[ad_1]
इंदौर21 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

पानी पतासे या पानी पुरी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसे कई नामों से जाना जाता है। कोलकाता में पुचका, भोपाल में फुल्की, उत्तर भारत में गोलगप्पे तो मुंबई उसे पानी पुरी कहते हैं। स्वाद से भरी यह चटपटी ‘चीज’ इंदौर में पानी पताशे के नाम से प्रसिद्ध है। इसके जितने नाम हैं उतने ही इसके अंदाज। कोई इसे झन्नाटेदार पानी के साथ खाता है तो कोई खट्टी-मीठी चटनी के साथ, कोई दही के साथ तो कोई आलू और छोले के साथ।
आज जायका में बात करेंगे इंदौर की करीब 40 वर्ष पुरानी कविता चाट सेंटर की, जहां के पानी पताशे और आलू चाट को खाने के लिए महिलाओं से ज्यादा पुरुषों की भीड़ होती है।
इंदौर खाने-पीने के लिए भी मशहूर है। यहां सराफा और 56 दुकान जैसी बड़ी चौपाटी भी हैं, लेकिन इनके अलावा शहर में और भी खान-पान के इतने ठिए हैं जिन्हें गिन पाना मुश्किल है। रामबाग में आलिजा सरकार कविता चाट सेंटर, अपने पुराने अंदाज और अनोखे स्वाद के लिए मशहूर है। यहं मिलने वाली झन्नाटेदार सिगड़ी चाट अच्छे अच्छों के पसीने छुड़ा देती है। क्योंकि इसमें डालने वाली निमाड़ की लाल मिर्ची की चटनी को सिलबट्टे पर पीस कर तैयार किया जाता है।


पानी पताशे और चाट के ठेले या दुकान पर खाने-पीने के शौकीनों की ज्यादा भीड़ देखते हैं। रामबाग में स्थित इस दुकान पर युवतियों और महिलाओं से ज्यादा युवक और पुरुष पानी पताशे का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं। लगभग 40 वर्ष पहले ठेले से शुरू हुए पानी पताशे का आज पूरा शहर मुरीद है।
इस चाट सेंटर की सबसे खास बात है मालवा-निमाड़ का तीखा और झन्नाटेदार स्वाद। खैर जिन्हें जरा भी तीखे से परहेज है, उनके लिए दुकानदार ने खास गुड़ और इमली की खट्टी-मीठी चटनी का भी इंतजाम किया है।

करीब 40 साल पहले इस जायके की शुरुआत यूपी के रायबरेली से इंदौर आए द्वारिका प्रसाद यादव ने की थी। द्वारिका प्रसाद के दो बेटे अब इस दुकान को संभाल रहे हैं। द्वारिका प्रसाद के बड़े बेटे उमा शंकर यादव बताते हैं कि जब हम छोटे थे तभी पिता जी हम सब को लेकर इंदौर आ गए और यहां हुकुम चंद मील में काम करने लगे।
1980-82 में जब इंदौर में मील बंद होने लगी। रोजगार का संकट आया तब पिता जी ने लोखंडे पुल के करीब पानी पताशे और छोले का ठेला लगाना शुरु किया। उस कारण ये था कि पिता जी ने शुरुआत से ही पारंपरिक अंदाज में यूपी और मालवा के टेस्ट का मिक्स कर लोगों को नया स्वाद परोसना शुरू किया।
दोपहर एक से रात 9 बजे तक दुकान खोला करते थे और आज भी हम इसी समय पर दुकान चलाते हैं। उमाशंकर बताते हैं कि शुरुआत में पिता जी सिलबट्टे पर पीस कर छोले (चाट) का मसाला तैयार करते हैं। सिगड़ी की हल्की आंच में उसको पकाते हैं। बस वही स्वाद आज भी लोगों के दिलों में राज कर रहा है। रोजाना हमारी दुकान में लगभग 500 सौ से हजार लोग पताशे खाने आते हैं।


लोगों के स्वाद के हिसाब से तुरंत बना देते हैं मसाला
उमाशंकर बताते हैं यहां पानी पताशे में मिर्च आगंतुक के स्वाद के अनुसार ही मिलाई जाती है। जो जितना तीखा और जितना गर्म खाना चाहता है, उसे वैसे ही पानी पताशे खिलाए जाते हैं। आलू-छोले से बनी चाट सिगड़ी पर तैयार होने से इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। एक प्लेट छोले के रेट 20 रुपए तो वहीं 10 रूप की तीन नग पतासे खिलाए जाते हैं। दोपहर 1 बजे से रात 9 बजे तक खाने-खिलाने का सिलसिला यहां जारी रहता है।

साबुत लाल मिर्च और काला नमक से बनता है स्वाद
यहां मिलने वाले पानी पताशे की सबसे अलग बात है इसका झन्नाटेदार स्वाद। साबुत लाल मिर्च को सिलबट्टे पर पीस कर उसका इस्तेमाल इसके पानी और मसाले में किया जाता है। इसके स्वाद को और भी बढ़ाता है राख की तरह दिखने वाला दरदरा पिसा हुआ काला नमक। मिर्च के तीखेपन में और इजाफा करती है, सिगड़ी पर गर्म होने वाली आलू-मटर की सब्जी जिसे रगड़ा भी कहा जाता है।
बड़े आकार के पताशे और उसमे भरा जाने वाला तीखा व गर्मा गर्म आलू छोले चाट और इस पर पानी-पताशे का पानी एक अलग ही स्वाद बना देता है। यहां मिलने वाली दो तरह की चटनी से आप अपने स्वाद को और बेहतर कर सकते हैं। पहली सिलबट्टे पर पीसी हुई लाल मिर्च की चटनी और इसमें डाले जाने वाला काला नमक। दूसरी गुड़ और इमली की खट्टी मीठी चटनी।

महाभारत से मानी जाती है पानी पताशे की शुरुआत
कहा जाता है कि पानी पताशे का नाता महाभारत से है। ऐसा बताया जाता है कि पांडवों से शादी के बाद द्रौपदी के पास उन्हें खिलाने के लिए बची-खुची सब्जियां और आटा होता था। उन्होंने आटे की पूरियां बनाकर उसमें आलू और सब्जी भरी। यहीं से पानी-पूरी की शुरुआत हुई।
देश में पानी पूरी का बाजार
पानी पुरी भारत के पसंदीदा व्यंजनों में से एक है। एक रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में पानी पुरी बाजार का करीब 6,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। यह 20 से 22% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट से बढ़ रहा है।
[ad_2]
Source link



