₹6,000 की लागत और ₹80,000 का मुनाफा! इस महिला किसान ने वो कर दिखाया जो कोई नहीं कर पाया

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Success Story: मेहसाणा की महिला किसान कैलाशबेन पटेल ने पारंपरिक खेती छोड़कर आधुनिक तकनीकों को अपनाया. नई विधि से गेहूं की खेती कर उन्होंने कम लागत, कम पानी और अधिक उत्पादन हासिल किया, जिससे वह गांव के किसानों क…और पढ़ें
महिला किसान की सफलता की कहानी
मेहसाणा जिले के विसनगर तालुका के सदुथला गांव की प्रगतिशील महिला किसान कैलाशबेन पटेल ने अपनी सूझबूझ और मेहनत से खेती के क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है. उन्होंने सिर्फ 12वीं तक की पढ़ाई की है, लेकिन वर्षों से पशुपालन और कृषि के क्षेत्र में काम कर रही हैं. उनके पास खुद की 3 बीघा जमीन है, जबकि 7 बीघा जमीन किराये पर लेकर वे खेती करती हैं. इस बार उन्होंने डीएससी संस्थान की मदद से नवीन तकनीक अपनाई, जिससे खेती की लागत घटी और उत्पादन में वृद्धि हुई.
गांव में पारंपरिक खेती से बदलाव की ओर कदम
सदुथला गांव की आबादी करीब 4,000 है और यहां के अधिकतर लोग कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं. कैलाशबेन भी पहले पारंपरिक खेती करती थीं, जिसमें लागत अधिक और लाभ कम होता था. 2021 में उन्होंने विकास सहायता केंद्र से संपर्क किया और विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. इन प्रशिक्षणों के बाद उन्हें वैज्ञानिक खेती में रुचि हुई और उन्होंने आधुनिक तकनीकों को अपनाने का निर्णय लिया. उनकी इस नई सोच ने लागत को कम किया और उत्पादन को बढ़ाया.
नवीन पद्धति से गेहूं की खेती में सफलता
इस साल उन्होंने एक बीघा में गेहूं की किस्म 513 को पारंपरिक तरीके की बजाय नई तकनीक से बोया. कैलाशबेन बताती हैं कि पहले एक बीघा में पारंपरिक बुआई के लिए 30 से 40 किलो बीज लगता था, लेकिन डीएससी संस्था की मदद से सिर्फ 19 किलो बीज में ही बुआई पूरी हो गई. इससे बीज की लागत काफी कम हो गई. इस नई विधि से खेत की जुताई और सिंचाई में भी समय और खर्च की बचत हुई.
सिंचाई और उर्वरकों में आई कमी, बढ़ा लाभ
कैलाशबेन ने बताया कि पहले खेत की सिंचाई में 18 से 20 मिनट लगते थे, जबकि नई पद्धति अपनाने के बाद यह समय घटकर 8 से 10 मिनट रह गया. खेत में 550 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी की नमी धारण क्षमता बढ़ गई, जिससे गेहूं की फसल को कम सिंचाई की जरूरत पड़ी. इस तकनीक से सिंचाई के खर्च में करीब 2,500 रुपये की बचत हुई.
कम लागत में ज्यादा मुनाफा, बनीं प्रेरणा
क्षेत्र के अधिकतर किसान गेहूं की खेती करते हैं, लेकिन कैलाशबेन ने संगठन की मदद से एक नई विधि अपनाकर खेती की लागत कम कर दी. इस बार उन्होंने कुल 6,000 रुपये की लागत में गेहूं की खेती की, जबकि उत्पादन 70,000 से 80,000 रुपये के बीच होने की उम्मीद है. उनकी यह सफलता गांव के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन रही है.
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