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बैतूलएक घंटा पहले
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वह बहुत तेजी से अस्पताल पहुंचा। उस समय वह पसीने से नहाया हुआ था। घबराहट की वजह से उसका बुरा हाल था। यहां तक की उसे चक्कर भी महसूस होने लगे थे। अकेले रास्ता चलते उसे यह सारी समस्या हुई तो कुछ राहगीर अस्पताल लेकर पहुंचे। उसकी धड़कनें असामान्य रूप से बढ़ी हुई थी।
हालात यह थे कि धड़कन का यह स्तर 224 से 227 तक बढ़ा हुआ था। ऐसे में इसे सामान्य न किए जाने की स्थिति में मरीज के दिल के कमजोर रहने पर हार्ट फेलियर का भी खतरा बना रहता है। ऐसे में मैंने उसे इंजेक्शन की बजाय वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से ठीक करने का फैसला किया। इसे मरीज पर अपनाया और रामबाण की तरह इसका असर भी हुआ। कुछ ही देर में व्यक्ति की धड़कनें सामान्य हो गई। बिना इंजेक्शन-दवाई के दिल की धड़कन कंट्रोल करने का नायाब तरीका बैतूल के डॉक्टर श्याम सोनी ने अपनाया है। अब तक वे वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से कई मरीजों को ठीक कर चुके है। मरीज भी उनके इस बेहतर इलाज के कायल हो गए है।
सामान्य तौर पर कामकाज करते-करते कब किसकी दिल की धड़कन बढ़ जाए। कुछ कहा नहीं जा सकता। इसे हल्के में लेने पर बड़े नुकसान से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस समय 100 में से 5 मरीजों के साथ इस तरह की परेशानी आम बात हो गई है, लेकिन बैतूल के ह्दय एवं मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. श्याम सोनी ने वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से दिल की धड़कनों को महज चंद मिनटों में सामान्य कर दिखाया।

दिल की धड़कन बढ़ने के मरीज बढ़े
खाने-पीने में अनियमित्ता ब्लड प्रेशर और डायबिटिज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कुछ मरीज ऐसे हैं भी है जो अनियमित दिनचर्या के कारण मोटापे का भी शिकार हो रहे हैं। चिकित्सा क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि अनियमित दिनचर्या से लोगों को कई तरह की बीमारियां घेर रही है। इनमें से एक बीमारी बैतूल में भी काफी तेजी से बढ़ी है। सीढ़ी-चढ़ने और मेहनत के काम करने पर कई मरीजों की दिल की धड़कन तेज हो जाती है। इसे कई लोग हल्के में लेते हैं, लेकिन समय पर उपाए नहीं करने पर गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।
अचानक बढ़ जाती है दिल की धड़कन
युवाओं में दिनचर्या के कारण कई बीमारियां बढ़ रही हैं। नियमित रूप से योगा और एक्ससाइज न करने का नतीजा है कि सामान्य तौर पर एक मिनट में 80 से 100 मर्तबा आम व्यक्ति का दिल धड़कता है। बीमार या तनाव पर रहने पर यह प्रक्रिया 150 तक पहुंच जाती है, लेकिन किसी मरीज की दिल की धड़कन 200 के पार हो जाए तो खतरे से कम नहीं कहा जा सकता है। ऐसे लोग इसे सामान्य बताते हैं, लेकिन समय पर ध्यान न देने पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। बैतूल में भी 100 में से 5 मरीज इस तरह की बीमारी से पीड़ित है।

पलक झपकते ही सामान्य हो गई धड़कन
जिले के प्रसिद्ध ह्दय एवं मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. श्याम सोनी के सिम्स अस्पताल में वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से चंद मिनटों में कंट्रोल किया जा रहा है। पिछले एक पखवाड़ा में उनके अस्पताल में तीन मरीज ऐसे पहुंचे, जिनकी दिल की धड़कन 200 के पार थी। उन्होंने मरीजों को बिना इंजेक्शन और दवाइयों के वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से इलाज किया तो 200 से अधिक की धड़कन 80 पर आ पहुंची। ऐसे मामले में मरीजों को घबराहट और बेचेनी हो रही थी, लेकिन डॉ. सोनी ने उन्हें समझाइश दी। इसके परिणाम यह रहे कि इस पद्धति से चंद मिनटों में मरीजों को आराम मिल गया। जिस समय डॉ श्याम सोनी के पास मरीज आए थे तब दिल की धड़कन को कंट्रोल करने वाले इंजेक्शन बाजार में उपलब्ध नहीं थे। इसके बाद उन्होंने वाल्सल्वा मैन्यूअर पद्धति से मरीज को चंद मिनटों में सामान्य परिस्थितियों में ला दिया। बैतूल जैसे छोटे जिले में इस तरह के इलाज से मरीज को राहत मिल सकती है।

कैरोटिन मसाज से ज्यादा कारगर यह पद्धति
डॉ. सोनी के मुताबिक आमतौर पर किसी व्यक्ति की धड़कन बढ़ने पर वालसलवा पद्धति में गले के पास कैरोटीन मसाज दिया जाता है। इसमें आर्टरी को दो उंगली से मसाज किया जाता है। इससे असामान्य बड़ी धड़कन समान हो जाती है। इसमें यह उपयोगी है। यह पुरानी पद्धति है। लेकिन मेरी स्टूडेंट लाइफ से लेकर पढ़ने और मेडिकल लाइफ में मैंने कभी नहीं देखा कि किसी ने वालसालवा पद्धति का उपयोग किया हो। इसमें कैरोटीन मसाज इतने अच्छे से काम नहीं करता है। अच्छे रिजल्ट लाने के लिए मेरे पास एक ऑप्शन था कि बिना इंजेक्शन के मरीज की धड़कन ठीक की जाए। मैंने इसे अपनाया और 10 से 15 सेकेंड में व्यक्ति नॉर्मल हो गया। आमतौर पर नॉर्मल व्यक्ति की धड़कन 60 से 100 के बीच पाई जाती है। जब उसकी धड़कन बढ़ती है तो यह 110 से 150 और उससे भी अधिक बढ़ जाती है।
इसे साइनस ट्रिकीकार्डिया कहते हैं। यह बुखार तनाव या एक्सरसाइज में बढ़ जाती है। असामान्य रूप से इसका बढ़ना कई बार कई बीमारियों में भी पाया जाता है। इसके लिए एडिनोजीन इंजेक्शन आता है जो सामान्य रूप से बैतूल में उपलब्ध नहीं होता है। इसकी शॉर्ट एक्सपायरी के कारण इसे लोग कम ही रखते हैं। ऐसे में इस इंजेक्शन के नहीं मिलने पर व्यक्ति को वाल सलवा पद्धति से ठीक किया जा सकता है।


यह है पद्धति
इस तकनीक का नाम एंटोनियो मारिया वलसाल्वा के नाम पर रखा गया है। जो 17वीं सदी के बोलोग्ना के चिकित्सक और शरीर रचना विज्ञानी थे। जिनकी प्रमुख वैज्ञानिक रुचि मानव कान में थी। उन्होंने यूस्टेशियन ट्यूब और इसकी धैर्यता (खुलेपन) का परीक्षण करने की युक्ति का वर्णन किया। उन्होंने मध्य कान से मवाद निकालने के लिए इस युक्ति के उपयोग का भी वर्णन किया।
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