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सांकेतिक तस्वीर।
– फोटो : अमर उजाला
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मप्र हाईकोर्ट ने राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। चीफ जस्टिस रवि विजय मलिमथ व जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता ने आवेदन पेश कर अनारक्षित वर्ग में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किए जाने की राहत चाही गई थी। युगलपीठ ने पाया कि उक्त मांग संबंधी आवेदन पूर्व में न्यायालय खारिज कर चुकी थी। याचिकाकर्ता के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए युगलपीठ ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। युगलपीठ ने बीस हजार रुपये की कॉस्ट लगाते हुए याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया।
अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी जबलपुर निवासी भानु सिंह तोमर की तरफ से याचिका दायर कर मप्र सरकार द्वारा 20 दिसंबर 2021 को राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को चुनौती दी गई थी। याचिका में पीएससी की प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा में अनारक्षित सीटों पर आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान उम्मीदवारों को रोकने की मांग की गई थी। याचिका में राहत चाही गई थी कि समस्त अनारक्षित पदों को केवल अनारक्षित पदों से ही भरा जाए। राज्य शासन ने उक्त नियम में संशोधन कर प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्गों के मेरिटोरियस उम्मीदवारों से भरे जाने का प्रावधान किया है।
एकता मंच के अध्यक्ष लोकेन्द्र सिंह गुर्जर व दीपक पटेल हस्तक्षेप कर्ता बने थे। याचिकाकर्ता की ओर से पीएससी भर्तियों में ओबीसी, एससी-एसटी के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में शामिल किए जाने से रोके जाने की मांग संबंधित आवेदन पेश किया गया था। हाईकोर्ट ने उक्त आवेदन को 23 सितंबर 2023 को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से पुनः एक आवेदन पेश कर समरूप राहत चाही गई। इसे खारिज करते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर बीस हजार रुपये की कॉस्ट लगाई। युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 16 फरवरी को नियत की है। हस्तक्षेप कर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर पैरवी कर रहे हैं।
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