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बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में केवल लिपिकीय कैडर के पदों पर हुई नियुक्तियां, प्रमोशन और ज्वाइनिंग विवादित नहीं हैं। बल्कि चिकित्सकीय कैडर में भी जमकर गोलमाल हुआ है। इसका उदाहरण स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग है।
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इस विभाग में वर्ष 2010 में हुई असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती प्रक्रिया में आदिवासी तबके (एसटी) के लिए आरक्षित पद पर जनरल कैटेगरी की महिला डॉ. शीला जैन को ज्वाइनिंग दे दी गई। बीच-बीच में अनुसूचित जनजाति समुदाय के संगठनों ने आरटीआई के तहत इस भर्ती प्रक्रिया की जानकारी मांगी तो उन्हें गुमराह कर कुछ अन्य दस्तावेज दिए गए। चंद दिन पहले नवागत डीएमआई ने तो दो कदम आगे बढ़कर इस पूरी प्रक्रिया को जायज बता दिया। जबकि हकीकत यह है कि भर्ती प्रक्रिया सही हो सकती है, लेकिन ज्वाइनिंग में गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा सकता।
एसोसिएट के बाद अब प्रोफेसर बनाने की तैयारी : 14 दिसंबर 2010 को बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (ऑब्स-गायनी) में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर डॉ. शीला जैन को ज्वाइनिंग दी गई। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 2010 में विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर का कोई भी पद रिक्त नहीं था। अनुसूचित जनजाति के पद पर डॉ. जैन को ज्वाइनिंग दी गई। ज्वाइनिंग भी नियमों को दरकिनार कर दी गई। गलतियां छिपाने के लिए स्थापना शाखा के कुछ अहम दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ की गई है।
जांच रिपोर्ट को दरकिनार कर डीएमई ने नियुक्ति को दे दी क्लीनचिट
आरटीआई कार्यकर्ता अधिवक्ता जगदेव सिंह ने बताया कि हाल ही में डीएमई डॉ. एके श्रीवास्तव द्वारा डॉ. शीला जैन की नियुक्ति के विरुद्ध पहले हुई जांच को पत्र क्रमांक 360/स्थापना/राज/ सं. चि. /2024 भोपाल दिनांक 05/03/2024 के जरिए क्लीनचिट दी गई है। जबकि तमाम शिकायतें डॉ. शीला की नियुक्ति नहीं उनकी नियम विरुद्ध ज्वाइनिंग के संबंध में थीं। मेरी मांग है कि इस पत्र की भी जांच होनी चाहिए। क्योंकि डॉ. जैन इस पत्र के माध्यम से अधिकारियों को गुमराह कर रही हैं। उनके द्वारा आदिवासी तबके का हक छीना गया है।
एड. सिंह का कहना है कि वर्ष 2010 में जब विभाग में स्वीकृत असिस्टेंट प्रोफेसर के सारे पद भरे हुए थे। तब अचानक से 2 पद के लिए विज्ञापन क्यों निकाला गया। इस पूरे षड्यंत्र और घपलेबाजी की शुरुआत इस विज्ञापन और उसके जरिए हुई नियुक्तियों से होती है। शासन को इसकी भी सूक्ष्मता से जांच कराना चाहिए।
सवाल : जब पद ही रिक्त नहीं था तो फिर कैसे ज्वाइन कराया?
14 दिसंबर 2010 में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए संचालनालय चिकित्सा शिक्षा भोपाल द्वारा इंटरव्यू के माध्यम से डॉ शीला जैन की नियुक्ति की गई थी और फिर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के गायनी विभाग में ज्वाइनिंग कराई गई। लेकिन उस समय (2010 में) बीएमसी के गायनी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर का किसी भी कैटेगरी में पद रिक्त नहीं था। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2010 से अभी तक बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में कुल चार पद स्वीकृत हैं। डॉ. शीला जैन की नियुक्ति के पहले इन चार पदों पर 24 दिसंबर 2010 तक रोस्टर के नियमानुसार अनारक्षित- डॉ. शिखा पांडे,
अनु जनजाति- डॉ. अनिता बघेल, अनारक्षित- डॉ. निधि मिश्रा और डॉ. जागृति किरण नागर पदस्थ थीं। इस स्थिति में डॉ. जैन के लिए नौकरी की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। जबकि उन्हें 14 दिसंबर 2010 में ज्वाइन करा लिया गया। इधर 24 दिसंबर 2010 को अजजा वर्ग में नियुक्त डॉ. बघेल ने पद से इस्तीफा दे दिया। यहीं बीएमसी के तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों व कतिपय सीनियर डॉक्टर्स ने चालाकी से डॉ. शीला को डॉ. बघेल के पद पर ज्वाइन करा दिया। जबकि इस पद पर किसी अजजा वर्ग के व्यक्ति को अवसर दिया जाना चाहिए था।
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