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धरती से समुद्री बर्फ खत्म होने की कगार पर! NASA के सैटेलाइट्स ने पकड़ी अनहोनी की आहट, देखें होश उड़ाने वाला वीडियो

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Science News Today: NASA और अन्य एजेंसियों की नई रिसर्च दिखाती है कि धरती पर समुद्री बर्फ का स्तर सर्वकालिक न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है. बर्फ की दर में आई कमी को NASA ने एक विजुअलाइजेशन में दिखाया है.

NASA एनिमेशन में दिखी बर्फ पिघलने की रफ्तार!

हाइलाइट्स

  • धरती पर समुद्री बर्फ का स्तर न्यूनतम पर पहुंचा, NASA ने किया खुलासा.
  • आर्कटिक और अंटार्कटिक में बर्फ तेजी से पिघल रही है, सैटेलाइट्स से पता चला.
  • समुद्री बर्फ का कम होना ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर सकता है.

नई दिल्ली: धरती के दोनों ध्रुवों पर समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है. वैज्ञानिकों को डर है कि यह एक नया खतरनाक ट्रेंड बन सकता है. NASA और नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (NSIDC) की ताजा रिपोर्ट ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है. NASA के अनुसार, इस साल 22 मार्च को जब आर्कटिक में समुद्री बर्फ अपने वार्षिक उच्चतम स्तर पर होनी चाहिए थी, तब इसकी मात्रा सिर्फ 5.53 मिलियन वर्ग मील (14.33 मिलियन वर्ग किमी) रह गई. यह अब तक की सबसे कम सर्दियों की बर्फ है.

अंटार्कटिक में भी बिगड़ रहे हालात

1 मार्च तक अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ सिर्फ 764,000 वर्ग मील (1.98 मिलियन वर्ग किमी) ही बची थी. यह अब तक दर्ज किए गए दूसरे सबसे कम स्तर के बराबर है. NASA के वैज्ञानिक लिनेट बॉइसवर्ट का कहना है, ‘हम अगली गर्मियों में पहले से भी कम समुद्री बर्फ के साथ प्रवेश करेंगे, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है.’

ग्लोबल इम्पैक्ट: अमेरिका जितनी बर्फ गायब!

फरवरी 2025 में वैश्विक समुद्री बर्फ की मात्रा 2010 के औसत से 1 मिलियन वर्ग मील (2.5 मिलियन वर्ग किमी) कम थी. यह क्षेत्रफल अमेरिका के पूर्वी हिस्से जितना बड़ा है!

समुद्री बर्फ क्यों जरूरी है?

समुद्री बर्फ सिर्फ ठंडी सतह नहीं, बल्कि आर्कटिक और अंटार्कटिक के इकोसिस्टम की रीढ़ है. बर्फ का कम होना ध्रुवीय भालुओं, सील्स और अन्य समुद्री जीवों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है. समुद्री बर्फ सूरज की गर्मी परावर्तित करती है. जब यह कम होती है, तो समुद्र ज्यादा गर्मी सोखता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग तेज हो जाती है. कम समुद्री बर्फ का मतलब है कि तूफान ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं और तटीय कटाव बढ़ सकता है.

क्या यह स्थायी बदलाव है?

वैज्ञानिक उपग्रहों से समुद्री बर्फ के रेडिएशन पैटर्न को मापते हैं और इसे 1970-80 के निंबस-7 सैटेलाइट डेटा से तुलना करते हैं. NSIDC के वैज्ञानिक वॉल्ट मेयर के मुताबिक, ‘अभी यह तय नहीं है कि अंटार्कटिक की बर्फ स्थायी रूप से कम हो रही है या यह अस्थायी बदलाव है. लेकिन पिछले दशकों का ट्रेंड इसे एक गंभीर खतरे के रूप में दिखा रहा है.’

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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