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इंदौर10 मिनट पहले
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स्वामी मुकुंदानंद।
आनंद हमारी झोली में अपने आप आकर नहीं गिरता। जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्रयास की जरूरत होती है, उसी तरह मन को भी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। समस्याओं के सामने लोग बहुत आसानी से निराश हो जाते हैं। चिंतन करना चाहिए कि ऐसा क्यों होता है। अप्रशिक्षित मन हमेशा आसान मार्ग को चुनने के लिए तत्पर बना रहता है। धीरे-धीरे वह उसी आसानी का आदी हो जाता है। मन को प्रशिक्षित करना हम जिस दिन सीख लेंगे, उस दिन हमारे आनंद का प्रवेश द्वार भी खुल जाएगा।
आईआईटी–आईआईएम के पूर्व छात्र, बेस्ट सेलिंग पुस्तकों के लेखक
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