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राजेश जैन दद्दू. इंदौर40 मिनट पहले
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रक्षाबंधन श्रमण संस्कृति की रक्षा का पर्व है। तुम अभी अपने धर्म की रक्षा करना सिखो। एक बिल्ली होती है और एक हिरण होता है। बिल्ली दूध पी रही है या उसके मुंह में चूहा है और उसकी पीठ पर लाठी पड़ जाए तो भी चूहे को नहीं छोड़ेगी। हिरण है वह भी घासपूस खाता है, उसको आहट भी आ जाएगी तो उसको छोड़कर के भाग जाता है। साधु की चर्या में और गृहस्थ के खाने में इतना ही अंतर होता है । अगर गृहस्थ के खाने में यानी लड्डू में मच्छर दिख जाए तो कहा जाता है कि यह तो इलायची है। तुमने इलायची हटाकर लड्डू खा लिया। सब ये ही करते हैं, चाहे आप घर पर हों या बाहर हो। तिरूला या चींटी दिख जाए तो हर गृहस्थ का पक्का है कि वो तो जीरा है समझ कर उस चीज का उपयोग कर लेता है। बाल की बात करो तो कहते हैं पूस है। अगर साधु को शंका भी हो जाए तो अंतराय कर लेते हैं। साधु के खाने में और गृहस्थ के खाने में यही अंतर है होता है। श्रावक कम खाएगा लेकिन वो शुद्धतापूर्वक खाता है। गृहस्थ कहीं खाने पर जाएगा तो दाल-रोटी नहीं मिठाई ही खाएगा। साधु तो पहले दाल रोटी चलाएगा, साधु की वृत्ति भ्रमण के समान होती है। वो फूल से पराग लेकर के लौट आता है, फूल को कभी भी कष्ट की अनुभूति नहीं होती।यह बात बुधवार को उदयनगर स्थित चंदाप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में विदुषी माता विज्ञानमति माताजी ने चातुर्मास प्रवचन में कही।
गृहस्थ और बाहर के खाने का महत्व
माताजी खाने के महत्व को बताते हुए कहा कि- गोचरी वृत्ति होती है..गाय ऊपर- ऊपर का खा लेती है, कभी भी पूरा उखाड़ के नहीं खाती। एक जगह पर ही नहीं खाती। तुम लोग राखी पर मिठाई बनाते हो क्या…कुछ भी बनाते हो, हमारा कहना है कि अभक्ष्य मत बनाया करो न खाया करो। बाजार के मावे की मिठाई मत बनाया करो…। हमने जंगल से आते समय देखा कि हथौड़े से मावा तोड़ रहे थे.. हमने पूछा कि ये क्या है तो उन्होंने बताया कि माताजी ये मावा है। कोल्ड स्टोरेज में रखा था तो इतना कड़क हो गया है कि हथौड़े से तोड़कर रखना पड़ता है…। अब आप सोचो वह कितना पुराना होगा, इसलिए बाजार से मावा मत लाया करो, ये अभक्ष्य है। जलेबी बहुत लोग खाते हैं…जाकर देख लेना उसका मैदा कभी खत्म नहीं होता,चलता ही रहता है। अबकी बार तो कठिन परीक्षा है तुम्हारी। रक्षाबंधन और चतुर्दशी एक साथ है। बहुत विवेकपूर्वक काम करना, बाजार की मिठाई नहीं…अपनी लक्ष्मी से कह देना कि अपने को तो सीधा हलुआ बनाना है। घर का हलुआ भी मीठा होता है ना..। बाजार का मैदा छान के देख लेना…छानते जाओगे..लटें निकलती जाएंगी, क्योंकि मैदा बहुत बारीक होता है उसमें लटें पड़ती हैं। उसमें..देखना चौदस का खयाल रखना नहीं तो गौरव ही समाप्त कर दो चौदस का। चौदस बहुत बड़ी होती है…नहीं मानें तो घर वाले सीधे-सीधे उपवास कर लेना टेंशन खतम। राखी किसी भी समय बांधों लेकिन रात में नहीं बांधना। वैसे रक्षाबंधन श्रमण संस्कृति की रक्षा का पर्व है। तुम्हें भी अपने धर्म की रक्षा करना चाहिए। तुम्हें इतना तो याद होगा ही कि आज के दिन मुनि विष्णु कुमार ने 700 मुनियों का उपसर्ग दूर किया था।
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