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Mother idols made from Ganga soil | पहली बार खरगोन आए बंगाली मूर्तिकार, बोले- ये इको फ्रेंडली, पानी में 4 घंटे में घुल जाती है

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खरगोन16 मिनट पहले

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शहर में नवरात्र को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। जगह-जगह माता के पंडालों को सजाया जा रहा है। नवरात्र को लेकर बाजार में अब धीरे-धीरे चहल-पहल बढ़ने लगी है। इस बार शहर में बंगाल के मूर्तिकारों द्वारा बंगाली पैटर्न पर माता की आकर्षक मूर्तियां तैयार की गई हैं। यह बंगाली कलाकार पिछले तीन माह पहले ही शहर में आ गए थे। मूर्तियां तैयार कर रहे थे।

पहली बार शहर में आए कलाकारों ने बताया कि वे निमाड़ क्षेत्र में पहली बार माता की मूर्तियां बनाने आए हैं। मूर्तियों को अंतिम रूप देकर साज-सज्जा की जा रही है। उन्होंने बताया कि यह मूर्तियां विसर्जन के चार घंटे में ही पानी में पूरी तरह से घुल जाती है।

मुख्य मूर्तिकार तपोस कुमार पाल ने बताया कि वे जुलाई माह में पांच सदस्यों की टीम के साथ खरगोन आए थे। इस वर्ष उन्होंने बंगाली पैटर्न पर माता की 80 मूर्तियां बनाई हैं। मूर्तियों को पूरी तरह पर्यावरण का ध्यान रखकर बनाई गई हैं। मूर्ति निर्माण में कैमिकल का उपयोग नहीं किया गया है। उन्होंने इस बार 4 से 8 फिट ऊंची मूर्तियों बनाई है। उनका श्रृंगार भी बंगाली पैटर्न पर ही किया जा रहा है।

गंगा की मिट्टी और धान की घास से तैयार की मूर्तियां

मूर्तिकार तपोस कुमार ने बताया कि बंगाली पैटर्न पर मूर्तियां बनाने के लिए किसी भी प्रकार के सांचे का उपयोग नहीं किया जाता है। मूर्ति बनाने के लिए बांस और धान की घास से स्ट्रक्चर बनाया जाता है। उस पर अलग-अलग प्रकार की मिट्टी से मूर्ति का रूप दिया जाता है। आखिर में मूर्तियों पर गंगा नदी के मिट्टी से फिनिशिंग की जाती है।

कलाकारों का कहना कि गंगा नदी की मिट्टी में चिकनाहट अधिक होती है। इसमें किसी प्रकार की रेत या कंकर नहीं होते हैं। सूखने के बाद न तो खिरती और न ही पपड़ी निकलती है। इसलिए बंगाली मूर्तियों के निर्माण में गंगा नदी की मिट्टी का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।

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