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Chhatriwali Movie Review: कंडोम और सेक्‍शुअल एजुकेशन पर बात करतीं रकुल प्रीत स‍िंह, जरूरी है ये क्‍लास

सेक्स एजुकेशन, पीरियड और कंडोम तीनों आज के दौर में भी एक टैबू माना जाता है. स्कूल में भी इन सब पर बातें करना अश्लील माना जाता है. अगर कोई जिज्ञासू लड़का या लड़की इनके बारे में क्लास में टीचर्स या घर में मम्मी-पापा से पूछते थें, तो टीचर और मम्मी-पापा दोनों ही बच्चों को डांट कर चुप करवा देते थें. या नजरें नीचे कर खिसक लेते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है, लोग इस पर बात करें रहे हैं. सोसायटी में इसे लेकर खुलापन आ रहा है. इन सबको अश्लीलता के पर्दे से परे देखा जा रहा है. ऐसे में फिल्में भी एक अहम योगदान निभा रही हैं. पीरियड्स और इससे जुड़ी समस्याओं पर बातें हो रही हैं. वजाइनल हाइजीन की बातें हो रही हैं. स्कूलों में लड़कियों को फ्री पैड्स वगैरह आदि मिल रहे हैं. लेकिन आज भी करोड़ों बच्चे, टीचर्स और पैरेंट्स वजाइनल हाइजीन, कंडोम के इस्तेमाल और पीरियड्स पर बात करने से कतराते हैं.

रकुल प्रीत सिंह और और सुमीत व्यास स्टारर ‘छतरीवाली’ ऐसी ही एक फिल्म हैं, जो इन सब बातों को लेकर आई है. फिल्म में सेक्स एजुकेशन, प्रोडक्शन, वजाइनल हाइजीन और कंडोम के इस्तेमाल को लेकर बात की गई है. यह एक फिल्म कोई लेक्चर या ज्ञान नहीं देती है. यह सच में एक एजुकेटिव फिल्म है. हालांकि इससे पहले, ‘हेलमेट’, ‘डॉ. अरोड़ा’ और ‘शुभ मंगल सावधान’ जैसी फिल्में-सीरीज बॉलीवुड ने दी है.

किसी अन्य हेल्थ की तरह, सेक्सुल हेल्थ भी जरूरी है. फिल्म में बताया गया है कि कंडोम कैसे यौनों रोगों और अनप्रोटेक्टिव बर्थ को बचाता है. इसके इस्तेमाल से महिलाओं को गर्भ निरोधकर गोलियों की जरूरत नहीं पड़ती. फिल्म में दिखाया गया है कि गर्भ निरोधक गोलियों के ज्यादा इस्तेमाल से महिलाओं की हेल्थ पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. कंडोम एक जिंदगी को बचा सकता है. गर्भपात पेट में पेल रहे बच्चे के लिए तो खतरनाक है. साथ ही उस महिला के लिए जो बच्चे को अपने गर्भ में लिए हुए.

रकुल प्रीत सिंह का किरदार, सान्या एक केमिस्ट्री ग्रेजुएट है. वह नौकरी की तलाश में है. उसे एक कंडोम कंपनी में क्वैलिटी कंट्रोल चीफ बनने की ऑफर मिलता है. वह इसे न चाहते हुए भी करती है. इस शर्त के कंपनी मालिक किसी को नहीं बताएगा कि वह कहां काम करती हैं. वह एक साल का कॉन्ट्रैक्ट करती हैं. हालांकि कंपनी के मालिक से उन्हें पता चलता है कि कंडोम कैसे लोगों की जिंदगी बचा सकता है. इस दौरान, सान्या प्यार में पड़ जाती है, शादी कर लेती है और बिना किसी को बताए दोहरा जीवन जीती है. वह घर में भाभी की हालत देखती है और उनके मिसकैरेज के बारे में पता चलता है. फिर वह बीड़ा उठाती है, परिवार और समाज को उन मुद्दे पर बात करने के लिए, जिन्हें लोग टैबू मानते हैं.

डायरेक्टर तेजस विजय देओस्कर ने ‘छतरीवाली’ को बेहद संवेदनशील तरीके से पेश किया है. उन्होंने दिखाया है कि लागतार गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कितना खतरनाक है. इसमें भी दिखाया गया है कि शरीर के अन्य हिस्सों की तरह गुप्तांग भी एक हिस्सा है. डायजेस्टिव सिस्टम की तरह रीपोडक्टिव सिस्टम है. राजेश तैलंग फिल्म में एक बायोलॉजी टीचर हैं, लेकिन बच्चों को रिप्रोडक्शन का चैप्टर डिटेल में नहीं पढ़ाते. स्टूडेंट के पूछने पर वह डांट कर बैठा देते हैं. फिल्म आपको हंसी के साथ-साथ जीवन की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू करवाती है. यह फिल्म हर पैरेंट्स, टीचर्स और बच्चों को देखनी चाहिए.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Movie review, Rakul preet singh


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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