अजब गजब

मरे हुए चिकन में ‘जान’ डालकर दो दोस्तों ने बनाई कंपनी, अब अरबों में है कारोबार

नई दिल्ली. लिशियस (Licious). नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाए. नॉनवेज के शौकीन लोगों की पहली पसंद बन गया है लीशियस. लीशियस बेंगलुरु एक कंपनी है जो मीट और सीफूड को आपके किचन तक पहुंचाती है. हाल ही में कंपनी को 52 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली है. किसी फंडिंग के साथ कंपनी भारत के यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो गई है. 2021 में भारत में यूनिकॉर्न बनी कंपनियों में इस कंपनी का स्थान 29वां है. हालांकि कंपनी का ये दावा है कि वह भारत की पहली डायरेट-टू-कंज्यूमर (direct-to-consumer) यूनिकॉर्न कंपनी है. आज हम बात करने वाले हैं किसी कंपनी ग्रोथ के बारे में. कैसी यह कंपनी शुरू हुई और किस तरह 1 बिलियन डॉलर की वेल्यूएशन वाली कंपनी बन गई.

अव्यवस्थित सेक्टर को किया व्यवस्थित

एक डेटा के मुताबिक, भारत में लगभग 73 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं. देशभर में लोग हर दिन हजारों अलग-अलग ब्रांड्स का इस्तेमाल करते हैं, मगर मीट का कोई ब्रांड नहीं था. भारत में मीट मार्केट कभी व्यवस्थित नहीं रही. आप हर शहर में अलग-अलग कसाई-खाने या फिर मीट की दुकानें देख सकते हैं. वे न तो किसी ब्रांड के अंडर आती हैं और ना ही उनके ऊपर कोई क्वालिटी चेक होता है. ग्राहक सामने ही मीट को काटकर एक काले थैले में पैक करके ग्राहक को थमा दिया जाता है. अच्छा एक्सपीरियंस न होने के बावजूद ग्राहक को न चाहकर भी वहीं से मीट खरीदना पड़ता है.

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मीट के ग्राहक की यही परेशानी का हल करने का जिम्मा उठाया दो दोस्तों ने. अभय हंजुरा (Abhay Hanjura) और विवेक गुप्ता (Vivek Gupta). उन्हें लगा कि इस स्पेस में काम किया जा सकता है, जो कि आगे चलकर एक बड़ा बिजनेस बन सकता है. हालांकि विवेक गुप्ता पहले इसके लिए राजी नहीं थे, मगर अभय हंजुरा ने उन्हें मना लिया.

विवेक के मन में थी शंकाएं

विवेक गुप्ता ने Wion को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि ग्राहक क्या चाहता है और उसे क्या दिया जा सकता है, इस पर कोई शंका नहीं थी. मगर उनके मन में दो अलग शंकाएं थीं. एक तो ये कि वह ऐसे परिवार से आते हैं, जहां कोई मांस का सेवन नहीं करता था. खुद विवेक भी नहीं. विवेक जब अपनी नौकरी के दौरान अमेरिका में थे, तब उन्होंने मीट खाना शुरू किया. ऐसे में उनके मन में था कि वह ऐसा काम शायद नहीं कर पाएंगे, परिवार वाले भी शायद सपोर्ट न करें. दूसरी शंका ये थी कि अगर ये मार्केट 30-40 बिलियन डॉलर की है, तो फिर अभी तक किसी और ने इस पर काम क्यों नहीं किया? यही वह सवाल है जो हर उस इंटरप्रेन्योर के मन में आता है, जो कुछ अलग या नया करता है.

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मरे हुए चिकन में डाल दी ‘जान’!

अभय और विवेक एक दिन लंच करते हुए अपना बिजनेस आइडिया डिस्कस कर रहे थे.उनके लंच में जो कल आया था उसकी क्वालिटी बेहद खराब थी. तब विवेक ने कहा यदि हमें कुछ अलग करना है तो हमें मरे हुए चिकन में जान डाल देनी होगी. बस, यहीं से फैसला लिया गया कि लिशियस के जरिए लोगों को बेहतरीन क्वालिटी का मीट देना है. इसके लिए वह सब करेंगे, जिसकी जरूरत है. तब 2015 में दोनों ने बेंगलुरु में अपनी कंपनी शुरू कर दी. नाम रखा लिशियस (Licious). डिलिशियस (Delicious) से डी हटा दिया गया.

लिशियस का मिशन स्टेटमेंट था – हम वह नहीं बेचेंगे, जोकि हम खुद खा नहीं सकते! 6 सालों से कंपनी इसी पर काम करते हुए आगे बढ़ी और आज एक यूनिकॉर्न कंपनी बन गई है.

कैसे काम करती है कंपनी

लिशियस का बिजनेस मॉडल है – फार्म टू फॉर्क (फार्म से सीधा प्लेट में). कंपनी पूरी सप्लाई चेन के खुद हैंडल करती है. फार्म से माल उठाने से लेकर उसकी प्रोसेसिंग, स्टोरेज और फिर पैकेजिंग. ग्राहक तक पहुंचाने का काम भी कंपनी खुद देखती है. कंपनी ने अपने प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट्स लगाई हैं. जो भी मीट पैक किया जाता है, वह साफ-सुथरा होता है और उसे साइंटिफिक तरीके से पैक किया जाता है. कंपनी दावा करती है कि आपके ऑर्डर करने के बाद 90-120 मिनट के अंदर पैकेज की डिलिवरी करवा दी जाती है.

कंपनी चिकन, फिश (मछली) और सी-फूड, मटन और अंडे और इनकी वैरायटी उपलब्ध करवाती है. हर प्रॉडक्ट पर कंपनी के 150 क्वालिटी चेक होते हैं.

कर्मचारियों की परवाह करने वाली कंपनी

अभय और विवेक कहते हैं कि उन्होंने पहले दिन से जो भी लोग अपने साथ जोड़े, वे कर्मचारी न होकर हमारे शेयरहोल्डर्स हैं. विवेक ने एक इंटरव्यू में कहा कि वे अपने डिलिवरी हीरोज़, मीट टेक्निशियन्स के अलावा भी हजारों कर्मचारियों को एक्टेंडेट स्टॉक ऑप्शन्स दिए हैं. इस सेक्टर में बदलाव लाने के लिए एक साथ काम कर रहे लोगों का भरोसा सबसे बड़ी चीज है.

Tags: Business empire, Corporate Kahaniyan, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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