सरकार मुकदमे को हल्के में नहीं ले सकती: न्यायालय; जुर्माने के साथ उप्र की याचिका खारिज

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने में 1,173 दिनों की अत्यधिक देरी करने एवं ‘गलत विवरण’ देने पर उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और कहा है कि सरकार की ओर से मुकदमे को ‘इतने हल्के’ में नहीं लिया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तरह के मामलों को सरसरी तौर पर दायर किया जाता है, इसीलिए याचिकाएं खारिज की जाती हैं.
न्यायालय ने ‘लापरवाह रवैये’ के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई. राज्य सरकार ने याचिका दायर करने में देरी की माफ़ी के लिए अर्जी दायर की थी. न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, ‘हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तरह के मामले सतही तौर पर दायर किए जाते हैं, ताकि किसी तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा बर्खास्तगी का प्रमाणीकरण प्राप्त किया जा सके. हम इस तरह की प्रथा को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं और याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाना आवश्यक समझते हैं.’
उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य ने उच्च न्यायालय के मई 2019 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें जौनपुर की एक महिला को सरकार द्वारा अधिगृहीत की गई उसकी भूमि के मुआवजे में वृद्धि की गई थी. शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार द्वारा 1,173 दिन के बाद याचिका दायर की गयी है और इस प्रकार यह निर्धारित अवधि से अधिक होने के कारण प्रतिबंधित है. इसने याचिका दायर करने में विलंब के लिए किये गये अनुरोध को रिकॉर्ड में ले लिया.
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शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि मई 2019 में सुनाए गए फैसले के खिलाफ 31 अक्टूबर, 2022 को याचिका दायर की गई थी. विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) तुरंत दायर न किये जाने के लिए उल्लेखित कारणों में कोविड-19 महामारी को मुख्य आधार बनाया गया था. पीठ ने कहा, ‘महामारी की स्थिति का एक सतही संदर्भ निराधार है, क्योंकि उच्च न्यायालय द्वारा आदेश सुनाए जाने की तारीख के कम से कम सात महीने बाद तक ऐसी कोई स्थिति मौजूद नहीं थी.’
न्यायालय ने कहा, ‘इस प्रकार, देरी की माफी की मांग करने वाला आवेदन खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ता (राज्य सरकार) पर 1,00,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज की जाती है। यह राशि चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण संघ के कल्याण कोष में जमा की जाएगी.’ पीठ ने बिना पर्याप्त कारण और बगैर किसी औचित्य के याचिका दायर करने में इतनी देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से जुर्माना वसूलने का अधिकार राज्य सरकार के पास छोड़ दिया है.
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Tags: Supreme Court, Uttar Pradesh Government
FIRST PUBLISHED : December 21, 2022, 00:13 IST
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