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Holi 2023:बुंदेलखंड में होली पर्व पर एक-दूसरे को पहनाते हैं माला, शक्कर से बना अनोखा आभूषण खत्म करता है बैर – On Holi Festival In Bundelkhand, Garlands Are Worn On Each Other, Unique Jewelery Made Of Sugar Ends Enmity

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त्यौहार तो पूरे देश में मनाए जाते हैं, लेकिन बुंदेलखंड की परंपरा रही है कि यहां सभी त्यौहारों को अपनी संस्कृति के अनुसार ही मनाया जाता है। चाहे वह दीपावली का त्यौहार हो, रक्षाबंधन हो या फिर होली का त्यौहार। सभी में कुछ न कुछ  हटकर परंपराएं ही देखने को मिलती हैं। बुंदेलखंड के दमोह में ऐसे ही होली का त्यौहार भी एक खास तरह से मनाया जाता है। इस त्यौहार में जिस चीज का सबसे ज्यादा महत्व है वह है शक्कर की चासनी से बनी माला।

 

जी हां,  माला नाम सुनते ही जहन में आता है कि खुशी के मौके पर हम किसी का स्वागत फूल मालाओं से करते है या फिर प्लास्टिक की माला जो किसी फोटो या प्रतिमा पर चढ़ाई जाती है, लेकिन बुंदेलखंड के दमोह जिले में एक ऐसी मीठी माला का निर्माण होता है। जिससे दो लोगों के बीच चल रहा सदियों पुराना बैर एक मिनिट में खत्म हो जाता है। शक्कर की चासनी से बनी इस मीठी माला का निर्माण साल में एक बार होली के त्यौहार पर होता है। 

 



इसे परंपरा कहे या माला कि खासियत कि जिस बैर को समाज के लोग  दूर नहीं करा सकते, भले ही वह कितना ही प्रयास करें, लेकिन होली के दिन जब आपस में बैर रखने वाला एक व्यक्ति अपने सामने वाले को तिलक लगाकर उसे यह शक्कर की माला पहना देता है, तो सामने वाला मन में उसके प्रति कितना भी आक्रोश क्यों न रखे वह व्यक्ति मुस्कराकर पुराने सभी बैर एक मिनिट में ही खत्म कर देता है। 

माला का निर्माण करने वाले स्टेशन चौराहा निवासी रमेश नेमा ने बताया कि शक्कर की चाशनी से बनी मीठी माला पुराने से पुराने बैर को खत्म करा देती है। उन्होंने बताया कि यह उनका पुस्तैनी काम है और इस परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं। जिले में उनके अलावा और कहीं, इसका निर्माण नहीं होता। नेमा बीएससी, एमए और एलएलबी पास हैं, लेकिन उन्होंने नौकरी न कर अपने बुजुर्गों की परंपरा को बनाए रखने की खातिर इस कारोबार को चालू रखा। उनकी पत्नी गीता नेमा भी इस काम में उनका सहयोग करती हैं। उनके तीन बेटे हैं जो प्रदेश के बाहर नौकरी करते हैं।


ऐसे बनती है माला

रमेश नेमा ने बताया कि यह तीसरी पीढ़ी चल रही है, जो इस माला को बना रही है। उन्होंने बताया कि शक्कर की चाशनी को धागे के साथ सांचे में भरकर सूखने रख दिया जाता है और जब चाशनी सूख जाती है तब इन सांचों को खोला जाता है जिसके अंदर से शक्कर की माला बन जाती है।


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