मध्यप्रदेश

Children of government schools are studying in temples and buildings | मंदिर- मंगल भवन और पेड़ के नीचे बच्चों का प्रवेशोत्सव: बिना बिल्डिंग के एमपी में 211 स्कूल, टीचर बोले- अब हालात से समझौता कर लिया – Bhopal News

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ये कहते हुए प्रेमलता के चेहरे पर मायूसी के भाव है। वह नर्मदापुरम जिले के बटकी प्रायमरी स्कूल की टीचर है। दरअसल, इस स्कूल की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है। पिछले तीन साल से ये सामुदायिक भवन में संचालित हो रहा है। वैसे देखा जाए तो ये इकलौता स्कूल नहीं है जो बिना बिल्डिंग के चल रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग के आंकड़े ही कहते हैं कि मप्र में 211 स्कूल ऐसे हैं, जिनके पास खुद के भवन नहीं है।

भास्कर ने जब ऐसे पांच स्कूलों की पड़ताल की तो पाया कि कई स्कूलों के बच्चों ने पेड़ के नीचे प्रवेशोत्सव मनाया तो किसी ने मंदिर में। ये भी पता चला कि इन स्कूलों में छात्रों की संख्या भी हर साल कम होती जा रही है। पढ़िए बिना भवनों के स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे किस तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।

पहले 12 छात्र थे अब बचे केवल 4 भास्कर की टीम सबसे पहले नर्मदापुरम जिले के सिवनी मालवा से 23 किलोमीटर दूर धामनी गांव पहुंची। ग्रामीणों से प्रायमरी स्कूल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- मंदिर चले जाओ, वहीं पर स्कूल है। पहले लगा कि स्कूल के पास मंदिर होगा, लेकिन जब यहां पहुंचे तो देखा कि मंदिर में ही स्कूल लग रहा है। चार छात्र मंदिर के फर्श पर बैठे थे, एक टीचर उन्हें पढ़ा रही थीं।

टीचर आशा उइके ने बताया- 2021 से इसी मंदिर में स्कूल संचालित हो रहा है। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हालत में थी। एक दिन छत का हिस्सा गिरने से एक बच्चा घायल हो गया, तभी से वहां पढ़ाई बंद कर दी गई। आशा कहती है-

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पहले स्कूल में 12 छात्र थे, अब केवल 4 बचे हैं। बिल्डिंग न होने की वजह से पेरेंट्स ने बच्चों का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में करा दिया।

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मंदिर से पहले स्कूल इस बिल्डिंग में लगता था। जो अब जर्जर हो चुकी है।

मंदिर से पहले स्कूल इस बिल्डिंग में लगता था। जो अब जर्जर हो चुकी है।

भवन स्वीकृत हुआ मगर फंड नहीं है आशा ने बताया कि स्कूल का भवन स्वीकृत हो गया है, मगर काम शुरू नहीं हुआ। जब अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने कहा कि फंड नहीं है। मंदिर में स्कूल लग रहा है किस तरह से परेशानी होती है? ये पूछने पर बोली- सुबह से लेकर दोपहर 12.30 बजे तक तो बड़ी मुश्किल से पढ़ाई होती है। श्रद्धालु लगातार दर्शनों के लिए आते हैं। वे घंटी बजाते हैं, कोई मंत्रोच्चार करता है।

मंदिर की देख रेख करने वाले अजमेर सिंह राजपूत ने बताया-

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हमने बीआरसी को आवेदन दिया है और पंचायत से भी कहा है, पर हमारी कोई सुनता ही नहीं है। मजबूरी में बच्चे मंदिर में पढ़ रहे हैं। यहां बार-बार उनकी पढ़ाई डिस्टर्ब होती है। श्रद्धालु आते-जाते रहते हैं, उन्हें मना भी नहीं कर सकते।

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बटकी गांव में स्कूल, पढ़ने जाते हैं 2 किमी दूर सिवनी मालवा से 14 किलोमीटर दूर है गांव बटकी। जब भास्कर की टीम इस गांव के प्रायमरी स्कूल पहुंची, तो बच्चे स्कूल की बजाय सड़क पर एक कतार में खड़े थे। उनके साथ टीचर प्रेमलता कैथवास भी थी। उनसे इस कतार के बारे में पूछा तो बोली- स्कूल जाने के लिए ऑटो का इंतजार कर रहे हैं।

हमने कहा- स्कूल तो यहीं पर है, तो प्रेमलता ने बताया कि ये स्कूल तो केवल कागजों में हैं। विभाग के रिकॉर्ड में स्कूल यहां मौजूद है, असल में ये बिल्डिंग इतनी जर्जर हो चुकी है कि यहां पढ़ाई संभव नहीं है। स्कूल के बच्चे दो किमी दूर इकलानी गांव के एक सामुदायिक भवन में पढ़ने जाते हैं।

हमने पूछा कि दो किमी दूर बच्चे कैसे जाते हैं? तो प्रेमलता ने बताया कि ये रोज पैदल जाते हैं, लेकिन अब नया सत्र शुरू हुआ है, इसलिए मैंने ऑटो की व्यवस्था कर दी है। इस बातचीत के दौरान वहां ऑटो आ गया। बच्चों की संख्या ज्यादा थी और ऑटो में जगह कम, इसलिए भास्कर ने अपनी गाड़ी में बच्चों को बैठाया और उनके साथ पहुंचे इकलानी के सामुदायिक भवन।

ब्लैकबोर्ड नहीं फर्श पर लिखा गिनती-पहाड़ा सामुदायिक भवन में पहुंचते ही बच्चों और टीचर ने मिलकर दरी बिछाई और हॉल को एक कक्षा में बदल दिया। यहां पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड नहीं है, इसलिए हॉल के फर्श पर ही हिंदी और अंग्रेजी में गिनती और पहाड़ा लिखा हुआ था। इसके अलावा शिक्षकों ने छात्रों के साथ मिलकर एक जुगाड़ का पुस्तकालय भी बनाया है।

कक्षा पांचवीं की छात्र अंकिता कलमे ने बताया- रोजाना 2 किमी पैदल चलकर स्कूल पहुंचने में दिक्कत तो होती है, लेकिन पढ़ने के लिए कहीं तो बैठना ही पड़ेगा। टीचर प्रेमलता ने बताया कि ये सामुदायिक भवन भी आसानी से नहीं मिला है। जब पुरानी बिल्डिंग पूरी तरह से जर्जर हो गई थी, तब बच्चों को सड़क पर पढ़ाना पड़ा था।

बटकी का खंडहर हो चुका स्कूल।

बटकी का खंडहर हो चुका स्कूल।

प्रेमलता कहती है- यहां के लोग गरीब है। माता-पिता बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, बल्कि महुआ बीनने भेजते हैं। मैं खुद घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उन्हें मनाती हूं। स्कूल की बिल्डिंग को लेकर प्रेमलता ने कहा-

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कई बार BRC (ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर) को पत्र लिखे। वहां से मंजूरी भी मिली, लेकिन काम नहीं हुआ। मैंने तो अब हालातों से समझौता कर लिया है। शिकायत करना ही छोड़ दिया है।

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11 सालों से खुले आसमान के नीचे स्कूल सतना के उचेहरा ब्लॉक में आने वाला मुंगहनी कला प्रायमरी स्कूल पिछले 11 सालों से खुले आसमान के नीचे संचालित हो रहा है। स्कूल के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है। बारिश के मौसम में स्कूल के टीचर जुगाड़ करते हैं। कभी किसी के मकान में तो कभी किराए पर कमरा लेकर बच्चों को पढ़ाते हैं।

इस मामले में भास्कर ने जनपद शिक्षा केंद्र उचेहरा के प्रभारी प्रदीप श्रीवास्तव से बात की, तो उन्होंने बताया कि ये स्कूल 2012 से किराए के भवन में चल रहा था। तब इसे भवन विहीन नहीं माना गया था। मगर, बीते कुछ सालों से ये पेड़ के नीचे लग रहा है।

प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया-

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हमने कलेक्टर को स्कूल भवन के लिए साढ़े छह लाख रुपए का प्रपोजल भेजा था। विधायक ने भी पत्र लिखा था और निवेदन किया था कि गांव के खाली पड़े सॉयल परीक्षण केन्द्र में स्कूल लगाया जाए। अब भवन बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है, स्कूल की बिल्डिंग कब बनेगी? इसकी कोई जानकारी नहीं है।

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डूब क्षेत्र में आने के कारण ज्यादा स्कूल बिना भवन के मैहर जिले में कोल्हा कोलान प्रायमरी स्कूल पिछले 10 सालों से पेड़ के नीचे लग रहा है। इस बार भी जब पूरे प्रदेश में प्रवेशोत्सव मनाया गया, तब इस स्कूल में बच्चों ने नए सत्र की शुरुआत उसी पेड़ के नीचे बैठकर की।

भास्कर ने इसे लेकर डीपीसी विष्णु त्रिपाठी से बात की तो उन्होंने कहा कि कलेक्टर से निवेदन किया है कि जिला माइनिंग फंड की बैठक में स्कूल के लिए फंड की व्यवस्था की जाए। स्कूल की पुरानी इमारत कहां है? ये पूछने पर त्रिपाठी बोले-

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रामनगर में बाणसागर डेम के कारण ज्यादा हिस्सा डूब क्षेत्र में आ गया था, जिसके कारण भवन विहीन हो गया। ऐसे और भी कई स्कूल हैं।

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ये पहली से 8वीं तक के स्कूलों के आंकड़े हैं।

ये पहली से 8वीं तक के स्कूलों के आंकड़े हैं।

83 हजार स्कूलों की 59 हजार कक्षाओं को मरम्मत की जरूरत मप्र में पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूलों की संख्या 83 हजार 249 हैं। इसमें से 211 स्कूल बिना भवन के संचालित हो रहे हैं। वहीं 1900 स्कूलों में बॉयज टॉयलेट, तो 1700 में गर्ल्स टॉयलेट नहीं है। बिना बिजली के 10900 और बिना बाउंड्री वॉल के स्कूलों की संख्या 35 हजार हैं। वहीं 83 हजार स्कूलों के 59 हजार कमरों को तत्काल मरम्मत की जरूरत है।

इसे लेकर भास्कर ने राज्य शिक्षा केंद्र के कंट्रोलिंग अधिकारी राकेश पांडे से बात की तो उन्होंने कहा कि पहले चरण में 29 जिलों के 211 भवन विहीन स्कूलों का भौतिक सत्यापन किया गया है। अब जल्द ही इनके भवनों के लिए सरकार की तरफ राशि स्वीकृत की जाएगी। उन्होंने इसकी प्रोसेस बताते हुए कहा-

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भवन स्वीकृत करने से पहले भवन विहीन स्कूलों के बच्चों की संख्या देखी जाती है, इस आधार पर सरकार की तरफ से स्कूल की बिल्डिंग के लिए फंड दिया जाता है।

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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