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इंदौर7 मिनट पहले
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संसारी अपनी चाह की पूर्ति का प्रयास करता है। साधक इच्छा की निवृत्ति पथ पर आगे बढ़ता है। जब कोई इच्छा नहीं होती, तब शांति ही शांति है। जिसे कोई काम नहीं होता वह घर में बैठा रहता है, इसी तरह जब मन में कोई इच्छा नहीं होती, तो मन भी अपने घर में बैठा रहता है, यानी आनंद स्वरूप में बैठता है और सहज सुख की अनुभूति करता है। यदि व्यक्ति की कोई कामना न हो तो उससे सुखी कोई हो ही नहीं सकता।
सुखलिया के सीजेआरएम डुप्लेक्स के पास शंकराचार्य मठ इंदौर के
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