है कि उसे पीकर बच्चों को उल्टी-दस्त की शिकायत हो रही है। झीना बाई ने भास्कर रिपोर्टर से कहा कि वो खुद जाकर वहां देखे। झीना बाई के कहने पर भास्कर की टीम महिलाओं के साथ उस झिरी पर पहुंची।
डेढ़ किमी का सफर तय कर जब झिरी के पास पहुंचे तो देखा कि वो एक छोटा सा गड्ढा था, जिसमें मटमैला पानी भरा हुआ था। एक महिला झिरी के पास पहुंची उसने गंदे पानी को हटाया। उसके बाद झिरी से कटोरे से महिलाएं बर्तनों में पानी भरने लगी।
पानी भरने वालों में छोटी बच्ची ज्योति भी थी। ज्योति ने बताया कि इसी तरह झिरी से पानी निकालते हैं। एक मटका भरने में दो घंटे से ज्यादा का समय निकल जाता है। ज्योति कहती है कि पानी का सिर्फ ये एक ही जरिया है। जानवर भी इसी झिरी पर पानी पीने आते हैं।

पिपराना गांव के लोग डेढ़ किमी दूर एक झिरी से पानी भरकर लाते हैं।
सरकारी आंकड़ों में खामला के 132 घरों में नल से पानी, हकीकत दूसरी
मेल्टया और पिपराना गांव में तो नल जल योजना का फायदा नहीं मिल रहा, लेकिन जहां मिल रहा है, वहां भी हालात ठीक नहीं है। बुरहानपुर की खामला ग्राम पंचायत में एक गांव और करीब 4 फालिए आते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पंचायत के खामला में 132 घरों तक पानी पहुंचा दिया गया है, लेकिन जमीन पर देखें तो इस योजना की पाइपलाइन से करीब 5 घरों के लिए एक कॉमन नल है। यानी 1 नल से करीब 5 घर के लोग पानी भर रहे हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि नलों में पानी भी रात के करीब 3 बजे छोड़ा जाता है। इस पंचायत के अंतर्गत करीब 4 से ज्यादा फालिए आते हैं, लेकिन सरकारी आकड़े के अनुसार 20 घरों वाले मनरालिना फालिए में ही नल लगे हैं।इसके अलावा जो बाकी फालिए हैं, वहां न नल पहुंच पाएं हैं और न ही पानी। उन फालियों में रहने वाले लोग दूरदराज के कुएं और हैंडपंप से पानी लाने को मजबूर हैं।

खामला गांव में नल जल योजना के तहत इस तरह से पाइप बिछाए गए हैं। पांच परिवार के लोग एक जगह से पानी भरते हैं।
नियमों के चक्रव्यूह में फंसे कई आदिवासी ग्रामीण
जेजेएम (जल जीवन मिशन) योजना में जंगल में बसे अनधिकृत टोलों और 20 घरों से कम टोलों को शामिल नहीं किया गया है। बुरहानपुर में 50 से अधिक ऐसे टोले हैं, जहां 20 से कम घर हैं। ऐसे में जेजेएम के नियमों के चक्रव्यूह में इन टोलों में रहने वाले कई आदिवासी ग्रामीण फंसे हैं।
प्रशासन के अनुसार जंगल काटकर बसे टोले तक पानी पहुंचाने के लिए वन विभाग अनुमति नहीं देता है। हालांकि, जल जीवन मिशन की आधिकारिक वेबसाइट में कई ग्राम पंचायतें ऐसी हैं, जिनके अंतर्गत 8 से 15 घर वाले टोलों को भी योजना के तहत पानी पहुंचाने का दावा किया गया है।

जलस्त्रोतों का भी संरक्षण नहीं
इस बार भीषण गर्मी के बीच बुरहानपुर में अधिकतम तापमान 46 डिग्री तक गया था। ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति भी ठीक नहीं है। बुरहानपुर से असीरगढ़ जाने वाली मुख्य सड़क पर एक ग्राम पंचायत आती है, निम्बोला। यहां से करीब 4 किमी दूर मंगरूल गांव में मुगलकालीन बावड़ियां हैं, जिनमें आज भी पर्याप्त पानी है।
मगर, इनकी स्थिति चिंताजनक है। इन पर जिम्मेदारों का कोई ध्यान नहीं है। इन ऐतिहासिक बावड़ियों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। मंगरूल गांव की बावड़ी में से तो नल जल योजना की पाइपलाइन भी गई है।
वहीं, खामला गांव में भी ऐसी ही बावड़ियां हैं। यहां भी जलस्तर अच्छा है। सीढ़ियां होने के कारण ग्रामीण और राहगीर बावड़ी का पानी पीते थे। गांव के ही अकबर निहारा कहते हैं कि हमारे घरों में जो नल से पानी आता है उससे अच्छा पानी बावड़ी का है।
हालांकि, बावड़ी में गंदगी है। ग्रामीण कहते हैं कि 10 साल पहले तत्कालीन कलेक्टर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था, उसके बाद से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

बुरहानपुर में मुगलकालीन बावड़ियों में पानी तो है, मगर देख-रेख के अभाव में ये पानी पीने लायक नहीं है।
ताप्ती नदी में मिल रहा नालों का पानी
बुरहानपुर जिला ताप्ती नदी के किनारे बसा है। पुराणों में ताप्ती नदी को आदि गंगा कहा जाता है। ताप्ती के राजघाट पर मंदिर बने हैं, त्योहार के मौकों पर यहां धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। दूसरी तरफ इसी घाट के पास से नालों का पानी भी नदी में छोड़ा जा रहा है।
बुरहानपुर की रीता कहती हैं कि भीषण गर्मी में पानी की किल्लत होती है तो लोगों की पानी की अहमियत पता चलती है, लेकिन उसके संरक्षण को लेकर कोई ध्यान नहीं देता। व्यवसायी हौसंग हवलदार बताते हैं कि इस गंदगी को खत्म करने के लिए प्रशासन ने पूरे प्रयास नहीं किए। नालों के पानी को साफ करने के लिए फिल्टर प्लांट भी लगाए गए, लेकिन फिल्टर प्लांट में पूरी तरीके से चलते नहीं है। कहने को करोड़ों रुपए कर खर्च किए हैं।
[ad_2]
Source link



