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‘शिक्षा की भारतीय संकल्पना’ विषय पर हुई राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

छतरपुर। श्री कृष्णा विश्वविद्यालय एवम् भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में कुलाधिपति डॉ. बृजेन्‍द्र सिंह गौतम की अध्यक्षता में ‘शिक्षा की भारतीय संकल्पना’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता माननीय बी. आर. शंकरानंद, अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री और विशिष्ट अतिथि में सुश्री अरुंधती कावडकर (पालक अधिकारी मध्य क्षेत्र), डॉ. मनीष वर्मा (संयुक्त संचालक, लोक शिक्ष्ण सागर संभाग), श्री संजय पाठक (प्रांत सह मंत्री) और भारतीय शिक्षण मण्डल महाकौशल प्रान्त के उपाध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र सिंह गौतम रहे।

सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्‍वती एवं भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण एवम् दीप प्रज्ज्वलित कर संगोष्ठी का प्रारम्भ किया गया। स्वागत भाषण में संजय पाठक ने भारतीय शिक्षण मंडल की उपादेयता को बताते हुए कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल शिक्षा में पुनः भारतीयता प्रतिष्ठित करने में कार्यरत् एक अखिल भारतीय संगठन है। शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम एवं पद्धत्ति तीनों भारतीय मूल्यों पर आधारित है। इस दृष्टि से संगठन वैचारिक, शैक्षिक और व्यावहारिक गतिविधियों का नियमित आयोजन करता है। लगभग 650 जिलों में शिक्षाप्रद संगोष्ठियों का आयोजन किया गया है।

मुख्य वक्ता माननीय बी.आर. शंकरानंद ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही समाज निर्माणकारी शिक्षा की संकल्पना थी। शिक्षक बनाने के लिए रुचि, दक्षता और क्षमता के लिए प्रशिक्षण प्रारम्भ हुआ। भारत का, हिंदुत्व का मूल आधार अध्यात्म है। वही शिक्षा का भी प्रमुख कर्तव्य है। शिक्षा की संकल्पना मानव बनाने एवं शिक्षा के विकास की पूर्णता की अभिव्यक्ति है। शिक्षा के द्वारा ही इच्छा शक्ति की धारा पर सार्थक नियन्त्रण स्थापित हो सकता है। शिक्षा को शब्द संग्रह अथवा शब्द समूह के रूप में न देखकर विभिन्न शक्तियों के विकास के रूप में देखा जाना चाहिये। शिक्षा से ही व्यक्ति सही रूप में चिन्तन करना सीखता है। अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना, पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना और अन्य सामाजिक मुद्दे आदि। लेकिन यह भी ध्यान देने वाली बात है कि किताबी शिक्षा के साथ-साथ समाजिक शिक्षा भी अत्यंत जरूरी है। एक राष्ट्र के नागरिक के रूप में शिक्षा अत्यन्त जरूरी है, ताकि राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर हो सके। मानव जीवन के लिए शिक्षा ही सर्वश्रेष्ठ धन है जिसे ना तो कोई चुरा सकता है और ना ही कोई छीन सकता। यह एक मात्र ऐसा धन है जो बाँटने पर कम नहीं होता अपितु बढ़ता ही है। एक शिक्षित व्यक्ति अपने आस-पास रहने वाले समाज के लोगों को भी सदाचार एवं सद-व्यवहार की शिक्षा देता है। एक शिक्षित व्यक्ति अपने साथ-साथ समाज को भी विकास की ओर ले जाता है।

विशिष्ट वक्ता सुश्री अरुंधती कावड़कर ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान, एवं कला-कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज की आवश्यकता है क्योंकि यह बौद्धिक कौशल और ज्ञान का विकास है जो शिक्षार्थियों को पेशेवरों, निर्णय निर्माताओं और प्रशिक्षकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार करेगा। डॉ. मनीष वर्मा ने कहा कि शिक्षा देश के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कई अवसर प्रदान करती है। शिक्षा लोगों को स्वतंत्र बनाती है, आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान का निर्माण करती है, जो देश के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा से न केवल किसी व्यक्ति विशेष का अपितु पूरे समाज का विकास होता है। अतः ये कहना गलत नहीं होगा की शिक्षा व्यक्ति और समाज का विकास है। शिक्षा व्यवहार का संशोधन करती है। हम शिक्षा के द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के व्यवहार में परिवर्तन ला सकते हैं। शिक्षा एक ऐसा मंच है जिस पर हम व्यक्ति के व्यवहार में समाज तथा सामाजिक गुणों के आधार पर संशोधन कर सकते हैं।  शिक्षा अंधकार में प्रकाश की किरण है। यह निश्चित रूप से एक अच्छे जीवन की आशा है। शिक्षा प्रत्येक मनुष्य का मौलिक अधिकार है और इस अधिकार को नकारना सही नहीं है। हमारे शिक्षण मण्डल का प्रमुख उद्देश्य है। क्योंकि किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव हो सकता है जब राष्ट्र शिक्षित हो हर शिक्षित युवा आत्मनिर्भर हो।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुलाधिपति डॉ. बृजेंद्र सिंह गौतम ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मनुष्य के जीवन में जितना महत्‍व भोजन, कपड़े, हवा और पानी का है, उससे कहीं अधिक महत्त्व शिक्षा का है इसीलिए हमेशा यही कहा जाता है कि शिक्षा का मानव जीवन में बहुत महत्त्व है। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य में ज्ञान का प्रसार होता है। इंसान की बुद्धि का विकास शिक्षा अर्जित करने से ही होता है। देखा जाए तो शिक्षा एक प्रशिक्षण है। किसी भी कार्य को करने के लिए हमें प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। मनुष्य की इन्द्रियों, मस्तिष्क एवं आदतों का निर्माण समाज के अनुसार किया जाता है तथा इस प्रकार के परिवर्तन या निर्माण व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर लाये जाते हैं।शिक्षा एक स्थैतिक नहीं बल्कि एक गतिशील प्रक्रिया है।

इस संगोष्ठी में श्री कृष्णा विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों के अतिरिक्त छतरपुर शहर के अन्य शिक्षण संस्थानों से आए हुए शिक्षकगण और विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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