अब लोग राजनीतिक दलों से वैचारिक और सैद्धांतिक रूप से नहीं जुड़ते हैं। जहाँ मतलब नहीं सधा, तुरंत उस दल से मोहभंग और धर ली दूसरे दल की डगर।
ऐसा ही दिखा सेवानिवृत्त शिक्षक बेनीप्रसाद चंसौरिया की चाल में। पहले उन्होंने अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद में राधा-कृष्ण का शानदार प्रेम प्रतीक मंदिर बनवाया। फिर उनको विधान सभा चुनाव की लगन लग गई।
अपने मुफीद मास्साब को आम आदमी पार्टी लगी और वह उसके सदस्य बन गए। बढ़-चढ़कर उसके आयोजनों में भाग लेने लगे। छतरपुर विधान सभा से टिकट की मांग कर डाली। लेकिन आप की अंदरूनी गुटबाजी से वह प्रत्याशी घोषित नहीं हो पाये। आप ने भागीरथ पटेल को प्रत्याशी घोषित कर दिया। जिससे मास्साब निराश भी हुए और आक्रोशित भी।
लगन के पक्के मास्साब को हर हालत में चुनाव लड़ना ही था,वह नहीं मानें। उन्होंने आपकी सफेद टोपी से तत्काल किनारा किया और झाड़ू फेक दी। किसी दूसरे दल से टिकट के जतन में लग गए और समाजवादी पार्टी का टिकट पाने में कामयाब हो गए।
अब मास्साब बेनीप्रसाद चंसौरिया सपा की लाल टोपी में नजर आयेंगे। छतरपुर विधान सभा से उनको अखिलेश यादव की सपा का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। अब वह सपा की साइकिल चलायेंगे और नारा लगायेंगे कि न तेल लगे न पानी, चली जाय सन्नानी। अब मास्साब चुनाव लड़े बिना नहीं मानने वाले परिणाम चाहे जो हो।